Tuesday, November 27, 2018

अलकापुरी यात्रा, फूलों की घाटी भाग ~ ६

बरसातों में नंदनकानन की ओर... भाग ~ ६

फूलों की घाटी ) -2
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पिछले भाग में आपने वैली ऑफ फ्लावर का आँखो देखा यात्रा वर्णन पढ़ा अब फूलों की घाटी से जुड़ी कुछ जानकारियों पर प्रकाश डाला जाए। उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय परिक्षेत्र के चमोली जिले में स्थित है दुर्लभ फूलों की एक अद्भुत दुनिया...

अलकापुरी यात्रा, फूलों की घाटी भाग ~ ५

बरसातों में नंदनकानन की ओर... भाग ~ ५

फूलों की घाटी )-1 24/08/2018
रात भर बारिश की तड़तड़ चलती रही थी, थकान के मारे नींद सीधे सुबह ही खुली आज हमको फूलों की घाटी जाना था, और बाहर बारिश भी चलती रही। आज कोई जल्दी नहीं थी क्योंकि फूलों की घाटी एक राष्ट्रीय उद्यान है, वहाँ जाने के लिए परमिट बनता है और परमिट ऑफिस लगभग 7 बजे ही खुलता है।

अलकापुरी यात्रा, फूलों की घाटी भाग ~ ४

बरसातों में नंदनकानन की ओर...भाग ~४ 

 23/08/2018

जंगलचट्टी में भ्यूडार होने के भ्रम के बाद अब हम रास्तों के किनारे लगे बोर्ड ध्यान से पढ़ने लगे थे। रास्ता हल्की चढ़ाई  और दाहिने हाथ की ओर घाटी में हाहाकार करती लक्ष्मणगंगा के साथ-2 चलता है। पुरी घाटी नदी की आवाज से थर्रा रहा है, कभी-2 बीच में गोंविदघाट से घांघरिया तक चलने वाली हैली सेवा भी शोरगुल को बढ़ा देती है।

Monday, November 26, 2018

अलकापुरी यात्रा, फूलों की घाटी भाग ~३

बरसातों में नंदनकानन की ओर... भाग ~ ३

23/08/2018
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आज की सुबह भी भूचालों वाली थी, कल देर रात तक झमाझम बारिश में आपाधापी करना और फिर 100/100 के हाथों अपने सारे घोड़े आधे दामों पर ही नीलाम कर बेसुध से सोये थे। ज्योति जी का अपना बैग सजाते हुए कह रही थी धुप निकल आई है और किन आलसियों से राब्ता पड़ा है। हमें बस उनके योगा क्लास से राहत थी, तो सब फटाफट उठ बैठे.. मृगांक टाॅयलेट गया और थोड़ी देर में लगभग टप्पे खाता हुआ बाहर आया था- पानी में करंट है.. पानी में करंट है..

अलकापुरी यात्रा, फूलों की घाटी भाग ~२


बरसातों में नंदनकानन की ओर... भाग ~ २


 22/08/2018
अगली सुबह खतरनाक थी, मैं एक सफेद पानी वाले झरने के नीचे था, तभी अचानक भूकंप सा आया था। हड़बडा कर उठा तो पाया की मैं सपना देख रहा था और ज्योती जी मेरे पैर को जोर से हिला कर जगाने की नाकाम कोशिश कर रही थी। वक्त था सुबह के 3:45 am और हमारी बस से दो बार फोन भी आ चुका था। जो ठीक 4:00 am पर हरिद्वार रोड़वेज के सामने से चलने वाली थी। अब तो सभी की नींद उड़ चुकी थी और जैसे-तैसे फ्रेशअप कर हम अपने बैग को लगभग घसीटते हुए नीचे सड़क तक आ गये थे।

Sunday, November 25, 2018

अलकापुरी यात्रा, फूलों की घाटी भाग ~१


बरसातों में नंदनकानन की ओर... भाग ~ १




 20-21/08/2018
चटख हरियाली के कंबल ओढ़े कंपकंपाते से पहाड़, गरजती नदियाँ, अविरल धुआँधार झरने, धान के लहलहाते सीढ़ीदार खेतों में धानी चुनर लहराती प्रकृति, आसमान में घुमड़ते आवारा बादल और धरती को तृप्त करती बेपरवाह रिमझिम करती बारिश ये सभी संयोग जब इक्कठा हो जाए तो किसी यायावर मन को स्थिर नहीं रखा जा सकता है।

Wednesday, November 21, 2018

मिनी खजुराहो शहडोल यात्रा भाग ~ २


एक छुपे मोती का अचानक दर्शन  विराट मंदिर शहडोल भाग - 2 

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शिल्प चर्चा और घर वापसी- 

नवललनाओं पर बंकिम दृष्टि डाल और उन प्रेम कपोतो को पार कर मैं अपने बड़े से थैले के साथ जिसमें नाना प्रकार की खाद्य सामग्री मैंने भर रखी थी, मंदिर के ठीक सामने बने बेंच पर अपना आसन लगा लिया। दर्शन के लिए जब गर्भ गृह की ओर गया तो घुप्प अंधेरे एक बार कंपित कर दिया, फिर फ्लैश की रोशनी से हालात का जायजा लिया तब तक आँखे अभ्यस्त हो चुकी थी। दर्शनोपरांत जब मैंने हरएक प्रतिमा को ध्यान से देखने, विचार करने, और चित्रित करने में व्यस्त हुआ तो, विचित्र रूप से अनाशक्त भाव रखने वाले उपस्थित जनसमुदाय का आकर्षण का केंद्र बन गया। कुछ प्राचीन सोडषीयाँ अपने प्रेमभक्तो को लेकर मुझ तक आ पहुँची और मैं बेगार का गाइड बन गया। उनसे जान छुड़ाकर में वापस अपने काम पर लग गया। हर मूर्ति जैसे बोलने को आतुर थी और मेरे कर्णपट उस मधुर संगीत के आंकाक्षी। थोड़े समय के बाद मैं एक भीड़ का नेतृत्व कर रहा था, जो मुझसे सवाल पर सवाल किए जा रही थी। ये क्या है? क्यों है? और मैं मूढमति खुद को विशेषज्ञ मान कुछ भी उलूल जूलूल बताए जा रहा था। खैर.. मुद्दे पर आते है।

