बरसातों में नंदनकानन की ओर... भाग ~ ८
(हेमकुंड साहिब दर्शन) -2 25/08/2018
हेमकुंड साहिब का संबंध आखिरी सिख गुरू गोविन्द सिंह जी के पुर्वजन्म से है, उनकी लिखी एक किताब दशम् ग्रंथ के एक अध्याय 'बिचित्र नाटक' में ज्रिक आता है की पुर्वजन्म में जब गुरू गोविन्द सिंह एक सात पहाड़ो से घिरे हेमकुंड पर्वत के नीचे स्थित एक सरोवर के पास तपस्या करते हुए जब ब्रह्मलीन हो गये थे तब ईश्वरीय शक्ति ने उन्हे वापस दुनिया में जाकर लोगों को सही राह दिखाने का आदेश दिया था।
इस घटनाक्रम के बाद अनेक प्रयासों के बाद पंडित तारा सिंह नरोत्तम जी द्वारा 1888 में यह जगह खोज निकालने का ज्रिक एक धार्मिक पत्रिका में किया गया। जिसे भारतीय सेना के रिटायर्ड और टिहरी गढ़वाल गुरूद्वारा के ग्रंथी संतोख सिंह जी ने तमाम मुश्किलों के बाद दुबारा खोज निकाला तब सिख समाज की सहायता से, गोविंदघाट-गोविंदधाम (घांघरिया)-हेमकुंड सरोवर के किनारे गुरूद्वारा 1936ई• में बनाया गया।तभी से यह सिख धर्म का एक पवित्र तीर्थ स्थान बन गया है। इससे पहले यह स्थान स्थानिय लोगों का एक तीर्थ स्थान लोकपाल के नाम से जाना जाता था। मान्यता है की लोकपाल शेषावतार श्री लक्ष्मण जी ने यहाँ कठोर तप किया था तथा उनका बनाया एक छोटा मंदिर भी यहाँ था। गुरूद्वारे के निर्माण के क्रम में मंदिर का भी निर्माण करवाया गया था।
यह तो इस अलौकिक स्थान की धार्मिक मान्यताओं का वर्णन था। यहाके सात पहाड़ो की चोटियों की पहचान के लिए उन पर निशान साहिब की स्थापना की गई है पर कोहरे और बादलों से जब झील ही गायब हो जा रही हो तो उपर चोटी पर निशान देखने की तो बात ही व्यर्थ है मुझे तो उन पर्वतों की चोटियाँ तक नहीं दिखी थी... पर प्रकृतिप्रेमीयों के लिए यह जगह साक्षात देवतुल्य तीर्थस्थान है। दूर तक का मनमोहक नजारें रमणीक उच्च हिमालयी झील, दुर्लभ वनस्पति प्रजातियों का घर और खुले मौसम में आकर्षण का केन्द्र बर्फिली पर्वतीय चोटियाँ और भला किसी हिमालयप्रेमी घुम्मकड को चाहिए ही क्या।
दोपहर के 1:30 बजे थे और हेमकुंड साहिब पर सबको 2:30 तक ही रूकने की इजाजत है, लगातार बिगड़ते मौसम और अपने अभीष्ट फूलों की खोज के लिए में जल्दी ही वापस घांघरिया के लिए चल पड़ा था। वापसी के लिए जब मैं घोड़ो के स्टेशन तक आया तो मुझे वो खच्चर और उसका मालिक दिखाई दिए और मुझे दर्द की लहर याद आ गई, बारिश लगातार चलती ही रही थी। घोड़े और पालकी वाले अपने संभावित ग्राहकों की तलाश में सबसे पुछताछ कर रहे थे। मुझे तो बस केवल उन दो फूलों की तलाश थी जिनके पास जाने के लिए मैंने यह सारा कार्यक्रम रचाया था। ये है उच्च हिमालयी क्षेत्र में पायी जाने वाली दो पुष्पी वनस्पतियाँ पहली ब्लू पाॅपी और दूसरी ब्रह्मकमल वैज्ञानिक नाम Meconopsis betonicifolia और Saussurea obvallata..
