बरसातों में नंदनकानन की ओर... भाग ~ २
22/08/2018
अगली सुबह खतरनाक थी, मैं एक सफेद पानी वाले झरने के नीचे था, तभी अचानक भूकंप सा आया था। हड़बडा कर उठा तो पाया की मैं सपना देख रहा था और ज्योती जी मेरे पैर को जोर से हिला कर जगाने की नाकाम कोशिश कर रही थी। वक्त था सुबह के 3:45 am और हमारी बस से दो बार फोन भी आ चुका था। जो ठीक 4:00 am पर हरिद्वार रोड़वेज के सामने से चलने वाली थी। अब तो सभी की नींद उड़ चुकी थी और जैसे-तैसे फ्रेशअप कर हम अपने बैग को लगभग घसीटते हुए नीचे सड़क तक आ गये थे।
बस वाले ने फिर से फोन किया था, तब हमने उससे हमारा थोड़ी देर इंतजार करने को कहा। किस्मत का मारा एक ऑटो वाला हमारी चमकदार किस्मत से तुरंत मिल गया और हम आखिरकार भागते-हाँफते अपनी बस तक वक्त पर पहुँचने ही गये। इस बस के विंड स्क्रीन पर मोटे अक्षरों में लिखा था 'रूपकुंड पर्यटन विकास समिति' जैसे ही मेरी नजर पड़ी मेरे दिल से एक आह निकल थी, चलो फिर ना सही.. फिर सही...
हमने टिकट कल ही ले लिए थे, हरिद्वार से बद्रीनाथ तक का किराया 460 रू/व्यक्ति था। हमारी चार सीटें ड्राइवर के ठीक पीछे ही थी। दो पर मृगांक और संतोष और उनके सामने मैं और ज्योति जी। मेरी किस्मत में खिड़की शायद है ही नहीं क्योंकि वहाँ मेरे जिराफ जैसे पैर फिट नहीं होते। हवाई जहाज तक में फिट नहीं होते ये तो फिर भी एक छोटी पहाड़ी बस थी। अभी शायद दो और आलसियों का इंतज़ार था जो बस पहुँचने ही वाले थे, तब तक हमने चाय पी ली थी। दो मिनट के बाद ही हमारी बस रेंगने लगी थी और सबने राहत की साँस लेकर एक लंबी यात्रा की तैयारियों में व्यस्त हो गये। अब हम ऋषिकेश हाइवे पर थे। थोड़ी दूर जाते ही मूसलाधार बारिश होने लगी थी, मैं निश्चिंत था की थोड़ी देर बाद बंद हो ही जाएगी पर आखिर कल किसने देखा था। थोड़ी देर आंखों को आराम दिया ऋषिकेश पहुँच गये थे और बारिश जस की तस झमाझम अब तो मेरी हवाइयाँ उड़ने लगी थी। यदी ऐसी बारिश चलती रही तो हम शायद कहीं नहीं पहुँच पाएँगे मैं गुस्से से बड़बड़ाया "देखो ये बिल्कुल ठीक नहीं ऐसी कोई बात तय नहीं हुई थी" ज्योति जी चौंक कर मेरी ओर देखा तो मैंने कहा थोर(बारिश के देवता) से बात चल रही। ऋषिकेश से बाहर निकलते ही मेरा डर सामने खड़ा था गाड़ीयों की एक लंबी लाइन.. मेरा दिल धक्क से होकर रह गया था जैसे कोई कह रहा हो ये तो बस अभी शुरूआत भर है बच्चे.. आगे-2 देखो होता है क्या।
अब ज्योति जी का चेहरा भी बिल्कुल मेरी तरह दिख रहा था। पीछे दोनों जन सारी फिर्क छोड़कर खर्राटे भर रहे थे। घंटे भर रूकने के बाद हम आगे चलने लगे थे, बारिश अभी उतनी ही तेज थी। चार धाम प्रोजेक्ट के लिए रोड़ बनायी जा रही थी, पर समझ नहीं आ रहा था की रोड़ बना रहे थे की तोड़ रहे थे। बड़ी-2 पोकलेन मशीनें पहाड़ो को तोड़ने में लगी थी, सड़क पर बड़े-बड़े चट्टान गिरे पड़े थे। JCB की लोडर और बुल्डोजर मशीनों की तो कोई गिनती ही नहीं थी। पर रास्तों को इस प्रलय मेघ के बावजूद भी खुला रखने में इनका भी अहम हाथ रहता है। कछ एक जगह और फंसने के बाद ब्यासी में उजाला ठीक-2 होने लगा था। देवप्रयाग तक पहुँचने तक भी बारिश ने साथ नहीं छोड़ा थोड़ा नास्ते और फ्रेशअप के बाद चलते बने, मैंने ड्राइवर बाबू से कोई गाना चलाने की फरमाइश की पर उन्होंने कहा की गाने चलाना मना है, तो फिर इत्ते स्पीकर क्यों लगा रखे है भाई..!! उनका कहना था ये हमारे लिए है, खैर सभी यात्री अपनी धुन में मस्त थे। मेरे बगल में किशोर कुमार जी गा रहे थे मैंने एक हेडफोन मांग लिया था, अब मैं भी गुनगुना रहा था,गढरत्न नरेंद्र नेगी का गाना.. 'सरारारारा.. पौं... पौं.. चली भै मोटर चली..'