यह मंदिर कलचुरि शासकों द्वारा बनवाए गये उत्कृष्ट स्मारकों में से एक है। स्थापत्य और कला शैली के आधार पर यह लगभग 11वीं शती ई. के समय का प्रतीत होता है।

पूर्वाभिमुख व अत्यधिक अलंकृत यह मंदिर एक चबुतरे(जगती) पर स्थित है। जिसका अधिष्ठान काल के क्षरण से कमजोर हो गया जिससे इसका विमान एक ओर झुकाव लेते हुए है। इस मंदिर के भू-विन्यास में अर्ध्दमण्डप, महामण्डप, अंतराल एंव वर्गाकार गर्भगृह है। लगभग 10फीट वर्गाकार गर्भगृह में एक सहस्त्र वर्ष प्राचीन एक बिलांग ऊँचा शिवलिंग और जलधारी, एक डमरूयुक्त त्रिशुल और ताम्र शेष विग्रह भी समर्पित है। लिंग पुजित है और स्थानीय आस्था का केंद्र भी यहाँ एक पुजारी और दो कर्मचारी भी नियुक्त है।

 गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर भी कलात्मक मूर्तियाँ शोभायमान है, जिनमें मध्य में कमलापति, बांये वाग्यदेवी और दाहिने ओर लंबोदर विराजमान है। चौखटो को मकरवाहिनी- कच्छपवाहिनी आदी देवियाँ सुशोभित कर रही है।
 मंदिर के उर्द्धविन्यास को पाँच भागों में बाँटा जा सकता है। यथा-पीठ, वेदिबंध, जंघा, वरण्डिका और शिखर। इसके शिखर का स्थापत्य सप्तरथ शैली का है और विमान उपर उठते हुए कैलाश शिखर को प्रतिरूपित करता है। जिसके चारों कोनों पर 21 भूमि आमलक है। शिखर के उपर आमलक, चन्द्रिका, अमलसारिका एवं कलश आवेष्ठित है। शुकनासिका के मध्य में ताण्डव शिव की प्रतिमा है। साक्ष्यरूप अवशेषों के आधार पर प्रतीत होता है कि मण्डप के उपर पिरामिड के आकार की सुंदर छत रही होगी, जो कलान्तर में ध्वस्त हो गयी जिसके स्थान पर स्थानीय प्रशासको द्वारा कलाविहीन सपाट अग्रमण्डप का निर्माण करवाया गया है।

मंदिर के प्रमुख आकर्षण में बहुभुजायुक्त नृत्यरत शिव की प्रतिमा विशेष है। यहाँ की बहुत सी मिथुन मूर्तियाँ व अन्य अनेक प्रतिमाएँ खजुराहो की मूर्तियों के बहुत समान है। इस मंदिर पर समकालीन चंदेल एवं परमार कला का प्रभाव स्पष्टतयः दृष्टिगोचर होता है। शैव और वैष्णव संप्रदाय का बहुत ही सुंदर तारतम्य मूर्तिमान हो रहा था। परंतु कामकला  की सभी मुर्तियों में लंबी दाढ़ी धारण किए कापालिक को देख सहज ही शैव प्रभाव का अनुमान लगाया जा सकता है। सभी मैथुन कलाकृतियों को उभार कर नही अपितु गहवर में अन्य से तनिक ओट लेती हुई प्रदर्शित किया गया है। जो ध्यान देने पर ही दृष्टिगत होती है, इसे मध्यप्रदेश में स्थित एक छोटा खजुराहो की संज्ञा भी देती है। मण्डम और अन्यत्र कई भग्न बौद्ध और जैन मूर्तियाँ की दिख जाती है, तो कुछ खाली जलधारी और अनेक खंडित देव प्रतिमाएँ भी है। प्रांगण के निकट एक सरोवर है , जिसके किनारों पर कुछ मृतक स्मृति छतरियाँ भी बनी है।

पुरे दिन के बाद मंदिर से वापस आ स्थानीय खानपान का आनंद लेना चाहता था। सुदूर मैकाल पहाड़ियों वाले शहर में शाम ढले मस्त आवारागर्द हाथी सा टहल रहा था,ठेठ जनजातिय क्षेत्र में 6 फीट का गोरा मोटा लड़का कौतुहल बना हुआ था। पता नहीं क्यों सभी ऐसे देख रहे थे जैसे मैं कोई चिड़ियाघर से भागा हुआ दरियाई घोड़ा हूँ। तभी म प्र सरकार के अभिनव प्रयास पर नजर पड़ गयी, हुआ कुछ यूँ था की शहर भर के ठेले खोमचे वालों को इक्कठा कर एक स्ट्रीट फूड सुपर मार्केट बना दिया गया था। फिर तो ऐसा खुश हुआ की जैसे पहली बरसात में मेंढक और कछुए, जैसे किसी छुट्टा सांड को लहलहाती फसल दिख गयी हो।