रास्ते में आते हुए मुझे ढलानों पर कितने ही इनके पौधे दिखाई दिए थे। नजदीकी ब्रह्मकमल तो लोगों द्वारा उजाड़े जा चुके थे पर उपर कुछ चढ़ाई कर पर्वतों के डांडो पर अभी इनकी भरपुर मात्रा मौजूद थी, जहाँ आमतौर पर यात्रियों का पहुँचना नामुमकिन होता है। इन दुर्लभ वनस्पतियों के दर्शन की कीमत भी इतनी ही महंगी रही जितनी की यह खुद दुर्लभ है। दो दिनों में 30 km तक झमाझम बारिश में भयूडार और फूलों की घाटी में भटकने के बाद भी जब इनके दर्शन नहीं हुए तो मन उदास हो चला था, कि क्या इस यात्रा का उदेश्य इन दुर्लभ पुष्पों को स्वयं इनके प्राकृतिक आवास में उगते-खिलते देखना अधुरा रह जाएगा।
मुँह अंधेरे निकलना हेमकुंड के लिए 6 km की खड़ी चढ़ाई कर 3049m से 4633m ऊँचाई पर हेमकुंड साहिब पहुँचना, रास्ते भर धुआँधार बारिश का सामना करना, भीगते ठिठुरते और पैरों में छाले होने के बावजूद इनका कोई अता पता नही, बस हेमकुंड पर टिन के डिब्बे में लगा फूल मुँह चिढा रहा था, पर मेरी नजरें सब हलचलों से दूर पहाड़ी डांडे पर टिकी थी जहाँ इनके उपस्थिति के कुछ लक्षण नजर आ रहे थे। फिर घंटे भर की जहमत और हुई लगातार बरसते मेघ, कीचड़ में गड़े जा रहे जूते, काई-फिसलन और बड़े-2 चट्टानी टुकड़े जैसे तैसे उस धार पर चढ़े तो जैसे जन्नत ही मिल गई ब्रह्मकमल का एक अनछुआ सा पुरा खेत जिसमें अनगिनत ब्लू पाॅपी के पौधे और भी विभिन्न प्रकार के अल्पाइन वनस्पतियाँ मौजूद थी। ये थे प्रकृति और ईश्वर के दिव्य प्रतिनिधि और मंदिर, जहाँ सिर अपने आप नतमस्तक हो उठते हो, जहाँ अध्यात्म और करूणा के सागर आप के अंदर स्वमेव हिलोर ले उठे यहीं तो वास्तविक मनुष्यता के तीर्थ है।
बहुत देर तक इन फूलों के पास बैठ कर इन्हे निहारता रहा, ना जाने कब से यह इच्छा थी जो आज पुरी हुई। इस खुशी ने मुझे बिल्कुल भूला दिया था की यहाँ से वापस भी जाना है, पर्वत के धार पर बैठ कर नीचे पुरी घाटी का विहंगम नजारा दिखाई देता है। थोड़ी देर बाद भीगे कपड़े होने से ठंड ने अपना असर दिखाना शुरू किया तो जैसे-तैसे कीचड़ में लीपे पुते दोनों हाथों और पैरों को फंसा कर किसी तरह नीचे रास्ते तक उतरे, अब बहुत से लोग वापस जा रहे थे। चढ़ाई मैंने भले किसी कछुए या घोंघे जैसी की थी पर ढलान पर उतरने में तो कोई खरगोश या हिरण को मात दे ही सकता हूँ। छतरी की ओट से कुछ फोटो लेते लक्ष्मणगंगा के पुल तक आ पहुँचा था, बारिश से पानी की मात्रा काफी बढ़ गई थी और यह झरना भी अपने रौद्र रूप में आ चुका था। यहाँ बस एक कामचलाऊ पुल बनाया गया है। अभी बारिश भी हवा के साथ कोण से आकर भीगो रही थी तब कैमरा को संभाल कर बस तेजी से उतरने में जुट गया।
फिसलन भरे और झरना बने रास्तों पर जाॅगिंग करते हुए या लगभग टप्पे खाता हुआ मैं दनादन उतरने लगा जल्दी ही मैंने सभी उतरने वालों को पीछे छोड़ दिया था, मेरे आगे बस एक निहंग सरदार जी अपना भाला लिये हुए उतर रहे थे। उनकी रफ्तार तक पहुँचना तो जैसे खड़ी उतराई पर दौड़ने के बराबर थी। जंगलों वाले रास्तों पर जल्दी-2 उतरना खतरनाक लग रहा था पर मेरे पीछे तो जैसे मौत ही पड़ी हुई थी। घंटे-दो घंटे के अंदर में हेमकुंड-फूलों की घाटी के तिराहे पर पहुँच गया था। इक्का दुक्का यात्री बारिश से परेशान होकर फूलों की घाटी से भी वापस आ रहे थे। गुरूद्वारा पहुँच कर मैंने माथा टेका और लंगर में एक बड़ा गिलास चाय पीया,
