Tuesday, November 27, 2018

अलकापुरी यात्रा, फूलों की घाटी भाग ~ ६

बरसातों में नंदनकानन की ओर... भाग ~ ६

फूलों की घाटी ) -2
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पिछले भाग में आपने वैली ऑफ फ्लावर का आँखो देखा यात्रा वर्णन पढ़ा अब फूलों की घाटी से जुड़ी कुछ जानकारियों पर प्रकाश डाला जाए। उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय परिक्षेत्र के चमोली जिले में स्थित है दुर्लभ फूलों की एक अद्भुत दुनिया...
जिसे भारत सरकार ने 1982 ई• में राष्ट्रीय उद्यान तथा UNESCO ने 2005 ई• विश्व विरासत स्थल का तमगा देकर संरक्षित करने का प्रयास किया। यह खूबसूरत घाटी भारत-तिब्बत सीमा के समीप वृहद हिमालय की दक्षिणी ढलानों पर लगभग 87.50 km^2 क्षेत्र में फैली हुई है, जो की सबसे कम क्षेत्रफल वाला राष्ट्रीय उद्यान है।

नर और गंधमादन पर्वत के मध्य स्थित इस विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी को आधुनिक जगत के सामने लाने का श्रेय फ्रैंक सिडनी स्मिथ को जाता है। 1931 ई• में जब फ्रैंक स्मिथ अपने साथी आर एल होल्डसवर्थ और अपने दल के साथ काॅमेट शिखर अभियान से वापस आ रहे थे, तो रास्ता भटक जाने के कारण वह अचानक इस खूबसूरत घाटी के रूबरू हो गये। इस घाटी की खूबसूरती और प्राकृतिक विविधता से अंचभित फ्रैंक स्मिथ एडिनबरा गार्डन की ओर से पुनः 1937 ई• में इस घाटी तक पहुँचे, यहाँ उन्होने 3 महीने तक 2500 दुर्लभ वनस्पति प्रजातियों पर शोध किया तथा 250 बीजों के पौधे अपने साथ वापस लेकर गये। 1938 ई• में उन्होंने "द वैली ऑफ फ्लावर" किताब लिखकर संपुर्ण विश्व में इस घाटी को सुप्रसिद्ध कर दिया और यह घाटी वैज्ञानिकों, शोध छात्रों, प्रकृतिप्रेमियों और वनस्पतिशास्त्रीयों के लिए एक तीर्थ स्थल बन गई।
अपनी लिखी किताब में फूलों की घाटी की तुलना पुरे आयरलैंड की खूबसूरती से करते हुए फ्रैंक स्मिथ लिखते है की - हमने दूर से एक रंग बिरंगी सी घाटी नजर जा रहा था, जब हम घाटी में उतरे तो हर तरफ अलग रंगों के फूल बिखरे पड़े थे। आसमान जैसे नीले, अंगूर की रेड वाइन की तरह गहरे लाल, इंद्रधनुषी सतरंगी हर रंग के फूल.. हम लगभग घुटने जितने गहरे रंगीन फूलों और खूशबू के समुद्र में जैसे तैर रहे हो.. हमने अपने कपड़ो, बालों और सामानों पर फूलों के गुच्छे लगा लिए हम दूर से तितलियों जैसे दिख रहे होंगे.. पर हमारी शक्ल बर्फों में भटकने से जर्दे हो चुकी है।

काॅमेट अभियान से वापस आते हेमकुंड की ढलानों से नीचे उनको चरवाहे मिले थे जिन्होंने उन्हे उपर घाटी चढ़कर हनुमान चट्टी तक जाना के लिए रास्ता बताया होगा। तब शायद वहीं प्रचलित रास्ता होगा। फूलों की घाटी के आखिरी छोर पर एक बर्फों की दीवार और टीपरा ग्लेशियर दिखाई देता है। काॅमेट की ढलानों पर स्थित टीपरा खर्क ही फूलों की घाटी के बीचों बीच से मचलती-उझलती बहती पुष्पावती नदी का उद्गम स्त्रोत है। यहाँ से इस बर्फों की दीवार पार करने पर एक खुली घाटी मिलती है जो आपको सीधे लगभग 8km दूर हनुमानचट्टी तक पहुँचा देती है।