तो पहले पावभाजी आयी, फिर दाबेली, फिर 20 गोलगप्पे, फिर पापड़ी चाट आयी, फिर डोसे मंगाये गये, फिर फालूदा- सोफ्टी के बाद जलजीरा वाला सोड़ा चढाया गया, तब तक गरम उतरती जलेबी पर नजर फिसलती चली गयी।
लब्बोलुआब ये रहा कि रिक्शे पर लद कर होटल लाए है शरीर को.. और होटल के नर्म बिस्तर खुछ को बहुत मुश्किल से बिछा कर और कंबल के एक कोने से थोडा मुँह बाहर निकाल कर गर्मागर्म जलेबी खाते हुए भारत-दक्षिणअफ्रीका के बीच पहला T20 मैच देख रहा हूँ। मतलब इतना सुख देखर कर एक बारगी अमरावती के इंद्र भी ईष्या के मारे जलभून जाए।अब मध्यरात्रि को मेरी ट्रेन मुझे लेने आने वाली थी, मेरा टिकट अब तक प्रतीक्षा सुची में था। खैर जैसे-तैसे टी•टी•ई साहब की आधी सीट पर किसी तरह टिक गया, फिर वो अपने राउंड पर चले गये और मैंने उनके सीट पर पुरा परस गया.. फिर क्या..
फिर.. खट-खुट करती.. हट-हुट करती.. गाड़ी अपनी जाए.. फर फर भागे सबसे आगे कोई पकड़ ना पाए..
धन्यवाद 
इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘
ओपन आर्ट गैलरी विशुद्ध खुबसुरती

प्रेम के आदी बिंदु उमा-महेश्वर

आंतरिक दृश्य खंडित मूर्तियाँ और जलहरी

विहंगम कैलाश विमान

प्रस्तर ललनाएँ

झाँकी

गांडीवयुक्त धनंजय

गिरधर मुरलीधर कहो, कछू दुःख मानत नाही

कपालिक देव और शार्दुल

गहवर में मैथुनरत प्रस्तर काव्य

विभिन्न मुद्राएँ 

अनिंध्य

ललित कला 1

ललित कला 2

हस्ताक्षर मुद्रा

ललित कला 3

ललित कला 4

लावण्यमयी

गणाधिपति

सरस्वती
गुहयात गुहयम्

ललित कला 5

चकित जड़रूप

प्रफुल्लित मन

प्रस्तर काव्य के आरोह अवरोह

हिमाद्री तुंग श्रृंग सा..
प्रेम मनुहार

एकात्म क्षण 

मिनी खजुराहो शहडोल यात्रा भाग ~१

                               
एक छुपे मोती का अचानक  दर्शन  - विराट मंदिर शहडोल भाग-1 


नमस्कार 🙏



आजतक मैं यह निर्धारित नहीं कर पाया की मैं भारतीय रेलवे की निंदा करूँ की प्रशंसा। कभी तो ऐसी झुझंलाती है की 33कोटी के देवता से लेकर नेता तक 33 कोटी के आर्शीवचन खा जाते है मेरे हाथों। पर कभी-2 प्रियतमा की तरह रूठती-मनाती धक्के पर चलती रेलगाड़ी काफी कुछ जाने अनजाने दिखा सीखा जाती है।

तो हुआ युँ की हालिया अमरकंटक से वापसी में ट्रेन के आरक्षण का ठेका मैंने एक परम मित्र के पक्ष में जारी किया और उन्होंने आशातीत स्तर पर कार्य करते हुए टिकट प्रेंड्रारोड़ के बजाए शहडोल से आरक्षित किया वो भी प्रतीक्षारत, जिसके लिए उन्हे तदनुपरांत यथोचित पारितोषिक से भूषित करना पड़ा।

खैर इतने हंगामे की बीच मुझे एक अधिक दिन जो मिल गये थे घुम्मकणी के लिए, अब बसों की रेलमपेल को झेल मैं मध्यप्रदेश के जनजातियबहुल सुनसान विरान जिला मुख्यालय शहडोल में रात्रि के 1:55am पर एक जैन मंदिर के सामने खड़ा था किंकर्तव्यविमूढ़। सहसा कुछ हलचल प्रतीत हुई और मेरा हाथ मेरे घुम्मकण मित्र स्विस नाइफ पर कस गया। नजर दौडाई तो सामने एक जैन होटल का बोर्ड चमक रहा था, सीढ़ियाँ चढ़ देखा तो एक सज्जन कांउटर पर उँघ रहे थे। मैंने उनके चिर आनंद में व्यवधान डाल पुछा कोई रूकने का ठिकाना मिलेगा ?? प्रतिउत्तर निहायत ही हैरान करने वाला था महानुभाव ने बिना नजर उठाए पुछा था क्यों..??