मुझको इतना जल्दी आया देखकर ज्योति जी हैरान थी। उनको अनुमान था की मैं देर शाम तक ही वापस आ पाऊँगा आज उन्होंने अपने पैरों को आराम देते हुए उन्होंने आज के दिन को शबदकिर्तन और घांघरिया घुमने मे ही बिताया था। साथ-ही साथ उन्होंने गुरूद्वारे में आज के लिए भी रजिस्ट्रेशन करवा दिया था। भीगे जुतों के साथ धमाधम उतरने का एक नुकसान हुआ की पैरों की बैंड बज गयी, शाम ढलने तक मैंने पैरों में डस्टिंग पावडर डालकर गर्म पट्टी से लपेट आराम किया था। ट्रैक पुरा होने की खुशी में आज घांघरिया में ही एक नेपाली ढाबे में मेरी मोमोज की पार्टी थी।
शाम को हमने जुते और कपड़े सुखाने वालें दुकानों पर पता किया पर उसने जैकेट सुखाने के लिए ही 400 रू मांग लिए थे, हमने ढाबे पर घंटो मोमोज और भूट्टे खाने के दौरान ही वहाँ जलते तंदूर पर अपने जुतें और जैकेट सुखा डाले थे। देर शाम खा-पीकर वापस आने के बाद तो बस अपना बिस्तर ही दिखाई दे यहा था। आज रात जमकर बारिश होने वाली थी बादलों की गड़गडाहट तेज हो रही थी। कल सुबह हमें यह सुंदर जगह छोड़कर वापस पुलना तक 12km का ट्रैक करना था.. आज आखिरी दिन होने से कहीं भीतर थोड़ा दुःख भी था। ना जाने फिर कभी यहाँ आने का मौका मिले ना मिले..
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इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘
(हेमकुंड साहिब दर्शन) -2 25/08/2018
हेमकुंड साहिब का संबंध आखिरी सिख गुरू गोविन्द सिंह जी के पुर्वजन्म से है, उनकी लिखी एक किताब दशम् ग्रंथ के एक अध्याय 'बिचित्र नाटक' में ज्रिक आता है की पुर्वजन्म में जब गुरू गोविन्द सिंह एक सात पहाड़ो से घिरे हेमकुंड पर्वत के नीचे स्थित एक सरोवर के पास तपस्या करते हुए जब ब्रह्मलीन हो गये थे तब ईश्वरीय शक्ति ने उन्हे वापस दुनिया में जाकर लोगों को सही राह दिखाने का आदेश दिया था।
इस घटनाक्रम के बाद अनेक प्रयासों के बाद पंडित तारा सिंह नरोत्तम जी द्वारा 1888 में यह जगह खोज निकालने का ज्रिक एक धार्मिक पत्रिका में किया गया। जिसे भारतीय सेना के रिटायर्ड और टिहरी गढ़वाल गुरूद्वारा के ग्रंथी संतोख सिंह जी ने तमाम मुश्किलों के बाद दुबारा खोज निकाला तब सिख समाज की सहायता से, गोविंदघाट-गोविंदधाम (घांघरिया)-हेमकुंड सरोवर के किनारे गुरूद्वारा 1936ई• में बनाया गया।तभी से यह सिख धर्म का एक पवित्र तीर्थ स्थान बन गया है। इससे पहले यह स्थान स्थानिय लोगों का एक तीर्थ स्थान लोकपाल के नाम से जाना जाता था। मान्यता है की लोकपाल शेषावतार श्री लक्ष्मण जी ने यहाँ कठोर तप किया था तथा उनका बनाया एक छोटा मंदिर भी यहाँ था। गुरूद्वारे के निर्माण के क्रम में मंदिर का भी निर्माण करवाया गया था।
