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Wednesday, November 21, 2018

मिनी खजुराहो शहडोल यात्रा भाग ~ २


एक छुपे मोती का अचानक दर्शन  विराट मंदिर शहडोल भाग - 2 

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शिल्प चर्चा और घर वापसी- 

नवललनाओं पर बंकिम दृष्टि डाल और उन प्रेम कपोतो को पार कर मैं अपने बड़े से थैले के साथ जिसमें नाना प्रकार की खाद्य सामग्री मैंने भर रखी थी, मंदिर के ठीक सामने बने बेंच पर अपना आसन लगा लिया। दर्शन के लिए जब गर्भ गृह की ओर गया तो घुप्प अंधेरे एक बार कंपित कर दिया, फिर फ्लैश की रोशनी से हालात का जायजा लिया तब तक आँखे अभ्यस्त हो चुकी थी। दर्शनोपरांत जब मैंने हरएक प्रतिमा को ध्यान से देखने, विचार करने, और चित्रित करने में व्यस्त हुआ तो, विचित्र रूप से अनाशक्त भाव रखने वाले उपस्थित जनसमुदाय का आकर्षण का केंद्र बन गया। कुछ प्राचीन सोडषीयाँ अपने प्रेमभक्तो को लेकर मुझ तक आ पहुँची और मैं बेगार का गाइड बन गया। उनसे जान छुड़ाकर में वापस अपने काम पर लग गया। हर मूर्ति जैसे बोलने को आतुर थी और मेरे कर्णपट उस मधुर संगीत के आंकाक्षी। थोड़े समय के बाद मैं एक भीड़ का नेतृत्व कर रहा था, जो मुझसे सवाल पर सवाल किए जा रही थी। ये क्या है? क्यों है? और मैं मूढमति खुद को विशेषज्ञ मान कुछ भी उलूल जूलूल बताए जा रहा था। खैर.. मुद्दे पर आते है।

यह मंदिर कलचुरि शासकों द्वारा बनवाए गये उत्कृष्ट स्मारकों में से एक है। स्थापत्य और कला शैली के आधार पर यह लगभग 11वीं शती ई. के समय का प्रतीत होता है।

पूर्वाभिमुख व अत्यधिक अलंकृत यह मंदिर एक चबुतरे(जगती) पर स्थित है। जिसका अधिष्ठान काल के क्षरण से कमजोर हो गया जिससे इसका विमान एक ओर झुकाव लेते हुए है। इस मंदिर के भू-विन्यास में अर्ध्दमण्डप, महामण्डप, अंतराल एंव वर्गाकार गर्भगृह है। लगभग 10फीट वर्गाकार गर्भगृह में एक सहस्त्र वर्ष प्राचीन एक बिलांग ऊँचा शिवलिंग और जलधारी, एक डमरूयुक्त त्रिशुल और ताम्र शेष विग्रह भी समर्पित है। लिंग पुजित है और स्थानीय आस्था का केंद्र भी यहाँ एक पुजारी और दो कर्मचारी भी नियुक्त है।

 गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर भी कलात्मक मूर्तियाँ शोभायमान है, जिनमें मध्य में कमलापति, बांये वाग्यदेवी और दाहिने ओर लंबोदर विराजमान है। चौखटो को मकरवाहिनी- कच्छपवाहिनी आदी देवियाँ सुशोभित कर रही है।
 मंदिर के उर्द्धविन्यास को पाँच भागों में बाँटा जा सकता है। यथा-पीठ, वेदिबंध, जंघा, वरण्डिका और शिखर। इसके शिखर का स्थापत्य सप्तरथ शैली का है और विमान उपर उठते हुए कैलाश शिखर को प्रतिरूपित करता है। जिसके चारों कोनों पर 21 भूमि आमलक है। शिखर के उपर आमलक, चन्द्रिका, अमलसारिका एवं कलश आवेष्ठित है। शुकनासिका के मध्य में ताण्डव शिव की प्रतिमा है। साक्ष्यरूप अवशेषों के आधार पर प्रतीत होता है कि मण्डप के उपर पिरामिड के आकार की सुंदर छत रही होगी, जो कलान्तर में ध्वस्त हो गयी जिसके स्थान पर स्थानीय प्रशासको द्वारा कलाविहीन सपाट अग्रमण्डप का निर्माण करवाया गया है।

