नालंदा-राजगीर यात्रा ~ पुर्नजन्म की यात्रा, भाग - 1
विज्ञान वर्ग का विद्यार्थी होते हुए भी, इतिहास के प्रति बहुत ही लगाव और झुकाव हमेशा से रहा है, इसलिए मेरी घुम्मकड़ी भी ऐतिहासिक जगहों के आस पास ही मंडराती रहती है। मेरी हमेशा से दिलचस्पी रही है किताबों में वर्णित जगहों पर जाना उन्हे साक्षात देखना, महसूस करना, समझना और सीख लेना। यद्यपि की ढ़ेर सारे ऐतिहासिक स्थलों की सैर कर चुका हूँ, तथापि अपने से सबसे पास स्थित नालंदा विश्वविद्यालय के खडंहरो को देखने की हार्दिक इच्छा ना जाने कब से थी। शायद स्कूल के दिनों में इतिहास की किताबों में देखी गई नालंदा विश्वविद्यालय के खडंहरो की तस्वीरों बाद ही, अभी हाल ही में उसे UNESCO की वर्ल्ड धरोहर में शामिल किया गया था, उन्ही दिनों अभयानंद सिन्हा जी का राजगृह यात्रा वर्णन पढ़ने को मिला और उसने आग में घी का काम किया।
फिर हमने बलिया-छपरा-पटना-बिहार शरीफ-नालंदा-राजगीर-बोधगया-औरंगाबाद-सासाराम तक की बाइक ट्रिप प्लान की। सबने मेरे इस निर्णय की मुक्तकंठ से कठोर निंदा की, क्योंकि बाढ़ और लगातार बरसात में इतनी दूर बाइक से जाना सभी को मुर्खतापुर्ण काम लगा। किसी तरह अपने चार दोस्तों को भी राजगृह के मनोरम पर्यटक स्थलों का लालच दे तैयार कर लिया, निर्धारित दिन दो लोगों ने हाथ खड़े कर दिए और हम तीन ही निकल पड़े अपनी घुम्मकणी यात्रा पर..
सुबह मुँहअंधेरे 4 बजे स्थानिय देवता भृगु ऋषि से आर्शीवाद लेकर हम अपने यात्रापथ पर आ गये और तुरंत ही इंद्र-वरूण भी हमें विदाई देने आ गये।
बाइक के हैडलाइट के सहारे हम तीन यायावर झमाझम बरसात और अंधेरे में अंधाधुँध चले जा रहे थे, शहर से बाहर आए अब सुनसान ग्रामीण इलाका था तकरीबन 50km तक, आगे चलने पर अब बारिश बिल्कुल रूक गई तो हम वापस अपने रेनकोट पैक कर वापस आधे अधुरे कपडों में आ गये।
उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर ही गंगा और घाघरा का विशाल संगम है जैसे कोई अंतहीन समुद्र लहरा रहा हो। कुछ देर घाघरा पर बने पुल पर रूके फिर कालांतर के मगध साम्राज्य के पहले क्षेत्र सारण(छपरा) में प्रवेश किया सड़के की हालत बहुत बेहतरीन थी तो अपनी स्पीड भी बढ़ गई। उन दिनो बिहार में शराबबंदी की खूब चर्चा थी तो सीमा पर हमारी तलाशी और सांसो की जांच भी की गई। शहर में घुसते ही सड़क की हालत सतयुग से कलियुग हो गई, गिरते पड़ते बाहर निकले तो पटना राजमार्ग पर श्रावण मास के कारण जगह जगह नो इंट्री के कारण हजारों ट्रकों का काफिला मिला, राजमार्ग पर भी निर्माण कार्य चल रहा था तो कीचड़ और फिसलन की कोई कमी नही थी पर मेरे उपर तो जल्द से जल्द नालंदा पहुँचने का जुनून छाया हुआ था जैसे पता नहीं कहाँ जा रहा हूँ ये मेरी पहली ग्रुप में लंबी बाइक यात्रा नहीं थी,पर उमंग ऐसी पहले कभी नहीं थी जैसे भगवान से ही मिलने जा रहा हूँ। तो मैं बाइक के साथ कलाकारी करते हुए तेजी से आगे निकलने लगा और मेरे और साथियों के बीच फासला 25 km तक बढ़ गया। खुली सड़क पर आने के बाद मैं अपने साथियों का इंतज़ार करने लगा, गुस्से में भन्नाए वो आते दिखे और बिना मतलब की हुई कसरत के लिए मुझे ढेर सारी लानते भेजी और मेरे तेज चलने से राहगीरों को हुए कष्ट की मिमांसा भी की।
