नालंदा - राजगीर यात्रा भाग- 5
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पिछली कड़ी में हम रोप वे से गृद्धकूट और विश्व शांति स्तुप घूमने के बाद वापस नीचे आए.. धूप तेज खिली हुई थी और हमने अपनी बाइक यूँ ही पार्क कर दी थी और हेलमेट भी बाइक पर ही बस रख भर दिया था, वापस आए तो बाइक तवा और हेलमेट तंदूर बन चुका था पर दोनों ही पुर्णतया सुरक्षित थे। बाइक को छाया में खड़ी कर पास ही एक दुकान में कुछ नास्ते की तलाश में घुस गये हमारे मित्र मृगांक बाबू की भूख बर्दाश्त करने की क्षमता शून्य है फिर उन्हे अनिकेत बाबू का भी साथ मिल गया,
नास्ते के बाद नजर गई घोड़ा कटोरा झील की तरफ जाने वाले रास्ते और पर्यटन विभाग के बोर्ड पर, कल सुना तो था पर रास्ता कहाँ से है यह पता नहीं चल पा रहा था।
घोड़ा कटोरा झील पक्षी अभ्यारण्य
जैसा की हमने पहले बताया की राजगीर एक जमीन पर बिझे हुए बड़े से U आकार की घाटी की दुसरी तरफ बसा है और राजगीर-बोधगया राजमार्ग उसे दो दर्रे जैसी जगहों से आर-पार करता है। इसी बड़ी सी U बनाती घाटी के आखिरी सिरे पर जहाँ दोनों किनारे की पहाडियाँ मिलती है वहीं यह झील स्थित है। यहाँ कोई भी ईंधन वाला वाहन पुर्णतया प्रतिबंधित है इसलिए 6 km की दूरी आपको टमटम(तांगा) या बग्घी पर बैठकर करना होगा। हमारे विशालकाय शरीर को देखने के बाद जल्दी कोई टमटम वाला तैयार नहीं हो रहा था पर जब हमने कसम खाई की हम बस दिखते बड़े है दरअसल हल्के फूल्के ही है तब 400 रू में एक टमटम हमें घोड़ा कटोरा झील तक ले जाने को तैयार हुआ, एक मिट्टी के रास्ते हम चल पड़े। यह झील क्षेत्र एक पक्षी अभ्यारण्य भी है और बहुत ही सुरम्य जगह है। अब हमारी जिज्ञासा थी की इसका नाम घोड़ा कटोरा क्यों है? बहुत पता लगाने पर पता चला की चूँकि यह कटोरे के आकार का है और यहाँ मगध की सेना के घोड़ो का निवास था, जहाँ वह पानी पीते थे। यहाँ किसी राजा के द्वारा पानी या सिंचाई के लिए बनवाई गई एक नहर भी है जो झील से ही शुरू होती है। कुछ सुकून भरे बेहतरीन पल बिताने के बाद हम वापस रोप वे टिकट घर के पास आ गये, और हमारी बाइक सावन की भरी दुपहरी की चिलचिलाती धुप में दौड़ने लगी अन्य दर्शनीय स्थलों की और वस्तुतः हम वापस अपने होटल की ओर ही लौट रहे थे क्योंकि सभी जगहों को हमने पीछे छोड़ दिया था। अभी मुख्य सड़क पर आए ही थे की अचानक मैंने जोरो से ब्रेक दबाए, दोनों मित्र मेरा चेहरा देखने लगे इससे पहले की वो मुझे कुछ सुनाते मैंने एक तरफ इशारा किया यह था।
बिंबिसार कारागृह-
सड़क से लगभग 50 m दूर ही एक वर्गाकार नींव थी जिसके चारो कोने पर कभी बुर्ज रहे होंगे एक कोने पर कुछ कमरे के भी अवशेष है। पर्यटन विभाग का बोर्ड एक बेहद मार्मिक कहानी की जानकारी देता है- मगध नरेश अजातशत्रु ने सिंहासन के लालच में अपने पिता बिंबिसार को बंदी बना लिया था, तब बिंबिसार ने यह स्थान अपने कारागाह के लिए स्वयं चुना था ताकि वह कम से कम रोज गृद्धकूट पर प्रवचन के लिए जाते गौतम बुद्ध का दर्शन भर कर पाए और उसके प्राण शांति से छूट सके। यहाँ के पुरातत्विक खुदाई में लोहे की जंजीर से जुड़ी कड़ीयाँ मिली थी जिससे इसके कारागाह होने की पुष्टी होती है।
बिंबिसार कारागाह के बाद हमने अपनी बाइकों को वापस मुख्य सड़क पर राजगीर की ओर दौडाने लगे, हमारा अगला पड़ाव था मनियार मठ, सोन भंडार और सप्तपर्णी गुफा जो बांए तरफ मिलती एक 2km लंबी सड़क पर आपस में कुछ-2 दूरी पर स्थित है।
