बरसातों में नंदनकानन की ओर... भाग ~ १
20-21/08/2018
चटख हरियाली के कंबल ओढ़े कंपकंपाते से पहाड़, गरजती नदियाँ, अविरल धुआँधार झरने, धान के लहलहाते सीढ़ीदार खेतों में धानी चुनर लहराती प्रकृति, आसमान में घुमड़ते आवारा बादल और धरती को तृप्त करती बेपरवाह रिमझिम करती बारिश ये सभी संयोग जब इक्कठा हो जाए तो किसी यायावर मन को स्थिर नहीं रखा जा सकता है।
बरसातों की ये बेतार जुड़ी कड़ियाँ हर घुम्मकडी के शौकीन को घर से बाहर निकल चलने के लिए मजबुर कर देती है। थोड़ा ऐसे शौक की लत का आदी मैं भी हूँ तो प्रकृति के विभिन्न रूपों को कुछ विभिन्न क्षेत्रों में देखने का लोभ छोड़ नहीं पाता। सर्दियों में किसी बर्फिली जगह, गर्मीयों में शांत नीरव दोपहरी में किसी सुदूर सी जगह और बरसातों में हरियाली से लकदक जगहों की सैर का प्लान हमेशा ही तैयार रहता है।
वैसे इन परिस्थितियों को चुनने की वजह में थोड़ा स्वार्थ भी रहता है, क्योंकि तब लोग बाग इन चरम स्थितियों में चुपचाप अपने घरों में ही रहना पसंद करते है। इसी क्रम में पिछली बरसातों में यह तय पाया गया की इस बार हरियाली से आँखों को सुकून देने का काम देवभूमि उत्तराखंड में ही संम्पन किया जाए। जगह तय हुई सुदूर हिमालय में त्रिशूल पर्वत के तलहटी में स्थित 'रूपकुंड' मैंने अपना विचार सोशल मीडिया में रखा ताकी कोई साथी मिल जाए तो सोने पर सुहागा हो जाए, और कम से कम मैं खुद को खुद से बचा पाऊ। तमाम साथी इससे जुड़े, बिछुडे मैंने अपना रेलवे आरक्षण भी करवा लिया और चुपचाप तारीख का इंतज़ार करने लगा था। इस बीच मुंबई की निवासी और योग शिक्षक ज्योति मोता जी ने भी यात्रा से जुड़ने की इच्छा प्रगट की उन दिनों वह अपने योग प्रशिक्षण के काम से उत्तराखंड में ही थी।
मेरी सभी योजनाएँ ना मालूम क्यों किशोर कुमार से बहुत प्रभावित रहती है मतलब की- 'जाना था जापान.. पहुँच गये चीन, समझ गये ना..' यात्रा तिथि नजदीक आते आते कुछ आठ लोग सहर्ष तैयार थे और अब यात्रा स्थान बदल कर एक विश्व विरासत स्थल और सपनों की दुनिया- "फूलों की घाटी" हो चुका था। खैर मुझे तो हरियाली और दिलकश प्राकृतिक नजारों से मतलब था चाहे रूपकुंड या फूलों की घाटी सब बराबर... जैसे-जैसे ही यात्रा का दिन नजदीक आता ,समाचार चैनलों से अति मचा दी। तेज बारिश की संभावना, भुस्खलन की डरावनी विडियो-फोटो, रेड एलर्ट और ना जाने क्या-कया। जितने भी लोग इस यात्रा के विषय में जानते थे सबने आगाह किया और गिरते-दरकते पहाड़ो पर ना जाने की सलाह दी। पर उत्तराखंड घुमने के अनुभवों से मुझे न्युज चैनलों की अफवाहों से कोई फर्क नहीं पड़ना था सो नहीं पड़ा पर इन खबरों ने और साथियों पर गहरा प्रभाव डाला। निर्धारित दिन अधिकांश यात्रासाथियों ने अपने-2 बहाने प्रस्तुत किये, जिनका मुझे पहले अनुमान था। पहले उन बेचारों को राजीखुशी रूखसती दी, अब हम बचे थे कुल तीन लोग मृगांक त्रिपाठी, संतोष शर्मा, मैं अनुराग चतुर्वेदी और ज्योति जी, जो योग शिविर का काम खत्म कर हमारे साथ जाने के लिए हरिद्वार पहुँच रहे थे।