इस घाटी की खूबसूरती और हिमालयी अल्पाइन दुर्लभ वनस्पतियों के संग्रह की खबर अब विश्व विख्यात हो चुकी थी तब 1939 में क्यू बाॅटेनिकल गार्डन लंडन की ओर से ब्रिटिश महिला माग्ररेट लेग फूलों और वनस्पतियों की खोज और अनुसंधान करने के लिए आयी। पर दुर्भाग्य से फूलों के बीजों को एकत्र करने के प्रयास में उनकी गंधमादन पर्वत पर पांव फिसलने से 4 जूलाई 1939 को मृत्यु हो गयी। बाद में उनकी बहन उनको खोजते हुए यहाँ आयी और उनकी क्रब फूलों की घाटी के बीचों बीच बनाई गयी। शायद ही कोई माग्ररेट लेग जैसा खुशकिस्मत होगा जिसकी क्रब इस स्वर्ग से सुंदर जगह पर बनी है। जहाँ आज भी प्रकृति प्रेमी अपनी उस महिला शोधकर्ता की याद में दो फूल जरूर रख देते है।

भारतीय साहित्य में भी इस देवदुर्लभ स्थान का कई स्थानों पर मनोरम वर्णन किया गया है। सबसे प्राचीन वर्णन आदीगंथ्र रामायण में आता है जब दुर्जय रावण ने महादेव की बनाई स्वर्ण लंका को अपने जयेष्ठ भ्राता यक्षपति कुबेर से छीन लिया था तब पिता विश्रवा की आज्ञा से उन्होंने कैलाश हिमालय में फूलों के लोक में "अलकापुरी" की स्थापना की थी। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है की आजकल की तरह कैलाश बस एक पर्वत की बजाए प्राचीन काल में पुरे वृहद हिमालयी क्षेत्र का नाम था। इसी संदर्भ में एक विवरण आता है की लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध में जब लक्ष्मण को शक्ति लगी थी तो उनकी प्राणरक्षा के लिए हनुमान जी ने इन्हीं क्षेत्रों से संजीवनी बूटी लेकर गये थे। आज भी द्रोणागिरी-नीति घाटी क्षेत्र के निवासी पुरा पहाड़ ले जाने के लिए हनुमान जी को दोषी मानते हुए उनकी पुजा-अर्चना नही करते।

महाभारत में भी इस स्थान के संदर्भ में द्रौपदी-अर्जुन संवाद में विवरण मिलते है जब द्रौपदी ने अर्जुन से नंदनकानन क्षेत्र में मिलने वाले एक स्थल पुष्प की मांग की जिसकी सुगंध कस्तुरी के समान मदमस्त करने वाली होती है जो कमल के समान दिखाई देता है, यहाँ यह पता चलता है की बात ब्रह्मकमल की ही हो रही है।
एक विवरण स्कंदपुराण के केदारखंड में मिलता है, जहाँ कैलाश हिमालय की गोद में नंदनकानन नाम की पुष्पों की नगरी है। जिसके अन्य नाम गंधमादन, पुष्पावली, पुष्पारसा, बैकुंठ और इंद्र का उपवन आदी अनेक नाम मिलते है। स्थानीय लोग इस घाटी क्षेत्र को भ्यूंडार घाटी के नाम से जानते है।
फूलों की घाटी का सबसे यथार्थ और भावपुर्ण वर्णन कालिदास ने अपने ग्रंथ मेघदूत में  किया है। उन्होंने इसे अलका नाम से ही पुकारा है, और पुष्पो की धरती बताया है। उनके ग्रंथ मेघदूत का नायक यक्ष जिसे अलकापुरी से बहिस्कृत कर दिया गया है, वह मेघों से ही अपनी प्रियतमा तक संदेश पहुँचाने को कहता है। मेघों को वह अलकापुरी का पता बताते हुए इस स्थान का वृहद और सुंदर भौगोलिक वर्णन करता है।