मंदिर के प्रमुख आकर्षण में बहुभुजायुक्त नृत्यरत शिव की प्रतिमा विशेष है। यहाँ की बहुत सी मिथुन मूर्तियाँ व अन्य अनेक प्रतिमाएँ खजुराहो की मूर्तियों के बहुत समान है। इस मंदिर पर समकालीन चंदेल एवं परमार कला का प्रभाव स्पष्टतयः दृष्टिगोचर होता है। शैव और वैष्णव संप्रदाय का बहुत ही सुंदर तारतम्य मूर्तिमान हो रहा था। परंतु कामकला  की सभी मुर्तियों में लंबी दाढ़ी धारण किए कापालिक को देख सहज ही शैव प्रभाव का अनुमान लगाया जा सकता है। सभी मैथुन कलाकृतियों को उभार कर नही अपितु गहवर में अन्य से तनिक ओट लेती हुई प्रदर्शित किया गया है। जो ध्यान देने पर ही दृष्टिगत होती है, इसे मध्यप्रदेश में स्थित एक छोटा खजुराहो की संज्ञा भी देती है। मण्डम और अन्यत्र कई भग्न बौद्ध और जैन मूर्तियाँ की दिख जाती है, तो कुछ खाली जलधारी और अनेक खंडित देव प्रतिमाएँ भी है। प्रांगण के निकट एक सरोवर है , जिसके किनारों पर कुछ मृतक स्मृति छतरियाँ भी बनी है।

पुरे दिन के बाद मंदिर से वापस आ स्थानीय खानपान का आनंद लेना चाहता था। सुदूर मैकाल पहाड़ियों वाले शहर में शाम ढले मस्त आवारागर्द हाथी सा टहल रहा था,ठेठ जनजातिय क्षेत्र में 6 फीट का गोरा मोटा लड़का कौतुहल बना हुआ था। पता नहीं क्यों सभी ऐसे देख रहे थे जैसे मैं कोई चिड़ियाघर से भागा हुआ दरियाई घोड़ा हूँ। तभी म प्र सरकार के अभिनव प्रयास पर नजर पड़ गयी, हुआ कुछ यूँ था की शहर भर के ठेले खोमचे वालों को इक्कठा कर एक स्ट्रीट फूड सुपर मार्केट बना दिया गया था। फिर तो ऐसा खुश हुआ की जैसे पहली बरसात में मेंढक और कछुए, जैसे किसी छुट्टा सांड को लहलहाती फसल दिख गयी हो।

तो पहले पावभाजी आयी, फिर दाबेली, फिर 20 गोलगप्पे, फिर पापड़ी चाट आयी, फिर डोसे मंगाये गये, फिर फालूदा- सोफ्टी के बाद जलजीरा वाला सोड़ा चढाया गया, तब तक गरम उतरती जलेबी पर नजर फिसलती चली गयी।
लब्बोलुआब ये रहा कि रिक्शे पर लद कर होटल लाए है शरीर को.. और होटल के नर्म बिस्तर खुछ को बहुत मुश्किल से बिछा कर और कंबल के एक कोने से थोडा मुँह बाहर निकाल कर गर्मागर्म जलेबी खाते हुए भारत-दक्षिणअफ्रीका के बीच पहला T20 मैच देख रहा हूँ। मतलब इतना सुख देखर कर एक बारगी अमरावती के इंद्र भी ईष्या के मारे जलभून जाए।अब मध्यरात्रि को मेरी ट्रेन मुझे लेने आने वाली थी, मेरा टिकट अब तक प्रतीक्षा सुची में था। खैर जैसे-तैसे टी•टी•ई साहब की आधी सीट पर किसी तरह टिक गया, फिर वो अपने राउंड पर चले गये और मैंने उनके सीट पर पुरा परस गया.. फिर क्या..
फिर.. खट-खुट करती.. हट-हुट करती.. गाड़ी अपनी जाए.. फर फर भागे सबसे आगे कोई पकड़ ना पाए..
धन्यवाद 
इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘
ओपन आर्ट गैलरी विशुद्ध खुबसुरती