मैंने झल्लाते हुए कहा - 'क्योंकि मुझे नींद आ रही है। अब देव चैतन्य हो उपर से नीचे तक निरीक्षण के बाद घड़ी देखी और विस्मय से आंखे गोल करते हुए देखने लगे। मैंने पुछा था कोई रूम मिलेगा मुझे कल ठीक इतने वक्त ही रात को निकलना है।" अप्रत्याशित उत्तर मिला हाँ 300 रू लगेंगे 200 सिक्योरिटी भी। मैं चहक उठा जैसे पहली बरसात में मेंढक और कछुएँ। कागजी कार्रवाई कर मैं चुपचाप अपने मनोभावो को ठिकाने लगा महोदय का अनुगामी हुआ, होटल बस दो मंजिलो तक ही था, उपर एक बड़ा खुला प्रागंण और किनारे-2 कमरे उनमें से एक कमरा मुझे मिला, बढिया सफेद चमकती चादर बिछा डबल रूम ने पहले मुझे कोफ्त पहुँचाई पर अभी नींद हावी थी तो अपना दंड कमंडल फेंक सीधा बिस्तर पर छंलाग लगाई पर नींद कोसो दूर मोबाइल पर कुछ गुगलियाया तो हजार वर्ष पुराना विराट मंदिर नजदीक ही सोहागपुर में स्थित है ऐसा पता चला तो कल पुरा दिन बेमतलब आवारागर्दी वहीं के हिस्से लगा, tv ऑन कर देखते-2 विभावरी की गोद में सर रख ना मालूम किस लोक के विचरण को निकल पड़े..उषागमन तक के लिए विदा

उषा को आए पुरे चार घंटे बीत गये, पर विभावरी से जी नहीं भरा था। न्यूज पेपर के लालच में आखिरकार कुर्बानी देनी पड़ी, होटल वाले को चाय को बोल नीचे सड़क तक पहुँच गया।
एक मजमा खड़ा था गर्दन को लंबाई दी तो मालूम हुआ ताड का रस है, अनजान जगह है तर्जुबा लेने के लिए माहौल उत्तम। उस मटके वाले से बाबत पुछा तो वो तुरंत सुश्रुत बन बैठा "भईया जी ताजो है, अभही उतारे ला रहे अमरीत है अमरीत पेट के लिए तो", तुरंत जनसमर्थन भी मिल गया। स्वाद तो अजीब सा था एक बड़ा गिलास पी गया शायद उसने कोई गोलियाँ भी मिलाई थी, सर भन्ना गया। वापस आकर चाय पी और ठंडे पानी से नहाने पर हालत ठीक हो गई और फिर निकल पड़े विराट नगर की ओर..

आसपास पुछताछ करने पर पुष्टि हुई फिर एक ऑटो वाले ने 100 रू में घुमाने का ऑफर दिया, गुगल महाराज से जाँच की तो 3.6 km, फिर शेयर्ड ऑटो को चुना और हाइवे तक छोड़ने के ऐवज में  ऑटो को 20रू दे रूखसती दी और पैदल चल पड़े बमुश्किल 200m बाद ही मंदिर प्रांगण नजर आने लगा। मेरे हाथ में एक बड़ा सा थैला था जिसमें ढेर सारे फास्टफूड़ कहे जाने वाले खाने के नमूने थे, कुछ चिप्स के पैकेट, एक मारी मन पसंद आलू की नमकीन, कुछ कुकीज, कुछ केक बिस्कुट, एक-दो फ्रुटी, एक तुफानी ठंडा, एक चाॅकलेट बार और कुछ खट्टी मीठी गोलियाँ जो आज भर के लिए पर्याप्त थे।
परिसर में प्रेमी युगलो का कोलाहल था, सभी विशिष्ट-2 आसनो में विराजमान थे। काली gds कैप लगाए में तारों में चंद्रमा सा विभुषित हो रहा था, सभी खाने की चीजों को एक बड़े प्लास्टिक बैग में डालकर अपने कंधे पर लटका कर चलता हुआ कोई काबुलीवाला या स्नैक्स बेचने वाला दिखाई दे रहा था। अब मैं उपस्थिति भीड़ के आर्कषण का क्रेंद बन गया था।
कोई यकीन नहीं कर रहा था की इतना सामान में यहाँ बैठकर खाने वाला हूँ। सभी जीवित नव ललनाएँ मुझ कार्टुन करैक्टर को देखकर अपने प्रियतम के कंधो पर मुँह छिपाए हँस रही।थी, पर मैं तो अपने ही आनंद में मग्न था। आखिरकार यहाँ अनिंघ सुदंर प्रस्तर ललनाएँ भी तो थी, जिनके बारे में आगे बताऊँगा।
शहडोल परिक्षेत्र बाॅक्साइट और सुहागपुर कोयला क्षेत्र b v  से सड़कों की स्थिति दयनीय है परंतु निर्माण कार्य भी सतत है। महाजनपद काल का प्रसिद्ध विराट नगर यहीं स्थित था, और महाभारत में पांडवो के अज्ञातवास की अवधि के लिए भी प्रसिद्ध। उस काल की गवाही देता कलचुरीकाल निर्मित विराटेश्वर मंदिर...
इस क्षेत्र का इतिहास प्राचीनता लिए हुए है और तत्कालीन सभी राजवंशो ने यहाँ राज किया है। गुप्तो से शुरू हुई मंदिर बनाने की कला ने आज कलचुरियों का मान गर्व से ऊँचा किए खड़ा है। एक विशाल हरे भरे प्रांगण में एक पुर्वाभिमुख आदीयोगी का मंदिर जो आधार से पुर्व की ओर कुछ पीसा की मीनार की तरह झुका जा रहा है। दूर से साधारण सा दिखता मंदिर जिसका अग्रमंडप धवस्त होकर पुनःनिर्मित है, पास जाने पर असंख्य शिल्प रचनाओं से भरा पड़ा था। मैं आँखे गोल किए जितना आशक्त हुआ जा रहा था, उपस्थित प्रेमालिप्त जन उतने ही अनाशक्त...बुद्ध ठीक कहते है सत्य के हजारों रूप है। मंदिर शिल्प पर चर्चा शेष रही..

इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘
यात्रा आरंभ

रात के ढाई बजे

सुबह होटल के आंगन में 

आखिरकार पहुँच गये खोजते खोजते

छोटा पर मामूली बिल्कुल नहीं 

पहली झलक

अपनी भी झलक

अलंकृत विमान

थोड़ी नजदीक से जान पहचान

पुर्ननिर्मित नंदीमडंप

अति प्राचीन शिवलिंग अपने भव्य रूप में 

विहंगम मुर्तिकला का उदाहरण 

सुसज्जित प्रवेशद्वार

अंदरूनी झलक

Sunday, November 18, 2018

नालंदा डायरी भाग ~ 10 nalanda-rajgir journey


                      नालंदा-राजगीर-बोधगया यात्रा  भाग - 10  अंतिम कड़ी 

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कितने ही दिनों से भटकते रहने से हमारा दल अब परेशान हो रहा था तो आज सुकून से देर सुबह तक सोया रहा। सुबह नास्ते के बाद हमने अपना सारा समान बांध लिया और बाइक की टंकी फूल कर ली गई। सुबह एक बार फिर हमने महाबोधी मंदिर में प्रार्थना की सुबह कुछ ज्यादा भीड़ भी नहीं थी, तकरीबन सभी पर्यटक अभी सो रहे होंगे। फिर हमने अपनी बाइक ग्रांड ट्रंक रोड़ की और दौडा दी,

नालंदा डायरी भाग ~9 nalanda-rajgir journey

                                          
                                                      नालंदा-राजगीर-बोधगया यात्रा  भाग - 9

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संग्रहालय से अभिभूत होकर निकलने के बात हमने एक तिब्बती दुकान पर थुक्का और मोमोज खाए और  द ग्रेट बुद्धा स्ट्च्यु और महाबोधी मंदिर के दर्शन के लिए निकल पड़े।

नालंदा डायरी भाग ~ 8 nalanda-rajgir journey

            
                                               नालंदा-राजगीर-बोधगया यात्रा भाग - 8

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आपने बोधगया के बारे में सबकुछ जान ही लिया है तो अब बारी है बोधगया में प्रमुखता से दर्शनीय स्थलों की सैर की। अब चुःकि हम गौतम बुद्ध के शहर में थे तो आपको सबकुछ बुद्ध के नाम पर मिलेंगे, हमने भी एक बुद्धा हाइट्स नाम के एक होटल को अपना ठिकाना बनाया और  सामान व्यवस्थित कर फ्रेश होकर थोड़ा आराम किया। हमारा होटल बोधगया के ठीक बीचों बीच था तथा सबकुछ आसपास ही था तो हमने पैदल घुमने की ही सोची और बाइक को पार्किंग में खड़ी कर दी।

Saturday, November 17, 2018

नालंदा डायरी भाग ~ 7 nalanda-rajgir journey

                                  
नालंदा-राजगीर-बोधगया यात्रा  भाग - 7 


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गया शहर की भीड़भाड़ से बचते बचाते अब हमारी बाइक खुली सड़कों पर दौड रही थी। बोधगया की चिरपरिचित शांति रास्ते से ही महसूस होने लगी थी। सूकून और प्रसन्नता के मारे मेरे हाथ एक्सिलेटर पर और कसते चले गये थे। मेरे अभी तक के जीवनकाल में पुरे भारत भर में देखे गये सभी स्थानों में मुझे सबसे प्रिय उत्तरकाशी और बोधगया ही है, जहाँ पहुँचते ही मैं किसी ओर ही दुनिया में पहुँच जाता हूँ।

Friday, November 16, 2018

नालंदा डायरी भाग ~ 6 nalanda-rajgir journey


                                                        नालंदा - राजगीर यात्रा भाग - 6

कल दिन भर की उठापटक और रातभर के धमाल के बावजूद सभी सुबह 7 बजे तक तैयार होकर ब्रैकफास्ट का इंतज़ार कर रहे थे। 8 बजे से पहले ही हम होटल नलंदा रीजेंसी से चेकआउट कर अपने रथों पर सवार मतलब की बाइकों पर जम चुके थे। लक्ष्य था तकरीबन 70km दूर गया-बोधगया की घुम्मकड़ी का..

नालंदा डायरी भाग ~ 5 nalanda-rajgir journey


                                                    नालंदा - राजगीर यात्रा भाग- 5

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पिछली कड़ी में हम रोप वे से गृद्धकूट और विश्व शांति स्तुप घूमने के बाद वापस नीचे आए.. धूप तेज खिली हुई थी और हमने अपनी बाइक यूँ ही पार्क कर दी थी और हेलमेट भी बाइक पर ही बस रख भर दिया था, वापस आए तो बाइक तवा और हेलमेट तंदूर बन चुका था पर दोनों ही पुर्णतया सुरक्षित थे। बाइक को छाया में खड़ी कर पास ही एक दुकान में कुछ नास्ते की तलाश में घुस गये हमारे मित्र मृगांक बाबू की भूख बर्दाश्त करने की क्षमता शून्य है फिर उन्हे अनिकेत बाबू का भी साथ मिल गया,

नालंदा डायरी भाग ~ 4 nalanda-rajgir journey

                         
                                                       नालंदा राजगीर यात्रा भाग - 4

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आखिरकार तमाम झंझटो के बीच थकान से चूर शरीर सभी मोहमाया को किनारे कर जब डनलप के गद्दे में 1 फीट तक धंस गया तो नींद तो आनी ही थी। सारे घोड़ो को खुल्ला छोड़ सोए तो सुबह 7 बजे ही नींद खुली। सुनहली सुबह हो रही और आसमान में बादलों का कोई अता पता भी नहीं था। जबकि कल हम पुरे दिन बादलों से लुका छिपी और पकड़म-पकड़ाई ही खेलते रहे थे। साथ के मित्रों को अभी बिभावरी की लोरी मदहोश किए थी, पर जब बात एक पुरा शहर देखने की हो तो समय की पाबंदी तो चाहिए ही करते ना करते एक घंटे में सभी तैयार हो चुके थे, और हमारा काम्पलिमेंट्री शानदार नास्ता भी आ चुका था। नास्ता निबटाने, जुस पी चुकने के बाद अब हम बाहर लांउज में पहुँचे कुछ निर्दश दिए-लिए गये। अब हमारी बाइक धुली धुलाई तैयार थी दुबारा कीचड़ से पुतने के लिए..

