एक छुपे मोती का अचानक दर्शन - विराट मंदिर शहडोल भाग-1
नमस्कार 🙏
आजतक मैं यह निर्धारित नहीं कर पाया की मैं भारतीय रेलवे की निंदा करूँ की प्रशंसा। कभी तो ऐसी झुझंलाती है की 33कोटी के देवता से लेकर नेता तक 33 कोटी के आर्शीवचन खा जाते है मेरे हाथों। पर कभी-2 प्रियतमा की तरह रूठती-मनाती धक्के पर चलती रेलगाड़ी काफी कुछ जाने अनजाने दिखा सीखा जाती है।
तो हुआ युँ की हालिया अमरकंटक से वापसी में ट्रेन के आरक्षण का ठेका मैंने एक परम मित्र के पक्ष में जारी किया और उन्होंने आशातीत स्तर पर कार्य करते हुए टिकट प्रेंड्रारोड़ के बजाए शहडोल से आरक्षित किया वो भी प्रतीक्षारत, जिसके लिए उन्हे तदनुपरांत यथोचित पारितोषिक से भूषित करना पड़ा।
खैर इतने हंगामे की बीच मुझे एक अधिक दिन जो मिल गये थे घुम्मकणी के लिए, अब बसों की रेलमपेल को झेल मैं मध्यप्रदेश के जनजातियबहुल सुनसान विरान जिला मुख्यालय शहडोल में रात्रि के 1:55am पर एक जैन मंदिर के सामने खड़ा था किंकर्तव्यविमूढ़। सहसा कुछ हलचल प्रतीत हुई और मेरा हाथ मेरे घुम्मकण मित्र स्विस नाइफ पर कस गया। नजर दौडाई तो सामने एक जैन होटल का बोर्ड चमक रहा था, सीढ़ियाँ चढ़ देखा तो एक सज्जन कांउटर पर उँघ रहे थे। मैंने उनके चिर आनंद में व्यवधान डाल पुछा कोई रूकने का ठिकाना मिलेगा ?? प्रतिउत्तर निहायत ही हैरान करने वाला था महानुभाव ने बिना नजर उठाए पुछा था क्यों..??
मैंने झल्लाते हुए कहा - 'क्योंकि मुझे नींद आ रही है। अब देव चैतन्य हो उपर से नीचे तक निरीक्षण के बाद घड़ी देखी और विस्मय से आंखे गोल करते हुए देखने लगे। मैंने पुछा था कोई रूम मिलेगा मुझे कल ठीक इतने वक्त ही रात को निकलना है।" अप्रत्याशित उत्तर मिला हाँ 300 रू लगेंगे 200 सिक्योरिटी भी। मैं चहक उठा जैसे पहली बरसात में मेंढक और कछुएँ। कागजी कार्रवाई कर मैं चुपचाप अपने मनोभावो को ठिकाने लगा महोदय का अनुगामी हुआ, होटल बस दो मंजिलो तक ही था, उपर एक बड़ा खुला प्रागंण और किनारे-2 कमरे उनमें से एक कमरा मुझे मिला, बढिया सफेद चमकती चादर बिछा डबल रूम ने पहले मुझे कोफ्त पहुँचाई पर अभी नींद हावी थी तो अपना दंड कमंडल फेंक सीधा बिस्तर पर छंलाग लगाई पर नींद कोसो दूर मोबाइल पर कुछ गुगलियाया तो हजार वर्ष पुराना विराट मंदिर नजदीक ही सोहागपुर में स्थित है ऐसा पता चला तो कल पुरा दिन बेमतलब आवारागर्दी वहीं के हिस्से लगा, tv ऑन कर देखते-2 विभावरी की गोद में सर रख ना मालूम किस लोक के विचरण को निकल पड़े..उषागमन तक के लिए विदा
उषा को आए पुरे चार घंटे बीत गये, पर विभावरी से जी नहीं भरा था। न्यूज पेपर के लालच में आखिरकार कुर्बानी देनी पड़ी, होटल वाले को चाय को बोल नीचे सड़क तक पहुँच गया।
एक मजमा खड़ा था गर्दन को लंबाई दी तो मालूम हुआ ताड का रस है, अनजान जगह है तर्जुबा लेने के लिए माहौल उत्तम। उस मटके वाले से बाबत पुछा तो वो तुरंत सुश्रुत बन बैठा "भईया जी ताजो है, अभही उतारे ला रहे अमरीत है अमरीत पेट के लिए तो", तुरंत जनसमर्थन भी मिल गया। स्वाद तो अजीब सा था एक बड़ा गिलास पी गया शायद उसने कोई गोलियाँ भी मिलाई थी, सर भन्ना गया। वापस आकर चाय पी और ठंडे पानी से नहाने पर हालत ठीक हो गई और फिर निकल पड़े विराट नगर की ओर..