यह तो इस अलौकिक स्थान की धार्मिक मान्यताओं का वर्णन था। यहाके सात पहाड़ो की चोटियों की पहचान के लिए उन पर निशान साहिब की स्थापना की गई है पर कोहरे और बादलों से जब झील ही गायब हो जा रही हो तो उपर चोटी पर निशान देखने की तो बात ही व्यर्थ है मुझे तो उन पर्वतों की चोटियाँ तक नहीं दिखी थी... पर प्रकृतिप्रेमीयों के लिए यह जगह साक्षात देवतुल्य तीर्थस्थान है। दूर तक का मनमोहक नजारें रमणीक उच्च हिमालयी झील, दुर्लभ वनस्पति प्रजातियों का घर और खुले मौसम में आकर्षण का केन्द्र बर्फिली पर्वतीय चोटियाँ और भला किसी हिमालयप्रेमी घुम्मकड को चाहिए ही क्या।
दोपहर के 1:30 बजे थे और हेमकुंड साहिब पर सबको 2:30 तक ही रूकने की इजाजत है, लगातार बिगड़ते मौसम और अपने अभीष्ट फूलों की खोज के लिए में जल्दी ही वापस घांघरिया के लिए चल पड़ा था। वापसी के लिए जब मैं घोड़ो के स्टेशन तक आया तो मुझे वो खच्चर और उसका मालिक दिखाई दिए और मुझे दर्द की लहर याद आ गई, बारिश लगातार चलती ही रही थी। घोड़े और पालकी वाले अपने संभावित ग्राहकों की तलाश में सबसे पुछताछ कर रहे थे। मुझे तो बस केवल उन दो फूलों की तलाश थी जिनके पास जाने के लिए मैंने यह सारा कार्यक्रम रचाया था। ये है उच्च हिमालयी क्षेत्र में पायी जाने वाली दो पुष्पी वनस्पतियाँ पहली ब्लू पाॅपी और दूसरी ब्रह्मकमल वैज्ञानिक नाम Meconopsis betonicifolia और Saussurea obvallata..
रास्ते में आते हुए मुझे ढलानों पर कितने ही इनके पौधे दिखाई दिए थे। नजदीकी ब्रह्मकमल तो लोगों द्वारा उजाड़े जा चुके थे पर उपर कुछ चढ़ाई कर पर्वतों के डांडो पर अभी इनकी भरपुर मात्रा मौजूद थी, जहाँ आमतौर पर यात्रियों का पहुँचना नामुमकिन होता है। इन दुर्लभ वनस्पतियों के दर्शन की कीमत भी इतनी ही महंगी रही जितनी की यह खुद दुर्लभ है। दो दिनों में 30 km तक झमाझम बारिश में भयूडार और फूलों की घाटी में भटकने के बाद भी जब इनके दर्शन नहीं हुए तो मन उदास हो चला था, कि क्या इस यात्रा का उदेश्य इन दुर्लभ पुष्पों को स्वयं इनके प्राकृतिक आवास में उगते-खिलते देखना अधुरा रह जाएगा।
मुँह अंधेरे निकलना हेमकुंड के लिए 6 km की खड़ी चढ़ाई कर 3049m से 4633m ऊँचाई पर हेमकुंड साहिब पहुँचना, रास्ते भर धुआँधार बारिश का सामना करना, भीगते ठिठुरते और पैरों में छाले होने के बावजूद इनका कोई अता पता नही, बस हेमकुंड पर टिन के डिब्बे में लगा फूल मुँह चिढा रहा था, पर मेरी नजरें सब हलचलों से दूर पहाड़ी डांडे पर टिकी थी जहाँ इनके उपस्थिति के कुछ लक्षण नजर आ रहे थे। फिर घंटे भर की जहमत और हुई लगातार बरसते मेघ, कीचड़ में गड़े जा रहे जूते, काई-फिसलन और बड़े-2 चट्टानी टुकड़े जैसे तैसे उस धार पर चढ़े तो जैसे जन्नत ही मिल गई ब्रह्मकमल का एक अनछुआ सा पुरा खेत जिसमें अनगिनत ब्लू पाॅपी के पौधे और भी विभिन्न प्रकार के अल्पाइन वनस्पतियाँ मौजूद थी। ये थे प्रकृति और ईश्वर के दिव्य प्रतिनिधि और मंदिर, जहाँ सिर अपने आप नतमस्तक हो उठते हो, जहाँ अध्यात्म और करूणा के सागर आप के अंदर स्वमेव हिलोर ले उठे यहीं तो वास्तविक मनुष्यता के तीर्थ है।