Saturday, August 11, 2018

नालंदा डायरी भाग ~ 3 nalanda-rajgir journey

               

                 नालंदा-राजगीर यात्रा- यात्रा पुर्नजन्म की, भाग - 3


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पुराने ईंट के खंडहरो, टूटी फूटी दीवारों और एक आम इंसान के लिए उल -जलूल चीजें दिखाने के लिए भरी बरसात में लंबी बाइक यात्रा करवाने और तमाम सारी जहालतो के बाद मैं अपने दोनों साथियों से ढेरों  उलाहनो, तानो और कुछ एक विशेषणो से सम्मानित होने के बावजूद मजे ले रहा था। फिर जैसे तैसे मन मार कर उत्खनन साइट से बाहर आए, तो ठीक सामने सड़क उसपार नालंदा संग्रहालय की ईमारत है। तो मुँह उठाए नाक की सीध में चलते चले गये, टिकट तो पहले से ही ले रखा था। एक लंबे रास्ते के बाद एक साधारण सी ईमारत के पास आ खड़े हुए इसके भीतर ही खुदाई से निकली चीजें सुरक्षित रखी हुई है।

Wednesday, August 8, 2018

नालंदा डायरी भाग~२ nalanda-rajgir journey


                                  
                                         नालंदा-राजगीर यात्रा ~  पुर्नजन्म की यात्रा,  भाग - 2


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आखिरकार मैं अपनी इच्छित जगह पर पहुँच चुका था, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था और मेरे दोनों मित्र मुझे अजीब सी नजरों से देख रहे थे। खैर यह एक छोटी सी जगह थी जहाँ एक तरफ ढाबेनुमा खाने पीने की दुकानें और दुसरी तरफ ढेर सारी यादगार जैसी वस्तुओं की दुकानें थी जहाँ बुद्ध की मुर्तियाँ घर की मुर्गी दाल बराबर हो रही थी।

Tuesday, August 7, 2018

नालंदा डायरी भाग ~ 1 nalanda-rajgir journey


                                        नालंदा-राजगीर  यात्रा ~ पुर्नजन्म की यात्रा, भाग - 1


विज्ञान वर्ग का विद्यार्थी होते हुए भी, इतिहास के प्रति बहुत ही लगाव और झुकाव हमेशा से रहा है, इसलिए मेरी घुम्मकड़ी भी ऐतिहासिक जगहों के आस पास ही मंडराती रहती है। मेरी हमेशा से दिलचस्पी रही है किताबों में वर्णित जगहों पर जाना उन्हे साक्षात देखना, महसूस करना, समझना और सीख लेना। यद्यपि की ढ़ेर सारे ऐतिहासिक स्थलों की सैर कर चुका हूँ, तथापि अपने से सबसे पास स्थित नालंदा विश्वविद्यालय के खडंहरो को देखने की हार्दिक इच्छा ना जाने कब से थी। शायद स्कूल के दिनों में इतिहास की किताबों में देखी गई नालंदा विश्वविद्यालय के खडंहरो की तस्वीरों बाद ही, अभी हाल ही में उसे UNESCO की वर्ल्ड धरोहर में शामिल किया गया था, उन्ही दिनों अभयानंद सिन्हा जी का राजगृह यात्रा वर्णन पढ़ने को मिला और उसने आग में घी का काम किया।

Sunday, August 5, 2018

काठमांडू यात्रा भाग 5 kathmandu journey

#नेपाल_यात्रा #भाग_5 #पोखरा


पिछली रात सुबह जल्दी उठने का निश्चय करके सोया गया था, ताकि सुबह जल्दी से 5km दूर नागरकोट जाकर सुर्योदय का दृश्य ले पाए, पर हालात ये थे की सुबह 7:30तक कोई भी उठ नही पाया और सुर्य देव किसकी प्रतीक्षा करते भला, ठीक-ठाक धुप निकल चुकी थी। सभी तैयार होकर नीचे आए तो होटल मालिक हमें देख कर खुब हंसा। फिर भी हमने नागरकोट जाकर उपर से मनोरम दृश्य देखने और फिल्माने का निर्णय किया। और निकल पड़े पोखरा दर्शन यात्रा पर।

यहाँ उपर पहुँच कर सारा पोखरा हमारे सामने था,वैसे पोखरा शब्द का अर्थ भोजपुरी या नेपाली भाषा में तलाब या झील होता है।

उपर बर्फ से लदी ढ़की अन्नपुर्णा श्रेणी की फिशटेल तरह की चोटी चमक रही थी। जिसे भुगोल की भाषा में हार्न कहते है, माउंट एवरेस्ट भी एक हार्न है और कुछ ऐसा ही दिखता है। पुरी श्रृखला की झील के पानी में प्रतिबंब नजर आ रहा था, जो पोखरा की खास पहचान है।

Thursday, January 11, 2018

देश दर्शन यात्रा भाग-2 desh darshan journey

कलाम सर से अविस्मरणीय मुलाकात !