खैर अब हम साथ चल रहे थे, पर मेरी स्वाभाविक गति ही तेज चलने की है तो मैं वापस आगे आ गया, आगे सोनपुर से थोड़ा पहले एक कस्बे परमानंदपुर के पास से ही एक नया सड़क-रेलयुक्त गंगापुल बनकर तैयार है जिसके बारे में अभी सभी को पता नहीं है। यहाँ भी इंतज़ार करना पड़ेगा, नये बने खाली पड़े चार लेन के 5.5km लंबे पुल पर बाइक को फूल थ्राटल में भगाने का मजा ही आ गया। अब सबके साथ ही पाटलीपुत्र में प्रवेश किया। जब हम क्रुजी होली फैमेली हाॅस्पीटल के सामने से गुजरे तो मैंने गाड़ी रोक कर अपनी जन्मभूमि को प्रणाम किया फिर आगे पटना शहर के जाम से जूझते, गोलगुंबद को निहारते शहर से बाहर निकल आए बख्तियारपुर हाइवे पर..
खुली सड़क मिलते ही हम फिर तेजी से उड़ने लगे थे की एक जगह से हाइवे छोड़ बिहार शरीफ जाने के लिए छोटा कस्बाई रास्ता था। अब हम एक सिंगल लेकिन खुबसुरत सड़क पर थे, पुरे रास्ते मनमोहक ग्रामीण जीवन की छाप थी जैसे हम सचमुच ही 2300 साल पहले के मगध साम्राज्य में हो, बारिश से भरे ताल-तलैया, सड़क के दोनों और भरा पानी, a धान के हरे खेत, आसमान में आते-जाते बादल, रह रह कर दिखता नीला आसमान, गुनगुनी सी धूप, अपने काम में मशगूल ग्राम्य ललनाए, हरियाली की अप्रितम छटा, प्रकृति की खुबसुरती के क्या कहने थे, की हमारे कदम चलने में ठिठकने लगे जहाँ-तहाँ रूकने स्थानीय स्वाद लेते हम दोपहर 12 बजे बिहार शरीफ जा पहुँचे। रास्ते में चलती पुजा से भूख का कोई अता पता नहीं था। गुगल बाबा की मदद से यहाँ हमने पाल शासक गोपाल द्वारा स्थापित ओदंतपुरी विहार के अवशेष और बिहार शरीफ की मजार देखी।और निकल पड़े अपनी मंजिल नालंदा की ओर.. सुबह से 230 km बाइक चलाने के बाद मेरे दोस्तों की हालत खराब थी, और वो मुझे रूकने के लिए गुस्से से देखने लगे। विद्रोह के लक्षण देखते हुए मैंने राजगीर के दो एक होटलों में फोन किया और बढ़िया रूम की जानकारी देकर माहौल को शांत किया ही था की नालंदा विश्वविद्यालय परिसर का मुख्यद्वार देखकर में चलती बाइक पर ही खड़ा हो गया। पता नहीं मैं कितना खुश था.. जैसे अपने घर आ गया हूँ।
क्रमशः
इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी ⚘
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सुबह मृगांक बाबू पहले साथी |
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बढ़िया सड़क और उड़ने को तैयार हम |
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अब तो भई चल पड़ी अपनी ये रेल है। मैं, मृगांक और अनिकेत बाबू। |
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पटना का गोलघर |
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ग्राम्य ललनाएँ, खेतों में भारत की खुबसुरती |
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अवर्णित सौन्दर्य |
आपका ये पोस्ट तो पढ़ लिया। आप और आपके साथियों का बलिया से नालंदा महाविहार के दरवाजे तक का सफर। जहां टिकट कटता है उसके सामने वाले मैदान में बहुत बड़ा घंटी टांगा हुआ है, वो देख पाए या नहीं। आपने लिखा नालंदा मुख्य द्वार तो कौन सा, बिहारशरीफ राजगीर सड़क से जो रास्ता नालंदा को गया है वो या फिर महाविहार का मुख्य द्वार।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया अभय भईया जी 🙏
Deleteहाँ देखा था पर फोटो लेना भूल गये फिर चार बार गये और हर बार भूल गये। लानत है मुझपर 😃
जो बाहर राजगीर रोड पर गेट है,बड़ा वाला लाल रंग का वहीं..