फूलों की घाटी अपनी उच्च हिमालयी अल्पाइन बुग्यालो में मिलने वाली दुर्लभ और आश्चर्यजनक चिकित्सकीय गुणों से भरपुर पुष्पी वनस्पतियों से समृद्ध है, यहाँ जिनती विविधता और जैसा वनस्पतियों का घनत्व है वैसा पुरे हिमालय क्षेत्र में अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता। यहाँ 500 से ज्यादा पुष्पी प्रजातियों की खोज की जा चुकी है। उत्तराखंड में फूलों की घाटी के सदृश ही अनेक बुग्याल और वनस्पति क्षेत्र स्थित है जैसे- 'चिनाप घाटी, मल्यू रोखनी फूलों की घाटी, मांझीवन फूलों की घाटी, दायारा, हर की दून' आदी पर फूलों की घाटी की जैव विविधता के मामले में यह कहीं नहीं ठहरते। फ्रैंक स्मिथ के फुलों की घाटी के खोज से लेकर अब तक विभिन्न कारणों से बहुत से क्षेत्र में जैव विविधता का नाश हुआ है इसके संरक्षण के लिए ही भारत सरकार ने एक परिक्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान के रूप में प्रतिबंधित कर दिया है।

सभी मानव धर्मों में स्वर्ग का चित्रण जरूर मिलता है, इन काल्पनिक स्वर्गों का जो भी विवरण मिलता है। यदी उस कसौटी से भी देखा जाए तो फूलों की घाटी इन सभी परिमापो पर खरी उतरती दिखती है। हरियाली से लकदक एक अनगिनत फूलों से महकती एक घाटी, जिसके चारों ओर पहरेदार बनकर खड़े है विशाल पर्वत जिनसे निकलने वाले अनेक झरनों से यह जगह देवतुल्य हो जाती है। इस घाटी में खड़े होकर एक किंकर्तव्यविमूढ़ सी स्थिती हो जाती है की क्या देंखे और क्या छोड़े, एक नजारे से नजर हटते ही दुसरे स्वर्गीय नजारें मन को मोह लेते है। हर फूल पत्तियाँ आकर्षण का केंद्र बन जाती है कभी लगता है की हमारे पास बस दो ही आँखें क्यों है। निझर बहते झरने और घाटी के बीच से गुजरती पुष्पावती नदी का ऐसा सम्मोहन है जो देखते ही बनता है।

नवम्बर से मई माह के मध्य घाटी सामान्यतः हिमाच्छादित रहती है। जुलाई एवं अगस्त माह के दौरान ही यहाँ आने का सबसे बेहतरीन समय होता है। जब तकरीबन हर 15 दिनों के बाद यहाँ अलग रौनक, अलग खुशबू और अलग रंगत देखने को मिलती है। यहाँ के सभी पुष्पो के खिलने का एक समय निर्धारित है, जब मौसम अनुकूल होता है तो एक विशेष वर्ण के फूल अपने छठा से घाटी रंग देते है। इसलिए हर कुछ समय बाद घाटी के फूलों के रंग और खूशबू बदलती रहती है।

यहाँ सामान्यतः पाये जाने वाले फूलों के पौधों में एनीमोन, जर्मेनियम, मार्श, गेंदा, प्रिभुला, पोटेन्टिला, जिउम, तारक, लिलियम, हिमालयी नीला पोस्त, बछनाग, डेलफिनियम, रानुनकुलस, कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कम्पानुला, पेडिक्युलरिस, मोरिना, इम्पेटिनस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, अनाफलिस, सैक्सिफागा, लोबिलिया, थर्मोपसिस, ट्रौलियस, एक्युलेगिया, कोडोनोपसिस, डैक्टाइलोरहिज्म, साइप्रिपेडियम, स्ट्राबेरी एवं रोडोडियोड्रान इत्यादि प्रमुख हैं।
फूलों की घाटी में आने केलिए ट्रैकिंग ही एकमात्र रास्ता है। परंतु आजकल कुछ लोग पोर्टरों के कंधे पर रखी टोकरीयों में बैठकर भी जाते दिखाई देते है। घोड़े-खच्चरों के प्रवेश पर यहाँ पुर्ण प्रतिबंध है।