आसपास पुछताछ करने पर पुष्टि हुई फिर एक ऑटो वाले ने 100 रू में घुमाने का ऑफर दिया, गुगल महाराज से जाँच की तो 3.6 km, फिर शेयर्ड ऑटो को चुना और हाइवे तक छोड़ने के ऐवज में ऑटो को 20रू दे रूखसती दी और पैदल चल पड़े बमुश्किल 200m बाद ही मंदिर प्रांगण नजर आने लगा। मेरे हाथ में एक बड़ा सा थैला था जिसमें ढेर सारे फास्टफूड़ कहे जाने वाले खाने के नमूने थे, कुछ चिप्स के पैकेट, एक मारी मन पसंद आलू की नमकीन, कुछ कुकीज, कुछ केक बिस्कुट, एक-दो फ्रुटी, एक तुफानी ठंडा, एक चाॅकलेट बार और कुछ खट्टी मीठी गोलियाँ जो आज भर के लिए पर्याप्त थे।
परिसर में प्रेमी युगलो का कोलाहल था, सभी विशिष्ट-2 आसनो में विराजमान थे। काली gds कैप लगाए में तारों में चंद्रमा सा विभुषित हो रहा था, सभी खाने की चीजों को एक बड़े प्लास्टिक बैग में डालकर अपने कंधे पर लटका कर चलता हुआ कोई काबुलीवाला या स्नैक्स बेचने वाला दिखाई दे रहा था। अब मैं उपस्थिति भीड़ के आर्कषण का क्रेंद बन गया था।
कोई यकीन नहीं कर रहा था की इतना सामान में यहाँ बैठकर खाने वाला हूँ। सभी जीवित नव ललनाएँ मुझ कार्टुन करैक्टर को देखकर अपने प्रियतम के कंधो पर मुँह छिपाए हँस रही।थी, पर मैं तो अपने ही आनंद में मग्न था। आखिरकार यहाँ अनिंघ सुदंर प्रस्तर ललनाएँ भी तो थी, जिनके बारे में आगे बताऊँगा।
शहडोल परिक्षेत्र बाॅक्साइट और सुहागपुर कोयला क्षेत्र b v से सड़कों की स्थिति दयनीय है परंतु निर्माण कार्य भी सतत है। महाजनपद काल का प्रसिद्ध विराट नगर यहीं स्थित था, और महाभारत में पांडवो के अज्ञातवास की अवधि के लिए भी प्रसिद्ध। उस काल की गवाही देता कलचुरीकाल निर्मित विराटेश्वर मंदिर...
इस क्षेत्र का इतिहास प्राचीनता लिए हुए है और तत्कालीन सभी राजवंशो ने यहाँ राज किया है। गुप्तो से शुरू हुई मंदिर बनाने की कला ने आज कलचुरियों का मान गर्व से ऊँचा किए खड़ा है। एक विशाल हरे भरे प्रांगण में एक पुर्वाभिमुख आदीयोगी का मंदिर जो आधार से पुर्व की ओर कुछ पीसा की मीनार की तरह झुका जा रहा है। दूर से साधारण सा दिखता मंदिर जिसका अग्रमंडप धवस्त होकर पुनःनिर्मित है, पास जाने पर असंख्य शिल्प रचनाओं से भरा पड़ा था। मैं आँखे गोल किए जितना आशक्त हुआ जा रहा था, उपस्थित प्रेमालिप्त जन उतने ही अनाशक्त...बुद्ध ठीक कहते है सत्य के हजारों रूप है। मंदिर शिल्प पर चर्चा शेष रही..
इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘
 |
यात्रा आरंभ |
 |
रात के ढाई बजे |
 |
सुबह होटल के आंगन में |
 |
आखिरकार पहुँच गये खोजते खोजते |
 |
छोटा पर मामूली बिल्कुल नहीं |
 |
पहली झलक |
 |
अपनी भी झलक |
 |
अलंकृत विमान |
 |
थोड़ी नजदीक से जान पहचान |
 |
पुर्ननिर्मित नंदीमडंप |
 |
अति प्राचीन शिवलिंग अपने भव्य रूप में |
 |
विहंगम मुर्तिकला का उदाहरण |
 |
सुसज्जित प्रवेशद्वार |
 |
अंदरूनी झलक |