ब्लाँगरों के समूह मे आपका स्वागत है। अभी छोटे मोटे मेरे जैसे ब्लागर से भी बधाई स्वीकार कर लेने का कष्ट करें।पहला लेख ही वैश्विक स्तर के ऐतिहासिक धरोहर के यात्रा पर लिखा और बहुत खूब लिखा। शब्दों के जादूगर तो सब होते हैं विशेषणों के महारथी आप जैसे विद्वज ही होते हैं। आपकी गाड़ी भगाने की कलाकारी मैने भी सोनपुर मिलन के दौरान परखी थी और आपके रफ्तार के कायल भी हुए।घंटे का फोटो ना ले पाना इशारा है फिर से राजगीर मिलन की ओर...।बाकी जे है से होवे करी।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया विरेंन्द्र भईया जी, आप लोगों की ही हौसलाआफजाई है। और ये छोटे-मोटे ब्लाॅगर कब हुए?? आप तो कतई फिट थे, मैं तो लंबा और मोटा ब्लाॅगर बन गया हूँ 😃
Deleteबस कुछ शब्द जोडना सीख ही रहे अभी तो पहली बार ही लिखने का कोशिश किए।
सोनपुर में हमारी बाइक मिलन भी यादगार ही रहा था 😂 पता नहीं उस घंटे से क्या तो दुश्मनी है जब जाता हूँ तब वहाँ बाबू सोना जानू चिपके मिलते है। फिर मैं भूल जाता हूँ इस बार मई में जाएँगे कोई मजँनू की औलाद नहीं मिलेंगे तब..😃
जय हो
ReplyDeleteThnk u..
Deleteजय हिंद अनुराग जी.... आज कई दिनों के उपरांत मैने अपनी फेसबुक प्रोफ़ाइल पर चढ़ी मिट्टी झाड़नी चाही, तो आप की यह पोस्ट देख बेहद खुशी हुई कि आप भी ब्लॉगर बन गये। आपको याद होगा मैने आपसे कहा था कि अपनी लेखनी को संग्रहित किया करे जी।
ReplyDeleteजय हिंद.. सर जी, 🙏
Deleteजी, मुझे बिल्कुल ही याद है। आपके कहे अनुसार मैंने ब्लाॅग तो बना लिया पर जानकारी ना होने से यूँ ही पड़ा रहा। फिर अभ्यानंद जी के प्रयासों से कायाकल्प हो सका।
आपके यात्रा वर्णन पढ़ने से ही यात्रा ब्लाॅग पढ़ना शुरू किए थे, आपका कमेंट मेरे ब्लाॅग पर एक मेडल की तरह है जी। आपका बहुत बहुत शुक्रिया 😊😊🙏
अभी अभयानंद जी के तत्वाधान में ही लिख रहे है, लिखते है फिर चेक कराते है। समय के साथ बेहतरी का प्रयास रहेगा। 🙏🙏🙏
जय हिंद अनुराग जी.... आज कई दिनों के उपरांत मैने अपनी फेसबुक प्रोफ़ाइल पर चढ़ी मिट्टी झाड़नी चाही, तो आप की यह पोस्ट देख बेहद खुशी हुई कि आप भी ब्लॉगर बन गये। आपको याद होगा मैने आपसे कहा था कि अपनी लेखनी को संग्रहित किया करे जी।
ReplyDelete🙏🙏😊
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