भगीरथी और अलकनंदा के संगम पर बादल छाए रहे थे। ज्योती जी खिड़की का भरपुर फायदा उठा रही थी, बाकी दोनों मित्र दुबारा नींद में जा चुके और मेरी नजर अब तक सड़क से हटी नहीं थी। शायद यह गाड़ी चलाने वालों की बुरी आदत है। पुरे रास्ते हमें बादल और कोहरा ही मिल पाया था पर उनके पार दिखते हरे भरे पहाड़ ललचा रहे था की एक बार यह बारिश का समां रूकने तो दो। पुरे पुरे रास्ते लोग बसों से उतर कर सड़क पर गिरे पत्थर हटाते फिर आगे जाते फिर पत्थर सड़कों पर गिरे मिलते है। कितनी ही मशीनें ढेरों मिट्टी मलबों से जद्दोजहद करने में लगी हुई थी। तीन दिनों से चलती बारिश ने श्रीनगर के ट्रैफिक को भी कम कर दिया था और हम जल्दी से रूद्रप्रयाग तक पहुँच गये। अब जब थोड़ा बादल हटे तो पहाड़ो पर हरे-भरे जंगलों से उठते सफेद रूई जैसे बादल दीवाना बना देने के लिए पर्याप्त थे। सभी दबे कुचले गरीब से झरने भी लबालब अमीर हो चले थे। और नीचे घाटियों में उफनती नदियों का पानी सर चकरा देने वाला था।
थोड़ी दूर चलने पर ही हम एक बड़े से भुस्खलन के चक्करों में फंस चुके थे। लंबी लाइन थी, यदी मेरी गिनती ठीक है तो आज हम 9वीं बार रूके हुए थे। जब तक मशीनें अपना काम करती सभी बसों के लोग पास ही नीचे खेतों में हो रही किसी फिल्म शूटिंग को देखने में व्यस्त थे। इस जगह से निकलने में हमारे 1:30 घंटे खराब हुए। फिर हमारी बस गोचर से गुजरते हुए कर्ण प्रयाग में रूकी थी, हम लोहे के पुल तक घुमने गये थे, नीचे अलकनंदा और पिंडर इतनी जोरदार आवाज से टकरा रही थी की कुछ भी सुनना मुश्किल हो रहा था काफी गरजदार आवाज थी। नास्तों की गिनी चुनी दुकानों पर चाय और ना मालूम किसके पकौड़े हर वक्त तैयार ही मिलते है, शायद उनमें कुछ पत्तेदार प्याज भी है बाकी भी ऐसा कुछ पत्ते वाली चीजें है। यहाँ यह चर्चा आम हो चली थी की चमोली के थोड़ा आगे क्षेत्रपाल में भारी मलबा आया है और कल तक हटाया जा सकता है। मेरा डर सही साबित हुआ की आज हम चमोली तक ही चल पाएँगे, मैंने अपने एक मित्र को फोन किया की चमोली में हमारे रूकने की कुछ व्यवस्था कर दे। उसने मुझे बताया की छोटी गाड़ी पास कर रही है थोड़ी देर में बड़ी गाड़ियाँ भी पार जा सकेंगी। मैंने ये अपने ड्राइवर को बताया था उसने भी दुसरी तरफ से आने वाले कई ओर ड्राइवरों से पुछा था। फिर हम चमोली पार कर टूटे हुए जगह आ पहुँचे थे। सड़क का तो पता ही नहीं चल रहा था। सभी गाड़ीयाँ एक ऊँचे टीले पर चढ़कर पार निकल रही थी एक बार में बस एक गाड़ी। प्रशासन के बहुत से लोग थे बस को खाली करवाया गया। सभी घुटने भर मलबे से पार हुए थे सिर के ठीक उपर मिट्टी और मलबा लगातार गिर रहा था। जैसे तैसे बस भी कीचड़ में लहराती हुई पार हो गई। अब अगला ठिकाना था पीपलकोटी...