बहुत देर तक इन फूलों के पास बैठ कर इन्हे निहारता रहा, ना जाने कब से यह इच्छा थी जो आज पुरी हुई। इस खुशी ने मुझे बिल्कुल भूला दिया था की यहाँ से वापस भी जाना है, पर्वत के धार पर बैठ कर नीचे पुरी घाटी का विहंगम नजारा दिखाई देता है। थोड़ी देर बाद भीगे कपड़े होने से ठंड ने अपना असर दिखाना शुरू किया तो जैसे-तैसे कीचड़ में लीपे पुते दोनों हाथों और पैरों को फंसा कर किसी तरह नीचे रास्ते तक उतरे, अब बहुत से लोग वापस जा रहे थे। चढ़ाई मैंने भले किसी कछुए या घोंघे जैसी की थी पर ढलान पर उतरने में तो कोई खरगोश या हिरण को मात दे ही सकता हूँ। छतरी की ओट से कुछ फोटो लेते लक्ष्मणगंगा के पुल तक आ पहुँचा था, बारिश से पानी की मात्रा काफी बढ़ गई थी और यह झरना भी अपने रौद्र रूप में आ चुका था। यहाँ बस एक कामचलाऊ पुल बनाया गया है। अभी बारिश भी हवा के साथ कोण से आकर भीगो रही थी तब कैमरा को संभाल कर बस तेजी से उतरने में जुट गया।
फिसलन भरे और झरना बने रास्तों पर जाॅगिंग करते हुए या लगभग टप्पे खाता हुआ मैं दनादन उतरने लगा जल्दी ही मैंने सभी उतरने वालों को पीछे छोड़ दिया था, मेरे आगे बस एक निहंग सरदार जी अपना भाला लिये हुए उतर रहे थे। उनकी रफ्तार तक पहुँचना तो जैसे खड़ी उतराई पर दौड़ने के बराबर थी। जंगलों वाले रास्तों पर जल्दी-2 उतरना खतरनाक लग रहा था पर मेरे पीछे तो जैसे मौत ही पड़ी हुई थी। घंटे-दो घंटे के अंदर में हेमकुंड-फूलों की घाटी के तिराहे पर पहुँच गया था। इक्का दुक्का यात्री बारिश से परेशान होकर फूलों की घाटी से भी वापस आ रहे थे। गुरूद्वारा पहुँच कर मैंने माथा टेका और लंगर में एक बड़ा गिलास चाय पीया,
मुझको इतना जल्दी आया देखकर ज्योति जी हैरान थी। उनको अनुमान था की मैं देर शाम तक ही वापस आ पाऊँगा आज उन्होंने अपने पैरों को आराम देते हुए उन्होंने आज के दिन को शबदकिर्तन और घांघरिया घुमने मे ही बिताया था। साथ-ही साथ उन्होंने गुरूद्वारे में आज के लिए भी रजिस्ट्रेशन करवा दिया था। भीगे जुतों के साथ धमाधम उतरने का एक नुकसान हुआ की पैरों की बैंड बज गयी, शाम ढलने तक मैंने पैरों में डस्टिंग पावडर डालकर गर्म पट्टी से लपेट आराम किया था। ट्रैक पुरा होने की खुशी में आज घांघरिया में ही एक नेपाली ढाबे में मेरी मोमोज की पार्टी थी।
शाम को हमने जुते और कपड़े सुखाने वालें दुकानों पर पता किया पर उसने जैकेट सुखाने के लिए ही 400 रू मांग लिए थे, हमने ढाबे पर घंटो मोमोज और भूट्टे खाने के दौरान ही वहाँ जलते तंदूर पर अपने जुतें और जैकेट सुखा डाले थे। देर शाम खा-पीकर वापस आने के बाद तो बस अपना बिस्तर ही दिखाई दे यहा था। आज रात जमकर बारिश होने वाली थी बादलों की गड़गडाहट तेज हो रही थी। कल सुबह हमें यह सुंदर जगह छोड़कर वापस पुलना तक 12km का ट्रैक करना था.. आज आखिरी दिन होने से कहीं भीतर थोड़ा दुःख भी था। ना जाने फिर कभी यहाँ आने का मौका मिले ना मिले..