मनियर मठ-
सड़क से बिल्कुल ही पास सभसे पहले दिखाई देता है मनियार मठ, पाली ग्रंथों में इसे मणिमाल चैत्य बताया गया है जो प्राचीन राजगृह नगर के मध्य में स्थित था। महाभारत में भी इसका जिक्र मणिनाग मंदिर के रूप में किया गया है। कुछ किवदंतियाँ इसे अजातशत्रु द्वारा सुखा राहत के लिए जलदेवी की कृपा पाने के लिए बनाया जाना बताती है। यह एक कुप या छोटी मीनार जैसी संरचना जिसके उपर के भाग को टिन शेड से ढ़क दिया गया है। इसका व्यास 3 मीटर तथा इसके दीवार 1.20 मीटर मोटी है। दीवार के बाहरी तरह के आलो में चतुर्भुज विष्णु, सर्प से लिपटे गणेश और नागों की मुर्तियाँ है जिनमें अधिकांश नष्ट हो चुकी है। मुर्तियों की बनावट के हिसाब यह गुप्त कालीन संरचना मालुम होती है। पास ही छोटे-2 सरायनुमा इमारतें भी बनी हुई है।
सोन भंडार-
सोन भंडार की दोनों गुफाओं को तेजस्वी जैन संत श्री वैरदेव जी ने जैन मुनियों की साधना स्थली के रूप में बनवाया था। पहली गुफा जिसकी छत ध्वस्त हो चुकी है में दो कमरे है बाहरी कमरा ईटों का बना हुआ है और भीतरी कमरा पत्थरों को काटकर जिसमें जैन तीर्थंकरों की मुर्तियाँ उत्कृण की गई है। इस कमरे से गुप्तकालीन गरूणासन विष्णु की प्रतिमा मिली है जिसे नालंदा संग्रहालय में रखा गया है। दुसरी गुफा के कारण ही इसे सोन भंडार कहा जाता है। इस गुफा की छतों पर छेनी हथौड़ो के स्पष्ट निशान दिखाई देते है। इस गुफा के एक दीवार पर एक दरवाजे के स्पष्ट चिह्न बने हुए है। कहा जाता है की इस दरवाजे के पीछे सम्राट बिंबिसार का अतुलनीय स्वर्ण खजाना छुपा हुआ है। जिसके पास ही शंख लिपी में कुछ लिखा गया है छिसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है शायद गुफा के निर्माता की जानकारी पर अफवाह यह है की इस मंत्र के पढ़ने से ही खजाने का दरवाजा खोला जा सकता है। इस अफवाह के कारण बहुत से लोगों ने यहाँ बहुत सी तोड़ फोड़ की है यहाँ तक अंग्रेजों ने भी इसे तोप के गोलों से तोड़ने की कोशिश की है। राजगीर आने वाला हर पर्यटक यहाँ जरूर आता है इसलिए यहाँ चहल पहल रहती है। इस गुफा के बांयी ओर 2km दूर एक चौकोर आकृति है जिसे जरासंध का अखाड़ा भी कहा जाताहै। और दाहिने और स्थित है सप्तपर्णी गुफा..
सप्तपर्णी गुफा-
सप्तपर्णी गुफा ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों ही कारणों से महतवपुर्ण है, यहाँ कुछ दूर बाइक से कुछ जंगलों के बीच पैदल और फिर एक कठिन चढ़ाई से पहुँचा जा सकता है। यहाँ से दूर-2 का नजारा है, बना बनाया रास्ता गुफा तक जाता है। इस गुफा में ही 483 ई•पू• गौतम बुद्ध के निर्वाण के छः महिने बाद उनकी शिक्षाओं के संकलन के लिए महाकस्यप की अध्यक्षता में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया तब मगध का राजा अजातशत्रु का शासन हुआ करता था। इस संगीति में बुद्ध के परम शिष्य आनंद और उपालि के साथ-साथ 500 प्रमुख बौद्ध भिक्षुओं ने हिस्सा लिया तथा बौद्ध धर्म के दो आदीग्रंथ सुक्तपिटक और विनयपिटक की रचना की गयी।
सप्तपर्णी गुफा से नीचे उतर हमारी बाइक पुनः मुख्य सड़क की और दौड़ने लगी रास्ते में मृग विहार नाम का एक पार्क था जिसमें कोई मृग दिखाई नहीं दिए। मुख्य सड़क पर आकर हम वापस राजगीर की तरह चले, रास्ते में ब्रह्मकुंड दुबारा आया पर वहाँ अब धमाचौकड़ी और भी ज्यादा बढ़ गई थी आगे बढ़ने पर अगला पड़ाव था वेणुवन..
