Friday, November 16, 2018

नालंदा डायरी भाग ~ 4 nalanda-rajgir journey

                         
                                                       नालंदा राजगीर यात्रा भाग - 4

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आखिरकार तमाम झंझटो के बीच थकान से चूर शरीर सभी मोहमाया को किनारे कर जब डनलप के गद्दे में 1 फीट तक धंस गया तो नींद तो आनी ही थी। सारे घोड़ो को खुल्ला छोड़ सोए तो सुबह 7 बजे ही नींद खुली। सुनहली सुबह हो रही और आसमान में बादलों का कोई अता पता भी नहीं था। जबकि कल हम पुरे दिन बादलों से लुका छिपी और पकड़म-पकड़ाई ही खेलते रहे थे। साथ के मित्रों को अभी बिभावरी की लोरी मदहोश किए थी, पर जब बात एक पुरा शहर देखने की हो तो समय की पाबंदी तो चाहिए ही करते ना करते एक घंटे में सभी तैयार हो चुके थे, और हमारा काम्पलिमेंट्री शानदार नास्ता भी आ चुका था। नास्ता निबटाने, जुस पी चुकने के बाद अब हम बाहर लांउज में पहुँचे कुछ निर्दश दिए-लिए गये। अब हमारी बाइक धुली धुलाई तैयार थी दुबारा कीचड़ से पुतने के लिए..
रात को ही अभयानंद सिन्हा जी से मिले गाइडेंस से राजगीर को खंगालना का तय किया गया था जिसमें सबसे पहले ब्रह्मकुंड के गर्म सोतों में नहा कर दिन की शुरूआत करना था जो हो ना सका। हमसे सबसे दूर जो जगह थी वह विश्व शांति स्तुप था, हमने पहले सीधे वहाँ जाने तथा वापसी में राजगीर के सभी दर्शनीय स्थलों को देखने का निर्णय लिया था। इससे पहले थोड़ा राजगीर के बारे बता दूँ।

राजगीर - एक परिचय 

राजगृह या राजगीर प्राचीन मगध साम्राज्य की वैभवशाली और समृद्ध शहर था। जहाँ तथागत बुद्ध और महावीर स्वामी ने अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाया। राजगृह का प्रथम उल्लेख पुराणों में मगध नरेश बृहद्रथ और उनके पुत्र जरासंध के संदर्भ में आता है तो जैन आगमों और बौद्ध ग्रंथों में हैर्यक वंश के राजा बिंबसार की राजधानी के रूप में आता है।
राजगीर, दो समांतर पश्चिम से पुर्व की और जाती पहाड़ियों के बीच बनी घाटी के किनारे पर बसा है, जो आगे जाकर वह दोनों समांतर पहाडियाँ एक दुसरे से मिलकर घाटी का रास्ता एक तरफ से बंद कर देती है। वर्तमान राजगीर शहर मैदानी जगह पर स्थित है पर प्राची राजगृह नगर के ध्वंसावशेष घाटी के मध्य और पहाड़ी इलाकों में बिखरे पड़े है। जिनको दुर्गम झाड़ीओं और जंगलों ने सहेज कर रखा है। राजगीर के पहाडियों के नीचे अनेक गंधक और अन्य रसायनों के भंडार दबे है और जब भूमिगत जल इनके संपर्क में आता है तो रासायनिक क्रिया से गर्म हो जाता है, इसलिए यहाँ अनेक गर्म जल के सोते मिलते है। प्राचीन राजगृह नगर में लकड़ी से बने अनेक मकान थे और एक लोककथा से पता चलता है की बार-बार आग की घटना से परेशान होकर एक नियम बनाया गया की जिसके घर से आग शुरू होगी उसको नगर के बाहर घर बनाना पड़ेगा। संयोग से राजमहल में ही आग लगी और राजा को नगर की सीमा पर पहाड़ियों में राजमहल बनवाना पड़ा। वस्तुतः बात सुरक्षित स्थान की तलाश थी और चारों तरफ पहाडियों से घिर कटोरेनुमा जगह पर राजमहल अब बिल्कुल सुरक्षित था। बाद में अजातशत्रु के पुत्र उदायिन ने फैलते साम्राज्य, परिवहन और प्रशासनिक व्यवस्था के आधार पर मगध की राजधानी पाटलीपुत्र(पटना) कर दी।
खैर ये तो राजगीर एक परिचय भर था, राजगृह में दर्जन भर दर्शनीय और ऐतिहासिक महत्व के स्थल है जो की एक सड़क से ही आपस में एक लाइन से जुड़े हुए है, यदी कोई चाहे तो बस उसी एक सड़क से सभी जगहों को आसानी से देख सकता है। तो अपनी सीट बेल्ट बांध कर घुम्मकड़ी शुरू की जाए.. ओहह साॅरी हम तो बाइक से है।

