कलाम सर से अविस्मरणीय मुलाकात !
आगरा से चल कर हमारा काफिला आज दिल्ली पहुँच गया, जवाहर नगर नाम था शायद जहाँ के विद्या मंदिर में अपना ठिकाना बनाया गया था। अगले दिन हमें तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. apj अब्दुल कलाम जी से मिलना था, तो आज का प्रोग्राम कुछ ऐतिहासिक स्थल दर्शन से होना निश्चित किया गया।सभी तैयार होकर बस में बैठ गये और बस चल पड़ी लालकिला और कुतुबमिनार की ओर।
▪लालकिला- लालकिला पहुँच कर हमने लाहौर गेट से प्रवेश किया, कुछ दुकाने थी सजावटी समानों की जहाँ से मैंने एक लकड़ी की कलम खरीद ली। आगे हमने दरबार-ए-आम और दरबार-ए-खास देखा,तख्ते-ताउस का स्थान देखा। फिर हमने लालकिला का म्युजियम देखा और बाहर आकर गुरूद्वारा शीशगंज और जामा मस्जिद भी देखा गया।फिर हम कुतुबमिनार की ओर चल पड़े।
▪कुतुबमीनार- कुतुबमिनार दूर से दिखाई देने लगा, वास्तव मे कुतुबमीनार कुतुबुद्दीन ने अपने नाम पर नहीं बल्कि सूफी संत कुतुबुद्दीन बखतियार काकी के नाम पर बनवाया था,और सिर्फ एक मंजिल ही। बाकि उसके दामाद इल्तुतमिश ने पुरा करवाया था। यहाँ कभी 24 जैन मंदिर थे जिन्हे तोड़ कर कुव्वत उल इस्लाम(इस्लाम की ताकत) नाम की एक मस्जिद बनवायी गयी पास ही इल्तुतमिश की क्रब भी है, जिसपर उस वक्त मैंने आवेश में आकर एक लात जमा दी थी, क्योंकि तब हमारी नजर एक खंडित गणेश मुर्ति पर पड़ी जो नाली के पास दीवार में चुनी गयी थी जिसे भारत सरकार ने ढक दिया था। परिसर मैं ही एक मौर्य कालीन लौह स्तम्भ भी था जिसे आज तक हमने बस किताबों में ही देखा था। उस पर चंद्र नाम खुदा हुआ है इसलिए उसे चंद्रगुप्त मौर्य का माना जाता है। खैर इतना देखकर दिन समाप्त हो गया और हम वापस स्कुल आ गये। अगले दिन हमें राष्ट्रपति भवन जो जाना था।
▪राष्ट्रपति_भवन- सुबह सभी उत्साहित थे हमारा राष्ट्रपति जी से मिलने का समय 12:10 मिनट का था, तो सभी नास्ता के बाद तैयार हो गये और हमें गेट नं 3 से ले जाया गया। फोटो की मनाही थी तो कैमरा जमा करवा लिया गया, वहाँ के फोटो अब बस हमारे स्कुल के पास ही होंगे।खैर हमें लेने राष्ट्रपति के विशेष अंगरक्षको की टुकडी आयी थी। सभी लोग अंदर गये जहाँ सभी का परिचय पत्र मिला, और ठीक समय पर हमें अशोक हाॅल में ले जाया गया, जहाँ कि फर्श में स्प्रींग लगे हुए थे जो कभी वायसराय का डांसिग रूम था इसलिए। हमें एक हाॅल में बैठाया गया और पास ही एक कक्ष था जिस पर एक नीला परदा लगा हुआ था। यहीं कलाम साहब का कक्ष था। थोड़ी ही देर में तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम सर आए और सबको हैलो कर हमारे सामने बैठ गये और परिचय के बाद हमसे प्रश्न पुछे और हमारे ढेर सारे उलुल-जुलुल प्रश्नों का मुस्कुराते हुए उत्तर दिया। हम सभी खुशी के मारे चहक रहे थे।
थोड़ी देर बाद शायद कलाम सर को कहीं विदेश यात्रा पर जाना था तो वो हम सबको नास्ता कराने और बेमौसम भी मुगल गार्डन दिखाने और पुरा राष्ट्रपति भवन दिखाने का आदेश एक अधिकारी को देकर चले गये। फिर हम एक बड़े से डायनिंग हाॅल मे गये जहाँ, ढेर सारी कुर्सियाॅ थी, ट्रैफिक लाइट जैसा परोसने का प्रबंध था। हमें चाय और जलेबी(राष्ट्रीय मिठाई) प्रस्तुत की गयी जो कि हमारा सबसे यागदार नास्ता था। इसके बाद हम राष्ट्रपति भवन के तहखाने में स्थित म्युजियम देखने गये, जहाँ अशोक के अभिलेख से लेकर हीरे से जड़ा तिरंगा झंडा भी था। फिर हम राष्ट्रपति भवन के और स्थान देखने गये, इस क्रम में हम दरबार हाॅल में भी गये जहाँ भारत की स्वतंत्रता की घोषणा हुई थी, उसके बाहर की ओर स्थित कुषाण कालीन बड़ी सी भगवान बुद्ध की मुर्ति स्थापित है। जिसके सामने खड़े होने पर आपका सर और इंडिया गेट की उँचाई बिल्कुल बराबर होगी।फिर बाहर आ कर हम मुगल गार्डन देखने गये जहाँ की खुबसुरती लाजवाब है, वहाँ मोर और हिरन उसकी खुबसुरती में चार चांद लगा देते है।हमारा निर्धारित समय समाप्त हो रहा था और जब कलाम साहब को हमारा पैदल ही गेट से आने का पता चला तभी उन्होंने हमें गाड़ी से छोडने को कहा था, हमें राष्ट्रपति के अंगरक्षको की जिप्सी पर गेट तक छोड़ा गया और गोरखा टुकडी द्वारा विदाई स्ल्युट भी दिया गया। एक तो एक सुदुर उत्तर प्रदेश के छोटे से जनपद के बच्चों से इतना प्रेम और आत्मीयता से कलाम सर का मिलना और फिर ऐसी विदाई ने हम सब के सीने वाकई 56 इंच के कर दिए। अभी जब पिछले साल कलाम साहब की मृत्यु का समाचार सुना तो अपने आंसु रोक न सका था। और न ये वृतांत लिखते हुए रोक पा रहा हूँ- कलाम सर आप हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगे।😢
राष्ट्रपति भवन से वापस आ कर हमने और भी कई स्थानों के दर्शन किए जैसे इंडिया गेट, राजघाट, शांतिवन,शक्ति स्थल, त्रिमुर्ति भवन, छतरपुर और अक्षरधाम मंदिर आदी।
फिर अगली रात हमारा काफिला चल पड़ा था दिल्ली से पिंक सीटी जयपुर की ओर... क्रमशः
धन्यवाद।
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