बरसातों में नंदनकानन की ओर... अंतिम भाग
(ऋषिकेश-हरिद्वार भ्रमण और घर वापसी) 29/08/2018
पिछले भाग में आपने देखा की जब हम नीलकंठ महादेव से वापस ऋषिकेश पहुँचे तो भयंकर बारिश से सामना हुआ था और हम सिर छुपाने के लिए ऋषिकेश के सबसे ऑइकानिक बिल्डिंग में घुस गये थे। जी हाँ, सभी के आकर्षण की केंद्र और ऋषिकेश की पहचान बन चुकी...
लक्ष्मण झुला के पास दिखती यह बहुमंजिला ईमारत है कैलाश निकेतन या श्री त्रयम्बकेश्वर मंदिर, जब तक बारिश चलती है तब तक हम इसमें घुम सकते थे। हमें लगा था की यह कोई मंदिर होगा, पर यह तो एक कई फ्लोर पर बना एक धार्मिक शाॅपिंग माॅल निकला था। इस भवन के हर फ्लोर पर ढेरों दुकान जैसे कमरे बने हुए थे, जिसमें कुछ कमरों में विभिन्न देवी देवताओं की मुर्तियाँ स्थापित है तो कुछ कमरों में नकली पत्थर और ग्रह रत्न, छोटी मुर्तियाँ, ज्योतिष और ऐसे ही कितने ऊल जलूल चीजों की दुकानें थी। भगवान और दुकान दोनों मिलकर एक खिचड़ी बन गये थे।
बहुत मजेदार जगह थी, एक दुकानदार ने तो गृहस्थ जीवन में शांति की अंगूठी ऑफर की जब मैंने बताया की मैं अभी कुंवारा हूँ तो उसने कांउटर से मनचाही दुल्हन पाने वाली अंगूठी निकाल कर दी थी। उसने मेरा जन्मदिन पुछ कर हिसाब लगाया की मुझे रूबी की अंगूठी मध्यमा ऊँगली में पहननी चाहिए। जब तक बारिश नहीं रूकी तब तक हम हर फ्लोर पर यहीं तमाशे करते रहे, हमारा हँसने सेे बुुुरा हाल हो गया था, हमारेे पेेट दुुखनेे लगेे थे। वैसे इस भवन का एक ही फायदा है की इसके उपर की मंजिलो से दूर-दूर का बढ़िया नजारा है। भवन के नीचे शायद गंगा आरती की जगह थी पर बाढ़ के कारण गंगा बिल्कुल भवन को छूने पर आमदा थी। बारिश रूकने पर हम लक्ष्मण झूला से पैदल पैदल राम झूला की ओर घुमते-घामते चल पड़े थे। हरिद्वार और ऋषिकेश के गंगा किनारे की गलियों में घुमने पर ऐसा लगता है, जैसे बनारस में ही घूम रहे हो.. राम झूला पर भी फोटोग्राफी और कुछ देर गंगा किनारे बिताने के बाद शाम गहरा गई थी।
हमने राम झूला के पार से एक ऑटो हरिद्वार के लिए बुक किया और वापस चल पड़े। रास्ते में बहाने से रायवाला वाली दवाई भी ले ली और किसी को कानों कान खबर नहीं हुई आखिरकार आज हमारी यात्रा की आखिरी रात थी। कल देर शाम हम घर वापसी की ट्रैन में होंगे, विदाई पार्टी तो बनती है। बारिश में ही हम होटल तक आए, ज्योति जी थकान के मारे सीधे अपने कमरे में सो गये फिर हमारी पार्टी शुरू हो गई, खाने के सामान हमने अपने रूम में मंगवा लिए थे। देर रात तक पार्टी के बाद हम जैसे तैसे ही बिखर गये थे। सुबह धूप निकलने तक किसी को कोई होश नहीं था। ब्रैकफास्ट निपटाने के बाद हमने अपना सामान पैक किया, हिसाब किताब किए गये और फिर हम अपना सामान होटल पर ही छोड़ कर हरिद्वार दर्शन के लिए जाने वाले थे।
बाकी सब मनसा देवी और चंडी देवी जाने के इच्छूक थे पर अपने को तो बस पानी में मगरमच्छ की तरह पड़े रहने से मतलब था। आज तो पुरा दिन था मेरे पास मैंने जीभर के अपनी ख्वाहिश पुरी की, दोपहर बाद ही वापस होटल जा पाए थे। ज्योति जी कमरे पर ही यही और फिर मैं अपने दोनों पर्यटक मित्रों को हरिद्वार से कुछ शाॅपिंग के लिए दुबारा घाट के पास बाजार में लेकर गया। यहाँ शाॅपिंग के समय ही जोरदार बारिश आई और चलती रही.. चलती रही घंटो..