2500 वर्ष पुरानी साइक्लोपियन दीवार - 
 कमरे की बालकनी से ही थोड़ी दूर पर एक विस्तृत मैदान और कुछ संरचना नजर आ रही थी। तो हमारा काफिला सबसे पहले वहीं रूका, शायद आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की विश्व की सबसे पुरानी सुरक्षात्मक दीवार राजगीर में ही है और इसे विश्व विरासत का दर्जा दिलाने के प्रयास वर्तमान बिहार सरकार द्वारा किए जा रहे है। मैदान में हमें गाड़ी चलाना सीखने वालों की भीड़ मिली साथ ही कुछ पुराने किले के अवशेष और मोटी मोटी दीवारों के भी.. यह दीवार 40 km लंबी है और पुरे राजगीर में इसे जहाँ-तहाँ देखा जा सकता है। कभी यह पुरे राजगृह नगर को सुरक्षा देती रही होगी। पहाड़ियों पर इसके दीवारों और बुर्जो के स्पष्ट प्रमाण मिलते है। कहा जाता है की यह चीन की दीवार से भी प्राचीन है और इसे भी उसी तकनीक से बनाया गया है। बाहरी बड़े पत्थरो की चिनाई के बाद उसके अंदर छोटे छोटे पत्थरों को भर कर।

ब्रह्मकुंड - 

ब्रह्मकुंड- कुछ ही दूर पर हमें खाली सड़क पर अचानक मेला जैसा माहौल मिल गया। सैकड़ों लोग थे सभी भगवा रंग में रंगे क्योंकि हमारी यह यात्रा सावन के महीने में चल रही थी और राजगीर बैद्यनाथ देवघर जाने के रास्ते एक पड़ाव बनता है। हमने कुछ देर रूक कर जायजा लिया हर तरह उधम मची हुई थी, अफरा तफरी थी और गंदगी भी, गर्म जल के सोतों की तो दुर्गति हो रखी थी, सभी उसमें खुद और अपने गंदे कपड़े धो रहे थे। मेरी किस्मत यहाँ खराब होती है मैं यहाँ कुछ देर हमेशा ही गर्म पानी के तालाब में आराम करना चाहता हूँ, जो कभी पुरा नहीं होता। ब्रह्मकुंड एक विस्तृत क्षेत्र में कई मंदिरों का समूह है। सबसे मजेदार यहाँ लगा एक बोर्ड है जो उच्च न्यायालय के आदेश से मुस्लिमों का प्रवेश निषेध करता है। राजगीर में अनेक गर्म कुंड है पर सभी जगह कोई ना कोई मंदिर खूल गये है जहाँ पंडो की आराफात आमदनी होती है। सभी पंडे अनपढ़ और जाहिल लोग है, जिनके जिंदगी का बस एक उदेश्य है प्राकृतिक गर्म सोतो में हर नहाने वालों से कुछ पैसे जबरन लेने की कोशिश करना। पहाड़ी के नीचे से निकलते होते को मीनमुख नालीओं से गिराया जाता है जो आगे जाकर एक जमीन से कुछ नीचे की तरह के कुंड में इकट्ठा होता रहता है। कुंड का क्षेत्रफल 20×20 ft के लगभग ही ही होगा और उसमें सैकड़ों लोग भीड़ भरे दिनों में एक दुसरे से चिपके हुए घुसे हुए रहते है। जिसे देखकर त्राहिमाम करना ही सबसे बेहतर लगा, बाहर की मीनमुख झरनों पर मैं गर्म पानी के अहसास के लिए अपना चेहरा धोने लगा तो एक पंडे ने दक्षिणा की मांग कर डाली, मैंने उसपर कोई ध्यान नहीं दिया तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया, मुझे भी ऐसा लगता है की साबू की तरह मुझे भी गुस्सा आने पर कहीं ना कहीं ज्वालामुखी जरूर ही फूटता होगा , शायद हवाई में, इटली में या फलीपींस में। मैंने जोरदार आवाज में उसकी क्लास लेनी शुरू की और दुकानदारी का आरोप लगाया, लोगों का मनोरंजन होने लगा हमारे आस पास एक जमावडा लग गया , जब पंडो के धंधे पर आंच आने लगी तो बीच बचाव हुआ और मैं भी गुस्से से लाल-पीला गर्म पानी के मजे लेकर आगे चलने के लिए तैयार हो गया। यहाँ से उपर कुछ चढ़ने के बाद एक गुफा मिलती है जहाँ से आगे सप्तपर्णी गुफा तक भी जाया जा सकता है, जिसके बारे में आगे चर्चा होगी। फिलहाल अब हम सीधे 4km की दुरी पर विश्व शांति स्तुप देखने जा रहे थे। जहाँ तक पहुँचने का रोपवे हमें राजगीर पहुँचने से पहले कल ही नजर आ गया था।