रात को वाराणसी से हरिद्वार के लिए शुरू हुआ हमारा सफर भी दिलकश रहा। पुरे रास्ते दूर-2 हरे कालीन से बिझे खेत और उनमें काम करते लोग, भरे-पुरे सभी तालाब गढ्ढे, सस्य श्यामला सी खुबसुरत धरती को रेलगाड़ी के भीतर से देखकर ही हम निहाल हुए जा रहे थे। सावान के आखिरी दिन चल रहे थे और हम सावन के अंधे बने हुए बस हरा-2 ही देख रहे थे। 20 अगस्त की रात से शुरू हुई हमारी रेल यात्रा 21 अगस्त की शाम चार बजे हरिद्वार स्टेशन पर पहुँच कर समाप्त हुई। ज्योति जी ने हमारे पहुँचने से पहले ही हमारा बस टिकट भी आरक्षित करवा दिया था। जो अलसुबह हमें हरिद्वार बस स्टेशन से ही मिलने वाली थी। रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते ही ज्योति जी ने हँसते-खिलखिलाते हुए हमारा जिंदादिल स्वागत किया, जिससे हमारे बीच की झिझक भी समाप्त हो गई। आपसी जान-पहचान और परिचय के बाद अब बारी थी रात के ठिकाने की तलाश की तो ज्योति जी के प्रस्ताव पर हमने भी उनके द्वारा चुने गये यात्री निवास में एक और कमरा ले लिया। साजो समान को व्यस्थित कर और थोड़ी देर सफर की थकान उतारने के तुरंत बाद हम सभी यात्री निवास की सबसे उपरी जगह पर थे ढलती हुई शाम के साथ फिर वहीं तय हुआ की गंगा आरती भी देखनी चाहिए।
थोड़ी ही देर बाद हम सभी गंगा घाट के रास्ते पर थे। जब पहुँचे तो गंगा आरती शुरू हो चुकी थी और तमाम भीड़ सभी जगहों को ढ़क चुकी थी। अब मन मसोसने से क्या फायदा.. तभी ज्यॅति जी को किसी मंदिर के अधिकारी की याद आयी और उन्होंने फोन पर कुछ बात की हमारे लिए एक विशेष परमिशन मिल गई की बंद किये गये पुल पर जाकर आरती को थोड़ा नजदीक से देख सकते है। सुरक्षाकर्मियों ने भी थोड़ा सहयोग किया और फिर हमने आरती का विंहगम भावपुर्ण नजारा लिया।
यहाँ मुझे जो वाराणसी का भव्यतम गंगा आरती देखने का आदी था, सीधी सादी और भीड़भाड़ वाली गंगा आरती ने कतई निराश किया।
कुछ देर इधर उधर भटकने के बाद भीड़ बिल्कुल ही गायब सी हो गई, तो अब बारी थी हरिद्वार में मेरे सबसे पसंदीदा काम की.. यानी गंगा स्नान हालाँकि अब पुरी तरह अंधेरा हो चुका था। जब भी हरिद्वार आता हूँ तो मेरा सबसे जरूरी काम होता है गंगा स्नान कितनी बार तो यह पुरे दिन चलता रहता है। तो कपड़े और अन्य वस्तुओं का पहरेदार ज्योति जी के बना कर हम तीन मित्र पानी में थे। बाकी दोनों तो अगस्त की भयंकर धार से घबरा गये और किनारे से चिपके रहे वहीं मेरा तैराकी कार्यक्रम एक किनारे से दुुुसरे किनारे तक बेरोक-टोक चालू था।कुछ देर के फोटोग्राफी सेशन के बाद ज्योति जी, मृगांक और संतोष तीनों किनारे बैठकर मुझे लहरों पर उपर नीचे जाते देखकर यह निर्णय कर रहे थे की शायद यह जिंदा बाहर नहीं आएगा। फिर घंटो के चीखने-चिल्लाने, धमकियों और शिकायतों के बाद जबरदस्ती मुझे पानी से बाहर निकाला जा सका था। उझलती लहरों में जद्दौजहद वाली तैराकी ने बिल्कुल थका दिया था तो कुछ देर यूँ बाजार में टहलने और खाने-पीने के बाद अब बस बिस्तर ही नजर आ रहा था। बाकी मुसीबत यह थी की इस नींद से बोझिल होती आँखों को सुबह जल्द से जल्द उठकर तैयार होकर सुबह की सबसे पहली बस जो 4बजे हरिद्वार से बद्रीनाथ धाम जाती है में सवार भी होना था।
अब हमारी जुगाड़ गाड़ी की तरह की खपच्चीयों से जैसे-तैसे जोड़ कर बनायी गई यात्रा टीम की चारपहिया गाड़ी तैयार थी फूलों की घाटी-हेमकुंड ट्रैक के लिए.. जिसके दो मोटे और बेडोल सवा कुंतल भारी ट्रैक्टर के दो पहिए मैं और मृगांक बाबू एक दुबले पतले और छरहरे साइकिल के टायर संतोष बाबू और एक छोटे स्कूटी के टायर लेकिन जबरदस्त टिकाउ और घुम्मकड़ दुनिया की स्त्री "सांकृत्यायन" बनने पर अमादा ज्योती मोता जी।
आगे की यात्रा क्रमशः जारी..
