#नेपाल_यात्रा #भाग_1
सैर कर दुनिया की गालिब, जिंदगानी फिर कहाँ!
जिंदगानी गर रही तो, नौजवानी फिर कहाँ!!
गालिब चच्चा की बात मानते हुए मैंने भी कुछ दोस्तों को मान मनौव्वल के बाद इकट्ठा कर झुण्ड का निर्माण किया और सर्व सम्मति से झुण्ड संचालक का पद भी ग्रहण कर लिया, क्योंकि इससे पहले हिमालय पर जाने वाला बस मैं इकलौता था। भारत की परिधि से बाहर जाकर हिमालय को निहारना और देश से बाहर भी अपनी संस्कृति की जड़ो को देखना हमेशा से ही मेरा सपना रहा है।
धीरे-धीरे यात्रा का निर्धारित समय नजदीक आया और हमारे झुण्ड ने सार्वजनिक वाहन के स्थान पर निजि वाहन से जाने का विचार किया गया, ये फैसला हांलाकि मुझे बहुत भारी पड़ा और पिता श्री और हमारे ड्राइवर को उच्च हिमालयी क्षेत्र में गाड़ी ले जाने के लिए मनाने में दांतो तले पसीना आ गया। भरी बरसात, लैण्डस्लाइड और खिसकते पहाड़ हमारी परीक्षा लेने को कमर कस कर तैयार थे, तो हमारा इरादा भी और मजबुत होता जा रहा था। 8 सितम्बर 2017 को हमारा काफिला नेपाल के शहर पोखरा, बाया काठमांडू,लुंबिनी के लिए चल पड़ा। इस तरह हमने भारत और नेपाल के भू-भाग पर एक बड़ा वृत अपने घुम्मकणी से खींच दिया। देर न करते हुए लिजिए पेश है एक घुम्मकण की जीवन डायरी के कुछ पृष्ठ-
तमाम उहापोह, खराब मौसम और लैण्डस्लाइड से भरे रास्तों से होकर हमारा झुण्ड बिहार के रक्सौल बार्डर से यात्रा परमिट"धनसार" बनवा कर, प्राकृतिक सौंदर्य से नहाए रास्तों को पार कर सुबह के 4 बजे बागमती नदी के किनारे स्थित काठमांडू पहूॅच गया। अन्य भारतीय पहाड़ी शहरों की तरह यहाँ आत्मीयता,शांति और सद्भाव कहीं दूर तक नजर नहीं आ रहे थे, और पशुपतिनाथ के शहर में हमारा सामना हुआ, शराब-शबाब-कबाब के नदी मे डुबते उतराते बैंकाक और बाली से टक्कर लेता एक तंत्रविहिन लचर प्रशासन वाले शहर से, जहाँ सुबह 4 बजे पबो और डिस्को से निकलती युवाओं की भीड़ से हमें सहज ही अंदाजा हो गया पश्चिमी संस्कृति से इस बिगड़ते शहर का, और जहाँ हर तीसरा आदमी हम युवकों के झुण्ड को "मजे" के लिए प्रेरित करता दिखा।
खैर mmt से पहले से बुकिंग थी तो सीधे होटल ही रवाना हुए। पुरा दिन आराम के बाद शाम को स्थानीय बाजार भ्रमण हुआ और कुछ जानकारीयाॅ इक्कठा की गयी। .. क्रमशः
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