यूँ तो पुरी घाटी ही विभिन्न फूलों से पटी हुई होती है, पर कुछ विशेष क्षेत्रों में विशेष पादपों की उपस्थिति पाई जाती है जिनका सटिक वर्णन परमिट ऑफिस के बाहर लगे नक्शो पर भी किया गया है। जैसे नदी तल के करीब के जमीनी हिस्सों पर जंगली गुलाब की बहुतायत है तो नदी के बोल्डर वाले क्षेत्रों में पाॅलीगोनम अच्छी संख्या में फलते फूलते है। पाॅलीगोनम एक सुंदर पौधा है पर यह अन्य प्रजातियों के लिए आक्रामक साबित हो रहा है। दरारों में ब्लू पाॅपी की उपलब्धता होती है तो उच्च आर्द्र इलाकों में यदा कदा ब्रह्मकमल भी दिखते है। जिनको पर्यटकों द्वारा नष्ट होने का सबसे ज्यादा खतरा रहता है, पुरी घाटी में दुर्गम जगहों पर ही इनके कुछ स्पष्ट चिह्न मिलते है।

यदी वृहद स्तर पर देखा जाए तो यह पुरा इलाका एक बडे त्रिभुज जैसा दिखता है, जिसके कोनों पर क्रमशः गोविंदघाट, हनुमानचट्टी और फूलों की घाटी है। फूलों की घाटी के बाद कुछ बर्फो की दीवार पार कर बद्रीनाथ भी पहुँच जा सकता है। फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान और नंदादेवी राष्ट्रीय उद्यान का क्षेत्र मिलाकर पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण और समृद्ध  नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व का निर्माण करते है।  कभी 10-12 km लंबी रही फूलों की घाटी आज सिकुड़ कर 3-4km के इलाके में ही सिमट कर रह गई है, विभिन्न पारिस्थिकीय और पर्यावरण संबंधी समस्याओं के साथ ही यह क्षेत्र तीर्थयात्री और विलासी पर्यटकों का केंद्र भी बनती जा रही है, जो इसके सर पर तलवार जैसे लटक रही है।

केदारखंड और बदरीनाथ क्षेत्र के तकरीबन नष्ट हो चुकी पारिस्थिति की भांति यह क्षेत्र भी अतिपर्यटन की मार झेल रहा है। कितने ही पर्यटक केवल अपने मनोरंजन और इच्छापुर्ति के नाम पर इस सुकोमल तंत्र को स्थायी नुकसान पहुँचाते है। यहाँ निगरानी के नाम पर कुछ भी नहीं, कितने पर्यटक यादगार के तौर पर अपने साथ फूलों को तोड़ने या साथ ले जाने की कोशिश करते देखे जा सकते है और दुर्भाग्य से कामयाब भी रहते है। यहाँ मानवीय हस्तक्षेप ही सर्वाधिक बड़ी समस्या है। तमाम संकटो से जुझ रही फूलों की घाटी को और सम्रग संरक्षण की जरूरत है कहीं ऐसा ना हो की यह देवताओं का उपवन भविष्य में बस हमारी यादों में ही रह जाए। यदी आप प्रकृतिप्रेमी है, और प्रकृति की अनुपम लीला को प्रत्यक्ष रूप से एकाकार होकर निहारना चाहते है तो आपको तुलसीदासकृत मानस की पंक्ति समर्पित है:- अवसिं देखहिं देखन जोगू...! क्रमशः

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इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘


















































26 comments:

  1. शानदार चित्रों के साथ विस्तृत जानकारी से भरा हुआ आलेख, मेरे द्वारा पढ़ा गया फूलों की घाटी का अब तक का सबसे बेहतरीन वृत्तांत

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    1. अहा..!! कहाँ खड़ा कर दिए भईया जी आप.. यहाँ एक से एक महारथी है मैं एक मामूली प्यादा भर.. बस कुछ जोड़-जोड़ लिखने की कोशिश की है। आपको पसंद आई तो जरूर ही कुछ अच्छा होगा। निरंतरता रखने का प्रयास करेंगे, आप सबके सहयोग सुझाव का ही परिणाम है।
      अंत में बस प्रणाम.. 🙏🙏

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  2. वाह अनुराग भाई बहुत खूब। अभी पूरा नहीं पढ़ा फरी हो के पढ़ता हूं। तस्वीरें तो लाजबाव हैं ही

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    1. शुक्रिया भाई जी, इंतजार रहेघा आपके मार्गदर्शन का...