जब बस एक छोटे से आंगन जैसी जगह पर रूकी तो आस पास का मुआयना करने भर का वक्त था। अब हम ऊँचाइ पर चल रहे थे लगातार चढ़ाई आती जा रही थी। हम धार के करीब थे और सुर्योस्त होने में कुछ देर थी। आने और जाने वाली बसें यहाँ जरूर रूक रही थी यहाँ तो जैसे कोई पकौडियों की पार्टी ही चल रही थी। मैं और हमारे मृगांक बाबू एक चाय की दुकान पर आर्कषण का क्रेंद बने हुए थे। तब तक ज्योती जी और संतोष बाबू को ना मालूम क्या सुझी और उन दोनों ने फलों और सब्जियों की खरीदारी शुरू कर दी थी। खीरे, टमाटर, प्याज, धनिए के पत्ते, दो एक प्याज, सेब और ना जाने क्या क्या.. मैंने अपना सिर पीट लिया था। थोड़ी देर में हम आगे निकल पड़े रास्ते में पागल नाला पर फिर रूकावट थी पर अब हमारी पुरी बस पकौडियाँ खाने के बाद जोश में थी हाथ के हाथ गाड़ी निकलने लायक रास्ता निकाल लिया गया था। सभी के हाथ कीचड़ से सने थे पर सीना 56" का.. जोशीमठ पहुँचने तक अंधेरा हो चुका था। तकरीबन शाम के 7:00 बज चले थे। यहाँ एक झटका लगा की पुरे बस में सिर्फ छः लोग ही बद्रीनाथ जाना चाहते थे और बाकी सभी बस को अपने घरों की तरफ अपर रोड़ की ओर ले जाना चाहते थे।
अब हम बस से बाहर थे और हमें दुसरी बस में बिठाया जाना था, जब हमारे बैकपैक बस के स्टोरेज से बाहर निकले तो उन्हे पहचानना मुश्किल था, कीचड़ की परत उनको एक जैसा कर चुकी थी। कंडक्टर ने गालियाँ खाई फिर उसने बताया की वह कीचड़ के बारे में भूल गया था। बारिश भी धीरे-2 रूआब पर आने लगी थी। कुछ होटलों के एजेंट हमें खींच कर अपने साथ ले जाना चाहते थे, सबसे सस्ता और बेहतरीन सबका ही दावा था। जल्दी ही हमें दुसरी बस मिल गई, ये हिमगिरी एक्सप्रेस थी। हमें ड्राइवर के कैबिन में जगह मिली और मुझे बिल्कुल ड्राइवर के बगल जगह मिली। बस अब ढलान पर उतरने लगी थी। चमोली-जोशीमठ-बद्रीनाथ एक त्रिभुज जैसे है जिसमें जोशीमठ सबसे उपर लटका हुआ है। रिहाइशी इलाकों से बाहर आते ही हम काले पहाड़ो की गोद में थे रास्ता लगातार खड़ी उतराई वाला था। नीचे विष्णुप्रयाग पावर प्रोजेक्ट की रोशनियाँ और पुल नजर आ रहा था। यहाँ एक कार वाले ने ऐसा ओवरटेक किया की उसको बचाने में हमारी बस बिल्कुल ही किनारे की तरफ चली गई। हम आगे झुके हुए थे और बस एक तेज ढलानदार मोड़ पर खड़ी थी बस के आगे मुझे सड़क नहीं दिख रही थी ब्लकि सैकड़ों फूट नीचे पावर प्लांट नजर आ रहा था। जैसे हम हवा में उड़ते हुए वहाँ जाने वाले हो.. बस इंच भर ही हिल पा रही थी और सबके चेहरों पर हवाइयाँ उड़ने लगी थी। पुरे रास्ते बस हमारी बस ही नजर आ रही थी। कुछ गाड़ीयाँ उपर की तरह जा रही थी। 20 मिनट की मशक्कत आगे पीछे करने के बाद ही बस सड़क पर आ सकी थी, तब तक सबके कलेजे मुँह को आ गये थे। हाइड्रो प्रोजेक्ट को पार कर हमारी गाड़ी अब टूटे फूटे बेतरतीब पत्थरों पर चल रही थी। पुरे रास्ते पत्थर गिरे हुए थे, और लगातार गिरने की आवाजें आती जा रही थी। बगल में अलकनंदा का रौद्ररूप था जैसे सबकुछ मिटा देना चाहती हो। अचानक एक पहाड़ी के नीचे से बस निकालते समय छत पर कुछ धडाम की आवाज हुई शायद कोई छोटा सा पत्थर था पर कितनों की चीखें निकल गई थी। फिर तो ड्राइवर ने जो बस को भगाया की सीधे गोविंदघाट आकर ही रूका..