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इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘
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अपनी सेवाएँ स्टेशन तक ही..अब विदा |
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जब होश ना रहा हो.. |
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अचानक फ्रंट कैमरे से कार्टून जैसे हरिद्वार स्टेशन पर उतरते ही.. |
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रेलवे लाइन की हरियाली |
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एक शाॅट चलती ट्रैन से |
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ट्रैन फोटोग्राफी |
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दिलकश खेत |
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ज्योती जी की पहली झलक |
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होटल के छत से आते ही.. |
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चारों पहिए.. |
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गंगा घाट पर |
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गंगा आरती |
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चमकते मंदिर |
शुरूआती झटको से उबर कर आपकी जुगाडू़ वाहन की चारपहिया, आगे की यात्रा के लिये बिल्कुल तैयार हो गई। शुरूआती दौर के झटके भी मजेदार रहे। उफनता धार पर डूबती उतराती जिंदगी के मजेदार और रोमांचक खेल मे आप विजयी रहे। यात्रा शब्दो के अलंकारों से परिपूर्ण रही है। गति भी अच्छी है, आगे की मजेदार यात्रा गाथा का इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया.. भईया जी 🙏🙏
Deleteआप सभी के उत्साहवर्धन का परिणाम है की थोड़ा लिखने की हिम्मत की है।😊
जब्बर शुरुवात किये हैं प्रभु आनंद आ गया
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया भईया जी.. 🙏🙏
Deleteबहुत़ ही सुंदर लेखन प्रस्तुति 👌 👌
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया जी.. साथ बनाए रखिए 🙏
Deleteवीर तुम बढ़े चलो...
ReplyDeleteबहुत आभार.. 🙏
Deleteवाह अनुराग जी, कमाल का लिख रहे हो....आप की इस शब्दिक यात्रा में पाँचवा सहयात्री भी जुड़ चुका है, यानि मैं...!!!
ReplyDeleteअब ये तो मेडल है जी मेरे लिए, आप मेरे सबसे शुरूआती लेखकों में है तब मैंने जाना था की आखिर ब्लाॅग कहते किसको है।
Deleteबहुत शुक्रिया आपका.. स्वागत है जी चलिए साथ चलते है। 😍🙏🙏
वाह अनुराग जी, कमाल का लिख रहे हो....आप की इस शब्दिक यात्रा में पाँचवा सहयात्री भी जुड़ चुका है, यानि मैं...!!!
ReplyDelete🙏🙏🙏
Delete2 से 5 तक पढ़ने के बाद अब 1नम्बर सीरीज पढ़ी। कुछ ऐसा करो अविनाश की मुझे एक के बाद एक सीरीज पढ़ने को मिले। मुझे ढूंढना न पड़े।
ReplyDeleteआपकी आज्ञानुसार दुरूस्त कर दिया है बुआ जी, अभी आपके घुटने पर कोई दर्द नहीं आएगा। 🙏🙏🙏😍😍
Deleteगजब लेखन अनुराग भाई
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया.. भाई जी 🙏🙏
Deleteआज पहले भाग से पढ़ना शुरू कर रहा हूं।
Deleteपर बुआ, ये अविनाश कोन हे ?😀
ReplyDelete😂😂😃
Delete😊😊😍
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