विश्व शांति स्तुप - 

विश्व शांति स्तुप- रत्नागिरि पर्वत पर विश्व शांति स्तूप के निर्माण की योजना जापान बौद्ध संघ के अध्यक्ष पूज्य गुरू जी भिक्षु निचिदात्सु फूजी की है। 1965 में निर्मित स्तूप की उँचाई 120 फीट एवं स्तूप का व्यास 103 फीट है। स्तूप के चारो ओर गवाक्षों में ध्यान,ज्ञान,उपदेश और निर्वाण मुद्राओं में चार बुद्ध प्रतिमाएँ स्थापित हैं, जो अत्यन्त भव्य और आकर्षक हैं। यहाँ जापान बौद्ध संघ के सहयोग से प्रत्येक वर्ष समारोह का आयोजन किया जाता है, जिसमें गणमान्य व्यक्तियों के अलावा बड़ी संख्या में विदेशी बौद्ध भिक्षु भी भाग लेते है। यह पर्वत प्रसिद्ध गृद्धकूट पर्वत के सामने स्थित है, जहाँ तथागत गौतम बुद्ध ने विश्व शांति के लिए सद्धर्मपुणरीक सुत्र का उपदेश दिया था। इस संबंध में एक दिलचस्प कथा पास ही बने भगवान बुद्ध के मंदिर में प्रदर्शित है- 'जब तथागत गृद्धकूट पर रहते हुए अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे थे, तभी सामने जहाँ आज विश्व शांति स्तुप है उसी रत्नागिरि पर्वत पर एक रत्नजड़ित अतिप्रकाशमान यान आकाश से अवतरित हुआ, और उसमें से एक अति प्राचीन बुद्ध बाहर आए और तथागत बुद्ध की वंदना कर कहा की-  हे शाक्यमुनि ! आप यह जो अनुत्तर सम्यक संबोधि का उपदेश दे रहे यह निश्चय ही सत्य है और समस्त विश्व के लिए कल्याणकारी है। फिर गौतम बुद्ध और आगत बुद्ध ने उस यान में बैठकर परस्पर विचार विमर्श किया तथा  ";नाम म्यों हे रें गे क्यों" नामक बीजमंत्र का अनुसंधान किया। आज राजगीर की पहचान बन चुके यह विश्व शांति स्तुप का निर्माण उसी यान और प्राचीन बुद्ध की याद में प्रतिकृति रूप में किया गया है।'
यदी वैज्ञानिक रूप से ध्यान दिया जाए तो यह शायद UFO और परग्रही जीवन(एलियन) का सबसे प्राचीन लिखित साक्ष्य है।
ब्रह्मकुंड से राजगीर-गया मार्ग पर कुछ दूर चलने पर एक विशाल द्वार विश्व शांति स्तुप की ओर संकेत करता है। राजगीर के अधिकांश दर्शनीय स्थल इसी सड़क पर है, जिन्हे हमने अभी पीछे छोड़ आए है। 2 km चलने पर अब हम एक गोलाकार चौराहे पर पहुँचते है जहाँ विश्व शांति स्तुप शिखर पर जाने के लिए लगे रोप वे का टिकट घर और पैदल पथ है। रोप वे की दोनों तरफ की टिकट दर 80 रू तथा एक तरफ की&nbsp; 50 रू है। रोप वे खुली कुर्सी लगी एक रोमांचक अनुभव होता है, जहाँ आपके पैर नीचे खुले में लटके रहते है। इस रोप वे की शुटिंग मशहुर अभिनेता देवानंद की फिल्म जाॅनी मेरा नाम के गाने में भी की गई है।<br>
उपर पहुँचने पर कुछ दूर पैदल सीढ़ीयाँ चढ़नी पड़ती है, जिसके बाद विशाल स्तुप के नयनाभिराम दर्शन होते है। स्तुप के दाहिने एक सुंदर मंदिर है तथा बाएँ तरफ बौद्ध भिक्षुओं की समाधियाँ बनाई गई है। स्तुप के ठीक सामने जहाँ पैदल रास्ता नीचे उतरता है, वहाँ एक विशाल घंटा की स्थापना की गई है। आसपास कुछ आवासीय परिसर भी जो विशेष अतिथियों के लिए है। पुरे पर्वत से आलोकिक प्राकृतिक सौंदर्य के दर्शन होते है। बरसातों के समय तो यह स्थान स्वर्ग सा सुंदर हो जाता है सौभागय से अभी हम यहाँ सावन महिने में ही आए है। प्राकृतिक नजारें बिल्कुल अह्लादित कर देते है। कुछ समय यहाँ बिताने के बाद हम रोप वे से ही वापस नीचे आते है।
राजगीर के अनेक दर्शनीय स्थलों की सैर अभी बाकी ही है।

इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘




















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