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बाजार की गलियाँ अब एक लहरों वाली नदी का रूप ले चुकी थी जैसे गंगा मईया शहर में ही घुस आई हो, घुटने भर गहरा तेज बहता पानी था की कोई गलियों मे राफ्टिंग भी कर सकता था। बारिश के कारण हम फंसे हुए थे और ऐसा लग रहा था जैसे हमारी ट्रैन ही ना छूट जाए। ऐसा मेरे साथ चौथी बार हो रहा था जब मैं हरिद्वार से ट्रैन पकड़ने वाला हूँ और ऐन वक्त पर बारिश खलनायक बन जाए , हर बार मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ.. समझ के बाहर है जिसे तैसे हमने एक टपरी से ही ऑनलाइन कैब बुक कर अफने पास मंगवाई और होटल पहुँच पाए थे। फिर होटल से सामान लेकर और ज्योति जी से भावभीनी विदाई लेकर जब उनकी आँखें कुछ सजल थी, अब हम उस धुआँधार चलती बारिश में ही स्टेशन आए। ऐसी खतरनाक बारिश शायद ही मैंने कभी देखी हो जैसे आसमान ही फट पड़ा हो। यह पुरी यात्रा ही बारिश से लड़ते झगडते बीती थी, लगभग हर समय हम बारिशों में भीगते ही रहे थे। जब हम हरिद्वार से चले थे तब भी बारिश हो रही थी और आज जब वापस जा रहे थे तब भी बारिश लगातार चालू ही रही। यह एक मजेदार बरसाती घुम्मकडी की याद बन गई।
कितने ही स्थानीय लोगों ने भी हमसे पुछा था की आप इन बरसातों में परेशान होने क्यों आ जाते है, और हम हर बार मुस्करा कर रह जाते। कैसे बताते की अभी बरसातों में जब प्रकृति पहाड़ो पर हरियाली की धानी चुनर ओढ़ लेती है वहीं तो कुछ पागल टाइप के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन जाती है। वो तो बार-2 आते ही रहेंगे उन्हे सुविधाओं की फ्रिक कहाँ है उन्हे तो बस अपनी आँखो को प्राकृतिक सुषमा से भर तृप्त कर लेना है वो लोग तो हर कठिनाइयों में भी आते ही रहेंगे। वो घुम्मकड़ लोग तो बस तभी आएँगे जब पहाड़ हरियाली लपेट लेंगे या तब जब वो बर्फ की सफेद कंबल में दुबके ठिठुर रहे होंगे, कुछ पागल लोग तभी आएँगे.. इस देवभूमि पर.. वह कोई आम सुविधा भोगी पर्यटक नहीं है।
उन्हे बस पहाड़ ही बुलाते है, हमें भी ऐसा ही कुछ समझ लिजिए। हम भी उन पागल लोगों की ही जमात से है।
नियत समय पर ट्रैन आ पहुँची पुरा शहर धुँआधार जल से पवित्र हो रह था जो शहर सबको पवित्र करने की गारंटी लेता है आज खुद उसी चक्कर में फंसा दिख रहा है, और हमने देवभूमि से विदाई ले अपने नीड़ की यात्रा में खो गये रेलवे के उनी कंटीले कंबलो में दुबके हुए से फिर लौट आने के वादे के साथ...
आप सभी पाठकगण का हार्दिक आभार धन्यवाद.. मिलेंगे फिर किसी नई यात्रा वर्णन के साथ.. 🙏
इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘
(ऋषिकेश-हरिद्वार भ्रमण और घर वापसी) 29/08/2018
पिछले भाग में आपने देखा की जब हम नीलकंठ महादेव से वापस ऋषिकेश पहुँचे तो भयंकर बारिश से सामना हुआ था और हम सिर छुपाने के लिए ऋषिकेश के सबसे ऑइकानिक बिल्डिंग में घुस गये थे। जी हाँ, सभी के आकर्षण की केंद्र और ऋषिकेश की पहचान बन चुकी...