प्रेम के आदी बिंदु उमा-महेश्वर

आंतरिक दृश्य खंडित मूर्तियाँ और जलहरी

विहंगम कैलाश विमान

प्रस्तर ललनाएँ

झाँकी

गांडीवयुक्त धनंजय

गिरधर मुरलीधर कहो, कछू दुःख मानत नाही

कपालिक देव और शार्दुल

गहवर में मैथुनरत प्रस्तर काव्य

विभिन्न मुद्राएँ 

अनिंध्य

ललित कला 1

ललित कला 2

हस्ताक्षर मुद्रा

ललित कला 3

ललित कला 4

लावण्यमयी

गणाधिपति

सरस्वती
गुहयात गुहयम्

ललित कला 5

चकित जड़रूप

प्रफुल्लित मन

प्रस्तर काव्य के आरोह अवरोह

हिमाद्री तुंग श्रृंग सा..
प्रेम मनुहार

एकात्म क्षण 

मिनी खजुराहो शहडोल यात्रा भाग ~१

                               
एक छुपे मोती का अचानक  दर्शन  - विराट मंदिर शहडोल भाग-1 


नमस्कार 🙏



आजतक मैं यह निर्धारित नहीं कर पाया की मैं भारतीय रेलवे की निंदा करूँ की प्रशंसा। कभी तो ऐसी झुझंलाती है की 33कोटी के देवता से लेकर नेता तक 33 कोटी के आर्शीवचन खा जाते है मेरे हाथों। पर कभी-2 प्रियतमा की तरह रूठती-मनाती धक्के पर चलती रेलगाड़ी काफी कुछ जाने अनजाने दिखा सीखा जाती है।

तो हुआ युँ की हालिया अमरकंटक से वापसी में ट्रेन के आरक्षण का ठेका मैंने एक परम मित्र के पक्ष में जारी किया और उन्होंने आशातीत स्तर पर कार्य करते हुए टिकट प्रेंड्रारोड़ के बजाए शहडोल से आरक्षित किया वो भी प्रतीक्षारत, जिसके लिए उन्हे तदनुपरांत यथोचित पारितोषिक से भूषित करना पड़ा।

खैर इतने हंगामे की बीच मुझे एक अधिक दिन जो मिल गये थे घुम्मकणी के लिए, अब बसों की रेलमपेल को झेल मैं मध्यप्रदेश के जनजातियबहुल सुनसान विरान जिला मुख्यालय शहडोल में रात्रि के 1:55am पर एक जैन मंदिर के सामने खड़ा था किंकर्तव्यविमूढ़। सहसा कुछ हलचल प्रतीत हुई और मेरा हाथ मेरे घुम्मकण मित्र स्विस नाइफ पर कस गया। नजर दौडाई तो सामने एक जैन होटल का बोर्ड चमक रहा था, सीढ़ियाँ चढ़ देखा तो एक सज्जन कांउटर पर उँघ रहे थे। मैंने उनके चिर आनंद में व्यवधान डाल पुछा कोई रूकने का ठिकाना मिलेगा ?? प्रतिउत्तर निहायत ही हैरान करने वाला था महानुभाव ने बिना नजर उठाए पुछा था क्यों..??

मैंने झल्लाते हुए कहा - 'क्योंकि मुझे नींद आ रही है। अब देव चैतन्य हो उपर से नीचे तक निरीक्षण के बाद घड़ी देखी और विस्मय से आंखे गोल करते हुए देखने लगे। मैंने पुछा था कोई रूम मिलेगा मुझे कल ठीक इतने वक्त ही रात को निकलना है।" अप्रत्याशित उत्तर मिला हाँ 300 रू लगेंगे 200 सिक्योरिटी भी। मैं चहक उठा जैसे पहली बरसात में मेंढक और कछुएँ। कागजी कार्रवाई कर मैं चुपचाप अपने मनोभावो को ठिकाने लगा महोदय का अनुगामी हुआ, होटल बस दो मंजिलो तक ही था, उपर एक बड़ा खुला प्रागंण और किनारे-2 कमरे उनमें से एक कमरा मुझे मिला, बढिया सफेद चमकती चादर बिछा डबल रूम ने पहले मुझे कोफ्त पहुँचाई पर अभी नींद हावी थी तो अपना दंड कमंडल फेंक सीधा बिस्तर पर छंलाग लगाई पर नींद कोसो दूर मोबाइल पर कुछ गुगलियाया तो हजार वर्ष पुराना विराट मंदिर नजदीक ही सोहागपुर में स्थित है ऐसा पता चला तो कल पुरा दिन बेमतलब आवारागर्दी वहीं के हिस्से लगा, tv ऑन कर देखते-2 विभावरी की गोद में सर रख ना मालूम किस लोक के विचरण को निकल पड़े..उषागमन तक के लिए विदा

उषा को आए पुरे चार घंटे बीत गये, पर विभावरी से जी नहीं भरा था। न्यूज पेपर के लालच में आखिरकार कुर्बानी देनी पड़ी, होटल वाले को चाय को बोल नीचे सड़क तक पहुँच गया।
एक मजमा खड़ा था गर्दन को लंबाई दी तो मालूम हुआ ताड का रस है, अनजान जगह है तर्जुबा लेने के लिए माहौल उत्तम। उस मटके वाले से बाबत पुछा तो वो तुरंत सुश्रुत बन बैठा "भईया जी ताजो है, अभही उतारे ला रहे अमरीत है अमरीत पेट के लिए तो", तुरंत जनसमर्थन भी मिल गया। स्वाद तो अजीब सा था एक बड़ा गिलास पी गया शायद उसने कोई गोलियाँ भी मिलाई थी, सर भन्ना गया। वापस आकर चाय पी और ठंडे पानी से नहाने पर हालत ठीक हो गई और फिर निकल पड़े विराट नगर की ओर..