वेणुवन-
यहाँ प्रवेश के लिए पांच रूपये का टिकट है। वेणु का शाब्दिक अर्थ होता है बांस, इसे पाली और संस्कृत ग्रंथों में पवित्र बताया गया है। इसे मगध नरेश बिंबिसार ने गौतम बुद्ध को दान स्वरूप दिया था, इस उपवन के मध्य स्थित करण्यक-निवाप नाम का एक सरोवर है जिसमें बुद्ध स्नान कर गृद्धकूट पर्वत पर प्रवचन देने जाते थे। यह वेणुवन बुद्ध को अत्यंत प्रिय था,इसका विसद वर्णन फाह्यान और ह्वेनसांग ने भी अपने यात्रा वर्णन में किया है।
1905-06 में ASI की खुदाई में मिट्टी के टीले के दाहिनी तरह एक मुस्लिम कब्र के 1.8 मीटर नीचे कमरे की दिवारों और नौ छोटे स्तुपों, मृदभांडो का पता चला, पुर्वी छोर की खुदाई पर बुद्ध, बोधिसत्व, शिव-पार्वती की विखंडित और अनेक मिट्टी के टेबलेटों का पता चला है जिन पर दसवीं-ग्यारहवीं सदी की लिपि में ये धर्मा हेतुं प्रभवा हेतुं... मंत्र अंकित है। इसके अतिरिक्त यहाँ मानव अश्व हाथी और चक्र अंकित पाषाण शिल्प भी मिले है। वर्तमान में इस उपवन में पुनः बांस का रोपण कर इसे प्राचीन रूप दिया जा रहा है इस उपवन के अंदर एक बौद्ध मंदिर और छोटा संग्रहालय भी स्थित है।
पुरे दिन के राजगीर भ्रमण के बाद अब मेरे दोनों साथियों को अपने तारांकित होटल के नरम गद्दो और अंतर्राष्ट्रीय सौंदर्य से परिपुर्ण तरणताल याद आने लगा था, शाम भी होने लगी थी पर अभी मेरा विरायतन मंदिर देखने जाने का मन था इसपर विद्रह उठ खड़ा हुआ नतीजा ये हुआ की मैं विरायतन अकेले जाऊँगा और दोनों मित्र वापस होटल जाएँगे। आइए आपको भी विरायतन तक घसीट ले चलूँ...
वीरायतन-
वीरायतन जैन धर्म से संबंधित एक महत्वपूर्ण आश्रम है, जो वैभवगिरि पहाड़ी के निचले भाग में अवस्थित है। भगवान महावीर के 2500 महानिर्वाण महोत्सव (1973) पर राष्ट्रसंत के पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री अमन मुनी जी के मंगल आर्शीवाद से संस्थापित यह आश्रम आचार्य श्री चंदनाश्री जी की दिव्य कर्म प्रज्ञा से प्रकाशित है। यहाँ मुफ्त ईलाज की सुविधा है। इस संस्था के अंदर ही म्यूजियम भी है। जहाँ प्रवेश का 15 रू शुल्क है, म्यूजियम में महावीर के जीवन की घटनाओं से संबंधित अत्यंत सुदंर झांकियाँ व मूतियाँ प्रदर्शित की गई है। यहाँ के एक जैन मुनि से यहाँ के बारे में कितनी बातें हुई। और बहुत कुछ बताना चाहते थे पर मुझ पर भी अब थकान हावी हो रही थी।
यहाँ से निकलने के बाद मैं भी सीधा होटल की तरह ही अंधाधुँध बाइक दौडा दी, कमरे में जाकर पता लगा की मेरे दोनों मित्र नदारद है। बाहर बालकनी से झांका तो दोनो मुझे नीचे पूल में मस्ती करते नजर आए.. मैं भी नीचे भागा और एक बड़े झपाक के साथ उनके साथ हो गया, दिनभर की भागदौड़ के बाद ठंडा पानी कितना सूकून दे रहा था। आज होटल में ढेर सारे पर्यटक है पुरा पूल भरा हुआ है और गहमागहमी है। कितने ही यात्री चीन से कितने ही जापान से.. कुछ वियतनाम, थाईलैंड और मलेशिया तक के भी सबसे सुदंर एक परियों का झुंड है जो रशियन है। देर शाम तक पूल में मगरमच्छ की तरह लेटे रहने के बाद कमरे तक आए फिर शरीर को कुछ आराम देने वाले कुछ पेय मंगाये गये, फिर थकान से चूर निढ़ाल होकर बेतरतीब गिरे तो किसी को रात के डिनर की कोई परवाह नहीं थी। अगली सुबह हमें जल्दी चेकआउट कर बोधगया के लिए जो निकलना था।
इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी ⚘
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