#नेपाल_यात्रा #भाग_2
अगली सुबह उठते ही, नेपाली अखबारों को खंगाला बड़े ही मजेदार लगे। फिर सभी तैयार होकर पशुपतिनाथ के दर्शन करने चले, कुछ खास भीड़ भाड नही थी। मंदिर के अंदर बने खजुराहो की तरह की मुद्राऐ जो कि लकड़ी पर उकेरी गई थी आकर्षक थी पर फोटो की अनुमति नही। बागमती नदी के किनारे बसा यह नेपाल का सबसे प्राचीन मंदिर है। मंदिर का स्वरुप पारंपरिक नेपाली पैगोडा शैली का ही बना हुआ लगता है, लकड़ी, ताम्बे और सोने-चांदी जैसी धातुओं का प्रयोग किया गया है। फ़ोटो लेना तो मना था फिर भी मुख्य द्वार का ले लिया, सुबह सुबह भीड़ भी ज्यादा न थी। अप्रैल 2015 के भूकंप में यह मंदिर सुरक्षित बच गया था।
इसके बाद एक और है बौद्धनाथ स्तूप। यह नेपाल के सबसे बड़े स्तूपों में से एक है। कहा जाता है की गौतम बुद्ध की मृत्यु के तुरंत बाद ही इसका निर्माण किया गया था और इसकी स्थापत्य कला में तिब्बत की भी कुछ झलक मिलती है। यह काठमांडू के सबसे बड़े पर्यटन केन्द्रों में से एक है। गोलाकार संरचना के चारो तरफ से लोग चक्कर लगाते हुए देखे जा सकते हैं, साथ ही अनेक बौद्ध-भिक्षुओं का भी दर्शन कर सकते हैं। अप्रैल 2015 के महाभुकंप से यह बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ, जिससे इसके गुम्बद का उपरी हिस्सा टूट गया था , पर फिर से कुछ ही महीनों में गुम्बद की दुबारा मरम्मत की गयी। पशुपतिनाथ और बौद्धनाथ दोनों ही UNESCO द्वारा विश्व विरासत घोषित किये गए हैं। इसी तरह स्वयंभूनाथ भी प्रसिद्द स्तूप है, वैसे यहाँ और भी ढेर सारे बौद्ध और हिन्दू मंदिरों की लंबी फेहरिस्त है लेकिन सभी की बनावट करीब करीब एक जैसी ही है जिस कारण हमने वहाँ जाने की उतनी जिज्ञासा भी न हुई।
पहाड़ो की धुप कुछ ही देर में पस्त कर देती है तो यात्रा बहुमत से अगले दिन के लिए स्थगित कर स्थानीय बाजार से कुछ खरीदारी करने का निर्णय हुआ। भुख भी लग रही थी पर झुण्ड के लिए शाकाहारी भोजन की तलाश में बहुत कठिनाई हुई, नेपाली मुख्यतः मांसाहारी होते है, और बड़े जानवरों का इस्तेमाल करते है। भैंसे को ये बड़ा बकरा कहते है। दिन और रात के काठमांडू में जमीन असमान का अंतर दिख रहा था। शाम होते ही शहर का एक हिस्सा भड़किले डिस्को, देह व्यापार और नशे में डुब जाता है। खैर दिन भर घुम कर कमरों के नर्म बिस्तर से बेहतर कुछ नही लग रहा था। आगे कि यात्रा क्रमशः
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