आसपास पुछताछ करने पर पुष्टि हुई फिर एक ऑटो वाले ने 100 रू में घुमाने का ऑफर दिया, गुगल महाराज से जाँच की तो 3.6 km, फिर शेयर्ड ऑटो को चुना और हाइवे तक छोड़ने के ऐवज में  ऑटो को 20रू दे रूखसती दी और पैदल चल पड़े बमुश्किल 200m बाद ही मंदिर प्रांगण नजर आने लगा। मेरे हाथ में एक बड़ा सा थैला था जिसमें ढेर सारे फास्टफूड़ कहे जाने वाले खाने के नमूने थे, कुछ चिप्स के पैकेट, एक मारी मन पसंद आलू की नमकीन, कुछ कुकीज, कुछ केक बिस्कुट, एक-दो फ्रुटी, एक तुफानी ठंडा, एक चाॅकलेट बार और कुछ खट्टी मीठी गोलियाँ जो आज भर के लिए पर्याप्त थे।
परिसर में प्रेमी युगलो का कोलाहल था, सभी विशिष्ट-2 आसनो में विराजमान थे। काली gds कैप लगाए में तारों में चंद्रमा सा विभुषित हो रहा था, सभी खाने की चीजों को एक बड़े प्लास्टिक बैग में डालकर अपने कंधे पर लटका कर चलता हुआ कोई काबुलीवाला या स्नैक्स बेचने वाला दिखाई दे रहा था। अब मैं उपस्थिति भीड़ के आर्कषण का क्रेंद बन गया था।
कोई यकीन नहीं कर रहा था की इतना सामान में यहाँ बैठकर खाने वाला हूँ। सभी जीवित नव ललनाएँ मुझ कार्टुन करैक्टर को देखकर अपने प्रियतम के कंधो पर मुँह छिपाए हँस रही।थी, पर मैं तो अपने ही आनंद में मग्न था। आखिरकार यहाँ अनिंघ सुदंर प्रस्तर ललनाएँ भी तो थी, जिनके बारे में आगे बताऊँगा।
शहडोल परिक्षेत्र बाॅक्साइट और सुहागपुर कोयला क्षेत्र b v  से सड़कों की स्थिति दयनीय है परंतु निर्माण कार्य भी सतत है। महाजनपद काल का प्रसिद्ध विराट नगर यहीं स्थित था, और महाभारत में पांडवो के अज्ञातवास की अवधि के लिए भी प्रसिद्ध। उस काल की गवाही देता कलचुरीकाल निर्मित विराटेश्वर मंदिर...
इस क्षेत्र का इतिहास प्राचीनता लिए हुए है और तत्कालीन सभी राजवंशो ने यहाँ राज किया है। गुप्तो से शुरू हुई मंदिर बनाने की कला ने आज कलचुरियों का मान गर्व से ऊँचा किए खड़ा है। एक विशाल हरे भरे प्रांगण में एक पुर्वाभिमुख आदीयोगी का मंदिर जो आधार से पुर्व की ओर कुछ पीसा की मीनार की तरह झुका जा रहा है। दूर से साधारण सा दिखता मंदिर जिसका अग्रमंडप धवस्त होकर पुनःनिर्मित है, पास जाने पर असंख्य शिल्प रचनाओं से भरा पड़ा था। मैं आँखे गोल किए जितना आशक्त हुआ जा रहा था, उपस्थित प्रेमालिप्त जन उतने ही अनाशक्त...बुद्ध ठीक कहते है सत्य के हजारों रूप है। मंदिर शिल्प पर चर्चा शेष रही..

इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘
यात्रा आरंभ

रात के ढाई बजे

सुबह होटल के आंगन में 

आखिरकार पहुँच गये खोजते खोजते

छोटा पर मामूली बिल्कुल नहीं 

पहली झलक

अपनी भी झलक

अलंकृत विमान

थोड़ी नजदीक से जान पहचान

पुर्ननिर्मित नंदीमडंप

अति प्राचीन शिवलिंग अपने भव्य रूप में 

विहंगम मुर्तिकला का उदाहरण 

सुसज्जित प्रवेशद्वार

अंदरूनी झलक