हमारे साथ कुछ पुलिस के जवान भी थे, जो अपने चैक पोस्ट पांडुकेश्वर जा रहे थे। तकरीबन सभी ने हमारे यात्रा टाइमिंग की मुक्त कंठ से निंदा की जब मौसम विभाग ने तीन दिनों तक भारी बारिश का रेड अलर्ट जारी किया है। मैंने उन्हे समझाया था की हमें हराभरा उत्तराखंड ही देखना है। उन्होंने फोन से पता किया और बताया की गोविंद घाट से आगे नहीं जा सकते। पांडुकेश्वर और उसके आगे बद्रीनाथ धाम के रास्ते लामबगड़ में रास्ते बिल्कुल ही कट गये है। और तीन चार दिनों तक सुधरने की कोई गुंजाइश नहीं। बस वाले ने आगे जाने की कही गोविंदघाट से थोड़ी ही दूर जाने पर एक मोटी बड़ी सी चट्टान बिल्कुल सड़क के बीच रखा थी। बस वापस गोविंदघाट लौट आयी थी। अब यह तय था की रात गोविंदघाट में ही गुजारनी थी। सबको बस में छोड़ मैं गुरूद्वारे की तलाश में निकला बारिश अब मुसलाधार हो चुकी थी। एक रास्ता जो नीचे जा रहा था।
पर एक काले टाइल्स लगा बड़ा सा गुरूद्वारे का गेट बना हुआ था। पता टला गुरूद्वारा नीचे 500 mt दूर है। झमाझम बारिश में आगे बढ़ा तो एक नाले ने रास्ता रोक लिया। उसमें धुआँधार पानी आ रहा था। वापस मुड़ कर सड़क तक आया। तकरीबन सभी होटल और लाॅज लोगों से भर चुके थे। जो खाली थी उन्होंने अपने किराये तीन-चार गुना कर लिए थे 2500 से नीचे का कोई कमरा नहीं। थोड़ी तलाश करने पर गुरूद्वारे के गेट के पास ही हमें कमरा 800 रू में मिल गया। अब मैं वापस सबको बुलाने भागा था, और उपर से सड़क जैसे झरना बनी हुई थी। बस में कुछ यात्री कानपुर के थे तो कुछ मध्य प्रदेश के होटलों के किराये में लगी आग के कारण सभी बस में ही रात गुजारने वाले थे मैंने सबको होटल के बारे में बताया पर कोई हिलने को तैयार नहीं था। हम चार लोगों ने कमरा ले लिया था और सामान व्यवस्थित कर खाने और जरूरी चीजों की तलाश में निकले पहाड़ो पर तो सन्नाटा भी जल्दी ही होता है। खाना खाते समय ही तय किया गया की कल बद्रीनाथ ना जाकर हम पहले हेमकुंड और फूलों की घाटी के ट्रैक पर जाएँगे। फिर हमें कुछ कामचलाऊ प्लास्टिक रेनकोट और कुछ और सामान की जरूरत थी जो कुछ ही दूर मिल गये थे। जब तक मैं और ज्योति जी सामान लेकर वापस आते।
मृगांक और संतोष बाबू ने होटल मालिक को लपेटे में लेकर एक 100/100 का इंतजाम भी कर चुके थे। ज्योति जी सोने जा चुके थे और अब बारी थी दिन भर की कमर तोड़ थकान उतारने की सुना तो बहुत था इसके बारे में.. और यह वाकई में घोड़ो को भी बेहोश करने वाली दवाई थी। हमारा कमरा नदी कुछ लटका हुआ सा था। नीचे घाटी में अलकनंदा गरज रही थी ठीक सामने ही लक्ष्मण गंगा का संगम हो रहा था। कमरे की खिड़की से पहाड़ो चांद और संगम का दिलकश नजारा था। कल हमें जल्दी उठकर 16km के ट्रैक कर घांघरिया या गोविंद धाम पहुँचना था। आँखे बोझिल थी और शरीर दिन भर की उझलकूद से हैरान परेशान.. अब विदा। क्रमशः..