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  3. वाह! मन मोह लिया ।
    इसमे सब कुछ शामिल है- इतिहास, सनातन धर्म,भूगोल, प्राकृतिक सुंदरता का अद्भुत वर्णन ।

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    1. शुक्रिया भाई जी, बस छोटी सी कोशिश भर कर रहा हूँ। आपको अच्छा लगा यह सुनकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हुई। 🙏

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  4. बहुत अच्छा लेख भाई। फूलों की घाटी जाने की इच्छा अब और भी प्रबल हो गयी है। आपसे मार्गदर्शन अवश्य लेंगे।

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    1. बहुत शुक्रिया जी.. आपके ब्लाॅग से ही बहुत कुछ सीखा है। एक छोटा सा स्वर्ग ही है, जरूर किसी भी वक्त याद कर सकते है जी। 🙏

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  5. सुंदर तस्वीरों एवम जानकारी से भरी एक बढ़िया पोस्ट । 💐💐 लेकिन ब्लॉग पर अभी फॉर्मेटिंग की जरूरत है।

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    1. शुक्रिया जी, अभी पहली पहली सी कोशिश है धीरे-धीरे सीखते जाएँगे। आपके सुझावों का का स्वागत है।

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  6. बहुत बढ़िया।

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  7. अब तक के जितने भी फूलों की घाटी पर पढ़े लेखों...... में सर्वश्रेष्ठ लेख, अनुराग जी... बधाई हो आप भविष्य के बेहतरीन लेखक बनने जा रहे हैं, जी।

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    1. कोटिशः आभार धन्यवाद आपको.. 🙏🙏
      आप को पढ़ते हुए ही ब्लाॅग शब्द से परिचित हुआ, आपकी शुभकामना को परिणति करने की कोशिश रहेगी जी। 😊

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  8. अब तक के जितने भी फूलों की घाटी पर पढ़े लेखों...... में सर्वश्रेष्ठ लेख, अनुराग जी... बधाई हो आप भविष्य के बेहतरीन लेखक बनने जा रहे हैं, जी।

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  9. इस आलेख में ज्ञान का भंडार और अति मोहक चित्रों की भरमार रही। काफी खोजबीन और मेहनत से जुटाई गई जानकारी जो इस जगह को अतिमहत्वपूर्ण होने की जानकारी देते हैं। एक अच्छा प्रयास और प्रयोग, यात्रा कथा के मध्य विराम और जानकारी। लगे रहो मुन्ना भैया।

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    1. शुक्रिया भईया जी.. 🙏🙏
      बस छोटा सा प्रयास भर ही कर रहा हूँ, इस बारे में तो कितना कुछ लिखा गया है।

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  10. अनुराग बहुत ही महेनत की होगी आपने इतना विस्तृत विवरण देने के लिए...
    पर यह विवरण यथार्थ तब होता है जब आप खुदवहां जा कर उस जगह महसूस करो..हमारे लिये ये पॉसिबल नही था की वहां कुछ दिन रुक सकें... वरना इसे अन्तः स्थल तक महसूस करते...बारिश कोहरा और ठंड ने शरीर की हालत बिगाड़ दी थी पर हमारे हौसले को गिरा नही पाई..
    और उस कुछ घंटे ही सही पूरा लाभ उठाया...

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    1. जी सही कहा.. हमने गागर में सागर भर लिया..
      थोड़ा बहुत जोड़ बटोर कर लिखा है.. आपका हार्दिक आभार 🙏🙏

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  11. तुम गजब हो भैया ।

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  12. बहुत अच्छी जानकारी दी है सर आपने। फोटो काफी अच्छी लगी मुझे। एक बार मेरे लेख को भी देखे फूलों की घाटी कहां स्थित है

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