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इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘
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लंगर हाॅल, निशान साहिब, हेमकुंड साहिब गुरूद्वारा, सरोवर, पहाड़ |
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घिरते आते बादल |
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तीर्थ वाली दुकानें प्रवेश द्वार के पास ही जहाँ घोड़ों का स्टेशन है। |
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फूलों से खिलखिलाती घाटी और ढलानें |
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फूलों से भरी ढलानें रास्ते और घाटी में जमकर बरसते बादल |
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पीले फूलों की बहार |
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मामूली फर्न भी सोहबत में आकर्षक दिखते है। |
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वापसी पर ढलान उतरते, दूर दिखते बादलों वाले पहाड़ |
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इनकी पहुँच हर जगह दिखती है।मतलब आसपास पानी है। |
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छोटे साहब मुस्कराते हुए |
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फूलों की एक शानदार किस्म |
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ब्रह्मकमलों की आमद मतलब खुशी का ठिकाना |
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दिलकश ब्लू पाॅपी, देर आए दुरूस्त आए |
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एक खोजने को भटक रहे थे अचानक अनेक मिल गये। |
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रौनकें |
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बुजुर्ग ब्लू पाॅपी |
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lovely blue poppy couple |
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ब्रह्मकमल दुर्लभ राज्यपुष्प |
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एक छटा |
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ब्रह्मकमल वाली ढलानें |
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सहजीविता |
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सर्पिले घुमावदार चढ़ाई भरे रास्ते |
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उतराई में पास आता घांघरिया कस्बा |
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ब्रह्मकमल का जोड़ा |
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एक साथ दिखाई देते फूलों की घाटी ट्रैक, हेमकुंड ट्रैक और घांघरिया नीचे उतरती लक्ष्मण गंगा और दूर नीचे दिखता पुष्पावती और लक्ष्मण गंगा का संगम |
जब हम कहीं घूमने जाते हैं तो वहां के बारे में पढ़ के जाते हैं और हर जगह की एक कहानी होती है लगभग सभी उसी को सही मानते हैं आपकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि आप उस कहानी के बाद उसपे स्वयं की बेबाक राय रखते हैं सच में यहीं घुमक्कड़ी की आत्मा है।
ReplyDeleteघुम्मकड़ी तमगे के लिए हार्दिक धन्यवाद भईया जी.. बस कोशिश रहती की अपने को उस स्थान से जोड़ सकूँ। बाकी सब सही गलत सब धारणाएँ भर ही है।
Deleteहेमकुंड साहब में सितंबर में गई थी तब बहुत खुशनुमा माहौल था ।बारिश भी आती थी तो रात को जब हम निद्रारानी की गोद मे होते थे ।सुबह फिर सुहानी होती थी।हेमकुंड में मैंने 2 घण्टे निकाले थे और मुझे पहाड़ी बीमारी ने दबोच लिया था लेकिन तुरंत टोकरी में सवार में नीचे उतर गई और तबियत भी चंगी हो गई☺ लेकिन मुझे उस समय ब्रह्म कमल के बारे में कुछ ज्ञान नही था वरना खोजने पर मुझे भी दिख जाते।
ReplyDeleteबुआ जी अगली बार जरूर देखना.. उम्मीद है आप जरूर जाएँगे 😍🙏🙏
DeleteI went for Char Dahm Yatra in September 2018 but could not visit Valley Of Flowers and Hemkund. After going through your marvelous journey details I am planning to visit the Valley and Hemkund in September this year. Very interesting, informative and innovative write up. Thank you.
ReplyDeleteMost welcome and thnk u..
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