आगरा से चल कर हमारा काफिला आज दिल्ली पहुँच गया, जवाहर नगर नाम था शायद जहाँ के विद्या मंदिर में अपना ठिकाना बनाया गया था। अगले दिन हमें तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. apj अब्दुल कलाम जी से मिलना था, तो आज का प्रोग्राम कुछ ऐतिहासिक स्थल दर्शन से होना निश्चित किया गया।सभी तैयार होकर बस में बैठ गये और बस चल पड़ी लालकिला और कुतुबमिनार की ओर।
▪लालकिला- लालकिला पहुँच कर हमने लाहौर गेट से प्रवेश किया, कुछ दुकाने थी सजावटी समानों की जहाँ से मैंने एक लकड़ी की कलम खरीद ली। आगे हमने दरबार-ए-आम और दरबार-ए-खास देखा,तख्ते-ताउस का स्थान देखा। फिर हमने लालकिला का म्युजियम देखा और बाहर आकर गुरूद्वारा शीशगंज और जामा मस्जिद भी देखा गया।फिर हम कुतुबमिनार की ओर चल पड़े।

Wednesday, September 27, 2017

देश दर्शन यात्रा 2007 भाग 1 desh darshan journey

#एक_घुम्मकण_की_जन्मकथा #भाग_1




पुर्वी उत्तर प्रदेश के एक जनपद बलिया के सरस्वती विद्या मंदिर में अक्टूबर 2007 सुबह की प्रार्थना सभा में घोषणा होती है कि तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी का देशभर के बच्चों से मिलने के क्रम में अपने विद्यालय को भी स्थान मिला है, साथ ही विद्यालय एक देश-दर्शन यात्रा भी आयोजित करना चाहता है जिसमें कई राज्यों के दर्शनीय स्थलों की यात्रा 22-25 दिनों में पुरी होनी है। खैर एक सामान्य ज्ञान परीक्षा के माध्यम से चयन होता है और दसवीं के एक 15 वर्षीय छात्र यानी मेरा भी चयन हुआ। बोर्ड के परीक्षा और लंबे सफर को लेकर मेरे माता-पिता भी चिंतित थे पर आखिर मेरे अतुल्य जिद और जनुन के आगे हार मान कर उन्हे आज्ञा देनी ही पड़ी। यात्रा शुल्क 5000रू था और पाॅकेट मे अधिकतम 500रू रखने की इजाजत, हमें एक यात्रा लिस्ट के अनुसार पैकिंग करनी थी जो विद्यालय द्वारा दी गयी थी। यात्रा क्रम में हमारा ठिकाना होना था, देश भर में फैले हुए हमारे विद्यालय संस्था के शिशु/विद्या मंदिर। निर्धारित यात्रा का दिन आया और सभी ने विद्यालय परिसर से हमें बस द्वारा विदा किया, पुरी यात्रा दो स्लीपर बसों से ही पुरी होनी थी, तो सारा राशन और सामान लोड कर दिया गया था, हमारे साथ जा रहे थे हमारे प्रधानाचार्य,8 शिक्षक, चार कर्मचारी  और रसोइये।

काठमांडू यात्रा भाग 1 kathmandu journey

#नेपाल_यात्रा #भाग_1


सैर कर दुनिया की गालिब, जिंदगानी फिर कहाँ!
जिंदगानी गर रही तो, नौजवानी फिर कहाँ!!
गालिब चच्चा की बात मानते हुए मैंने भी कुछ दोस्तों को मान मनौव्वल के बाद इकट्ठा कर झुण्ड का निर्माण किया और सर्व सम्मति से झुण्ड संचालक का पद भी ग्रहण कर लिया, क्योंकि इससे पहले हिमालय पर जाने वाला बस मैं इकलौता था। भारत की परिधि से बाहर जाकर हिमालय को निहारना और देश से बाहर भी अपनी संस्कृति की जड़ो को देखना हमेशा से ही मेरा सपना रहा है।

काठमांडू यात्रा भाग 2 kathmandu journey

#नेपाल_यात्रा #भाग_2
अगली सुबह उठते ही, नेपाली अखबारों को खंगाला बड़े ही मजेदार लगे। फिर सभी तैयार होकर पशुपतिनाथ के दर्शन करने चले, कुछ खास भीड़ भाड नही थी। मंदिर के अंदर बने खजुराहो की तरह की मुद्राऐ जो कि लकड़ी पर उकेरी गई थी आकर्षक थी पर फोटो की अनुमति नही। बागमती नदी के किनारे बसा यह नेपाल का सबसे प्राचीन मंदिर है। मंदिर का स्वरुप पारंपरिक नेपाली पैगोडा शैली का ही बना हुआ लगता है, लकड़ी, ताम्बे और सोने-चांदी जैसी धातुओं का प्रयोग किया गया है। फ़ोटो लेना तो मना था फिर भी मुख्य द्वार का ले लिया, सुबह सुबह भीड़ भी ज्यादा न थी। अप्रैल 2015 के भूकंप में यह मंदिर सुरक्षित बच गया था।