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इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘
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ब्यासी में गंगा |
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रास्ते में कहीं तो सही |
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चिंतामुक्त बेचारे |
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चार धाम प्रोजेक्ट का कहर |
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देवप्रयाग संगम |
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देवप्रयाग थोड़ी रोक तो लो भैजी |
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दरकते पहाड़ |
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चलो हटा देते है |
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जल्दी करो कहीं हमारे उपर ही ना गिरे |
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कर्णप्रयाग बाजार |
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रंग बिरंगा कर्णप्रयाग |
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मचलती अलकनंदा |
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टुटते पहाड़ बिखरते रास्ते |
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रास्तों की दुर्गति |
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हरे भरे खेत, दूर खेतों मे कोई शूटिंग भी चल रही थी। |
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अहा पहाड़!! |
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तपोवन बिजलीघर |
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100/100 गोविंदघाट |
100/100 😄😄 I Like It.
ReplyDeleteअच्छा जी, सिक्किम काॅलिंग.. 😍😍🙏
Deleteसुंदर यात्रा वर्णन,दोस्तो के साथ भरपूर आनंद साथ ही फोटोज भी कमाल के,
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया दी.. 😊🙏🙏
Deleteमैं तो सोचता था की तुम १००/० से भी दूर रहते हो।
ReplyDeleteकंजर माफी चाहता है गुरू जी..🙏🙏
Deleteमैंने सोचा यदी यात्री बनना है तो सभी ऐब से दोस्ती होनी चाहिए ना मालूम कब कहाँ कौन काम आ जाए..
अरे वाह, आप भी ब्लॉग पर हो । हम अब तक कैसे मरहूम रहे । गजब लिखा ।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया दरोगा बाबू ..🙏🙏
Deleteसारी कलाकारी का श्रेय अभय भईया को जाता है , मैंने तो बस हाँ में हाँ मिलाई थी। 😃
बारिशों में पहाड़ से दूर ही भले। सितंबर में मेरी हेमकुंड यात्रा बहुत ही सुहावनी थी।
ReplyDeleteबुआ जी, असली मजा तो बरसातों में ही मिलता है पहाड़ो का.. 😍
Deleteबेहद खूब अनुराग जी, पर 100/100 से दूर ही रहा कीजिये...क्योंकि इस का उत्तर "जीरो" ही आता है जी।
ReplyDeleteशुक्रिया जी.. 100/100 से आमतौर पर दूर रहता ही हूँ पर एक घुम्मकड़ के तौर पर अनुभव के लिए हर स्थानीय चीज का अनुभव लेने भर लिए ही दोस्ती है बस.. 😍😊
Deleteइसके बारे में लिखने के लिए मुझे कितने लोगों से डांट भी पड़ी। 🙏🙏🙏
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ReplyDeleteकतई प्रकृति प्रेमी होना भी बड़े साहस का काम है अनुज। विपरीत परिस्थितियों में घुमक्कड़ी आसान नहीं होती, पर जो कर ले वो ही घुमक्कड़ बन जाता है और शब्दों के साथ रास लीला में तो तुम स्वयं मुरलीधर हो। रोचकता और रोमांच बनाये रखना भी लेखक की कला है और यह लेख रोचक और रोमांच से लबालब है। शुभकामना भाई।
ReplyDeleteअहा.. !! शुक्रिया भईया जी 😊🙏
Deleteअहा.. !! शुक्रिया भईया जी 😊🙏
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