नालंदा-राजगीर-बोधगया यात्रा भाग - 8
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आपने बोधगया के बारे में सबकुछ जान ही लिया है तो अब बारी है बोधगया में प्रमुखता से दर्शनीय स्थलों की सैर की। अब चुःकि हम गौतम बुद्ध के शहर में थे तो आपको सबकुछ बुद्ध के नाम पर मिलेंगे, हमने भी एक बुद्धा हाइट्स नाम के एक होटल को अपना ठिकाना बनाया और सामान व्यवस्थित कर फ्रेश होकर थोड़ा आराम किया। हमारा होटल बोधगया के ठीक बीचों बीच था तथा सबकुछ आसपास ही था तो हमने पैदल घुमने की ही सोची और बाइक को पार्किंग में खड़ी कर दी।
यहाँ के दर्शनीय स्थलों के क्रम से विवरण निम्न है- शहर में घुसते ही अनेक देशों के अनेक सुदंर और विशेष शैली में निर्मित मंदिर देखने मिलते है फिर पास ही द ग्रेट बुद्धा की प्रतिमा है, इसके बाद आप बोधगया का संग्रहालय देखने जाइए, वहाँ से महाबोधी मंदिर और देर शाम बाजार का लुत्फ उठाइए।
विभिन्न देशों के कलात्मक मंदिर-मठ और ध्यान-योग केंद्र-
महाबोधि मंदिर के पश्िचम में पांच मिनट की पैदल दूरी पर स्थित है तिब्बती मठ जोकि बोधगया का सबसे बड़ा और पुराना मठ है,1934 ई॰ में बनाया गया था।
बर्मी विहार (गया-बोधगया रोड पर निरंजना नदी के तट पर स्थित) 1936 ई॰ में बना था। इस विहार में दो प्रार्थना कक्ष है। इसके अलावा इसमें बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा भी है। इससे सटा हुआ ही थाई मठ है (महाबोधि मंदिर परिसर से 1किलोमीटर पश्िचम में स्थित)। इस मठ के छत की सोने से कलई की गई है। इस कारण इसे गोल्डेन मठ कहा जाता है। इस मठ की स्थापना थाईलैंड के राजपरिवार ने बौद्ध की स्थापना के 2500 वर्ष पूरा होने के उपलक्ष्य में किया था।
इंडोसन-निप्पन-जापानी मंदिर (महाबोधि मंदिर परिसर से 11.5 किलोमीटर दक्षिण-पश्िचम में स्थित) का निर्माण 1972-73 में हुआ था। इस मंदिर का निर्माण लकड़ी के बने प्राचीन जापानी मंदिरों के आधार पर किया गया है। इस मंदिर में बुद्ध के जीवन में घटी महत्वपूर्ण घटनाओं को चित्र के माध्यम से दर्शाया गया है।
चीनी मंदिर (महाबोधि मंदिर परिसर के पश्िचम में पांच मिनट की पैदल दूरी पर स्थित) का निर्माण 1945 ई॰ में हुआ था। इस मंदिर में सोने की बनी बुद्ध की एक प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर का पुनर्निर्माण 1997 ई॰ किया गया था।
जापानी मंदिर के उत्तर में भूटानी मठ स्थित है। इस मठ की दीवारों पर नक्काशी का बेहतरीन काम किया गया है। यहां सबसे नया बना मंदिर वियतनामी मंदिर है। यह मंदिर महाबोधि मंदिर के उत्तर में 5 मिनट की पैदल दूरी पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 2002 ई॰ में किया गया है। इस मंदिर में बुद्ध के शांति के अवतार अवलोकितेश्वर की मूर्त्ति स्थापित है। महाबोधी मंदिर के चारों तयफ बिखरे ये सुदंर मंदिर कला की पराकाष्ठा पर स्थित है। इन मंदिरों का शांत और आलोकिक वातावरण मन को शांति पहुँचाने वाला होता है।
बोधगया पुरातत्व संग्रहालय-
बोधगया सर्वाधिक महत्वपूर्ण बौद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है, जहां भगवान बुद्ध को परम ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। महाबोधि मंदिर के परिसर से प्राप्त बहुमूल्य पुरावशेषों के समुचित संरक्षण के उद्देश्य से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा सन् 1956 ई• में पुरातत्व संग्रहालय बोधगया की स्थापना की गई।
इसके अतिरिक्त बोधगया व इसके निकटवर्ती स्थलों से प्राप्त पुरावशेषों को भी इस संग्रहालय में संजोया गया है, जो जनमानस को इस क्षेत्र के सांस्कृतिक विरासत से परिचित कराता है। संग्रहालय का मुख्य आकर्षण प्रस्तर-वेदिका (रेलिंग) के खंड हैं, जो मूलतः बोधि वृक्ष तथा महाबोधि मंदिर के चारों ओर घेरे के रूप में लगाए गए थे।<br>
बलुआ पत्थर तथा ग्रेनाइट से निर्मित वेदिका क्रमशः शुंग काल (दूसरी से पहली शताब्दी ई• पू•) तथा पूर्व मध्यकाल (6-7वीं सदी) की है। वेदिका स्तंभों के अलंकृत वृत्ताकार फलक को तथा पट्टिकाओं पर जातक कथाएं बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाएं राशि चिन्ह एवं लोक जीवन के विभिन्न विषयों का सुंदर अंकन है। कुछ स्तंभ अभिलेख युक्त भी हैं, जिन पर शायद उनके दानदाताओं के नाम अंकित हैं।
इस संग्रहालय में पाल कालीन आठवीं से बारहवीं सदी ईस्वी मूर्तियों का अनूठा संग्रह है, इनमें विभिन्न मुद्राओं में बुद्ध, मैत्रेय, मंजूश्री, पद्मपाणी, तारा, जंम्भल आदि बोधि मूर्तियों के साथ-साथ ब्राह्मण धर्म से संबंधित विष्णु, सूर्य, उमा-महेश्वर, गणेश, कामदेव आदि की प्रतिमाएं भी उल्लेखनीय है।
बोधगया मंदिर से 1 किलोमीटर पूर्व दिशा में बकरौर ग्राम स्थित सुजातागढ़ टीले के उत्खनन से प्राप्त पुरा सामग्री भी इस संग्रहालय का विशेष आकर्षण है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किए गए उक्त उत्खनन से एक ईंट निर्मित स्तुप अनावृत हुआ है। जो भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति से पूर्व खीर का भोग समर्पित करने वाली सुजाता नाम की स्त्री की स्मृति में बनाया गया था।
इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी ⚘
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