इसके बाद एक और है बौद्धनाथ स्तूप। यह नेपाल के सबसे बड़े स्तूपों में से एक है। कहा जाता है की गौतम बुद्ध की मृत्यु के तुरंत बाद ही इसका निर्माण किया गया था और इसकी स्थापत्य कला में तिब्बत की भी कुछ झलक मिलती है। यह काठमांडू के सबसे बड़े पर्यटन केन्द्रों में से एक है। गोलाकार संरचना के चारो तरफ से लोग चक्कर लगाते हुए देखे जा सकते हैं, साथ ही अनेक बौद्ध-भिक्षुओं का भी दर्शन कर सकते हैं। अप्रैल 2015 के महाभुकंप से यह बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ, जिससे इसके गुम्बद का उपरी हिस्सा टूट गया था , पर फिर से कुछ ही महीनों में गुम्बद की दुबारा मरम्मत की गयी। पशुपतिनाथ और बौद्धनाथ दोनों ही UNESCO द्वारा विश्व विरासत घोषित किये गए हैं। इसी तरह स्वयंभूनाथ भी प्रसिद्द स्तूप है, वैसे यहाँ और भी ढेर सारे बौद्ध और हिन्दू मंदिरों की लंबी फेहरिस्त है लेकिन सभी की बनावट करीब करीब एक जैसी ही है जिस कारण हमने वहाँ जाने की उतनी जिज्ञासा भी न हुई।

काठमांडू यात्रा भाग 3 kathmandu journey

#नेपाल_यात्रा #भाग_3


काठमांडू मे आज दुसरी रात बहुत शानदार रही और झुण्ड सभी लोगों ने अपने अपने तरीके से इंजाय किया। अगली सुबह सबको जगाने में परिश्रम करना पड़ा, कुछ लोग सुबह वाले सरदर्द के शिकार थे। खैर जल्दी से होटल के काॅप्लिमेंट्री नास्ते का आनंद उठा सभी तैयार थे। काठमांडू भ्रमण को।

आज काठमांडू भ्रमण पुरा कर लेने के इरादे से जल्दी- जल्दी सारे जगहों को कवर करने का निश्चय किया गया। जो इस प्रकार थे।
• #दरबार_स्कायर- प्राचीन स्थल, ढेर सारे लकड़ी के भवन(काष्ठ मंडप) जिनके कारण ही इस शहर का नाम काठमांडू पड़ा। सभी भवन आकर्षक थे खास कर 55 खिड़कीयो वाला घर, सभी मंडपो को धातु और नक्काशी से सुदंरतापुर्वक सजाया गया था।
• #नरायनहिती_पैलेस - पुराना राज निवास जहाँ 2008 में समस्त राचपरिवार का नरसंहार हुआ था, राजकुमार के हाथों ही फिर इस म्यूजियम बना दिया गया। राज परिवार आजकल हनुमार द्वारा मे रहता है।

काठमांडू यात्रा भाग 6 kathmandu journey

नेपाल यात्रा भाग 6 अंतिम दिन



पोखरा के सभी दर्शनीय स्थानों को देखने के बाद, जब वापस होटल जाने की बारी आयी तो एकदम से एक सन्नाटा सा पसर गया। सभी एक दुसरे को देख बस मुस्कुरा रहे थे, शायद इस इस जगह को छोड़ जाने का सबको दुःख था, पर बता कोई नही रहा। अचानक एक मित्र ने फिर आने की बात की और माहौल जीवंत हो उठा। होटल आए तो संचालक ने खाने के विषय में पुछा सबने अपनी पसंद बतायी, और मैंने अपना सबसे पसंदीदा तिब्बती डिश "थुकपा"या "थुप्पा" का नाम लिया, और जवाब मिला- मिल जाएगी। सभी ने हिराकत से मुझे देखा पर बस अपने को ऑक्सर मिल गया जैसे।

डिनर मजेदार रहा, कोई लोकल वाईन भी पेश की गयी।
सुबह तड़के ही भारत के लिए निकलना था, ताकि शहर से तुरंत बिना जाम के निकल सके।
सुबह का माहौल ही अलग था, सभी घर के नाम से चहक रहे थे जो कल उदास भी थे। कुछ प्रीकुक्ड खाने का समान, मिनरल वाटर रखने के बाद महादेव के जयकारे से यात्रा प्रारंभ हुई और थोड़े समय बाद शहर से निकल कर वापस पहाड़ो के बीच आ गये थे।

Monday, September 18, 2017

काठमांडू यात्रा भाग 4 kathmandu journey


#नेपाल_यात्रा #भाग_4


आज तीसरे दिन पुरा झुण्ड पोखरा जाने के लिए उत्साहित था, और जल्द से जल्द पोखरा पहुँचने के लिए सभी बेचैन थे। खैर काठमांडू के होटल को टाटा कर सुबह 5बजे ही हम पोखरा के लिए निकल पड़े। 200 km की यात्रा थी जो रम्य नदी-नालो ,झरनो और पहाड़ो से सजी हुई थी। थोड़ी दूर निकलते ही पुरा काठमांडू शहर के दर्शन होने लगे।
थोड़ा आगे बढ़ने पर सभी आश्चर्य से एक ओर देखने लगे, वो था मनोकामना मंदिर जाने के लिए बनाया गया, तकरीबन 3km लंबा रोप वे, जो धीरे धीरे बादलों के बीच से होता हुआ मनोकामना मंदिर की रोमांचक यात्रा 20 मिनट में पुरी करवा रहा था। चुकने का तो प्रश्न ही नही था, पर किराया700 रू हर व्यक्ति था। खैर टिकट लिया गया और पहले 5मिनट में ही वो वसुल हो गया जव रोप वे एकदम 90° की खड़ी चढाई पर था, और धीरे धीरे बादलों से पार होकर उपर जा रहा था, रोमांच के मारे सभी सन्न थे और शरीर के सारे बाल खड़े हो गये,
उपर नेपाली पैगोडा शैली का बना प्राचीन मंदिर था।