लक्ष्मण झुला के पास दिखती यह बहुमंजिला ईमारत है कैलाश निकेतन या श्री त्रयम्बकेश्वर मंदिर, जब तक बारिश चलती है तब तक हम इसमें घुम सकते थे। हमें लगा था की यह कोई मंदिर होगा, पर यह तो एक कई फ्लोर पर बना एक धार्मिक शाॅपिंग माॅल निकला था। इस भवन के हर फ्लोर पर ढेरों दुकान जैसे कमरे बने हुए थे, जिसमें कुछ कमरों में विभिन्न देवी देवताओं की मुर्तियाँ स्थापित है तो कुछ कमरों में नकली पत्थर और ग्रह रत्न, छोटी मुर्तियाँ, ज्योतिष और ऐसे ही कितने ऊल जलूल चीजों की दुकानें थी। भगवान और दुकान दोनों मिलकर एक खिचड़ी बन गये थे।
बहुत मजेदार जगह थी, एक दुकानदार ने तो गृहस्थ जीवन में शांति की अंगूठी ऑफर की जब मैंने बताया की मैं अभी कुंवारा हूँ तो उसने कांउटर से मनचाही दुल्हन पाने वाली अंगूठी निकाल कर दी थी। उसने मेरा जन्मदिन पुछ कर हिसाब लगाया की मुझे रूबी की अंगूठी मध्यमा ऊँगली में पहननी चाहिए। जब तक बारिश नहीं रूकी तब तक हम हर फ्लोर पर यहीं तमाशे करते रहे, हमारा हँसने सेे बुुुरा हाल हो गया था, हमारेे पेेट दुुखनेे लगेे थे। वैसे इस भवन का एक ही फायदा है की इसके उपर की मंजिलो से दूर-दूर का बढ़िया नजारा है। भवन के नीचे शायद गंगा आरती की जगह थी पर बाढ़ के कारण गंगा बिल्कुल भवन को छूने पर आमदा थी। बारिश रूकने पर हम लक्ष्मण झूला से पैदल पैदल राम झूला की ओर घुमते-घामते चल पड़े थे। हरिद्वार और ऋषिकेश के गंगा किनारे की गलियों में घुमने पर ऐसा लगता है, जैसे बनारस में ही घूम रहे हो.. राम झूला पर भी फोटोग्राफी और कुछ देर गंगा किनारे बिताने के बाद शाम गहरा गई थी।
हमने राम झूला के पार से एक ऑटो हरिद्वार के लिए बुक किया और वापस चल पड़े। रास्ते में बहाने से रायवाला वाली दवाई भी ले ली और किसी को कानों कान खबर नहीं हुई आखिरकार आज हमारी यात्रा की आखिरी रात थी। कल देर शाम हम घर वापसी की ट्रैन में होंगे, विदाई पार्टी तो बनती है। बारिश में ही हम होटल तक आए, ज्योति जी थकान के मारे सीधे अपने कमरे में सो गये फिर हमारी पार्टी शुरू हो गई, खाने के सामान हमने अपने रूम में मंगवा लिए थे। देर रात तक पार्टी के बाद हम जैसे तैसे ही बिखर गये थे। सुबह धूप निकलने तक किसी को कोई होश नहीं था। ब्रैकफास्ट निपटाने के बाद हमने अपना सामान पैक किया, हिसाब किताब किए गये और फिर हम अपना सामान होटल पर ही छोड़ कर हरिद्वार दर्शन के लिए जाने वाले थे।
बाकी सब मनसा देवी और चंडी देवी जाने के इच्छूक थे पर अपने को तो बस पानी में मगरमच्छ की तरह पड़े रहने से मतलब था। आज तो पुरा दिन था मेरे पास मैंने जीभर के अपनी ख्वाहिश पुरी की, दोपहर बाद ही वापस होटल जा पाए थे। ज्योति जी कमरे पर ही यही और फिर मैं अपने दोनों पर्यटक मित्रों को हरिद्वार से कुछ शाॅपिंग के लिए दुबारा घाट के पास बाजार में लेकर गया। यहाँ शाॅपिंग के समय ही जोरदार बारिश आई और चलती रही.. चलती रही घंटो..
पिछले सभी भागों को पढ़ने के लिए क्लिक करें- भाग-1।भाग-2।भाग-3।भाग-4।भाग-5।भाग-6।भाग-7।भाग-8।भाग-9।भाग-10।
बाजार की गलियाँ अब एक लहरों वाली नदी का रूप ले चुकी थी जैसे गंगा मईया शहर में ही घुस आई हो, घुटने भर गहरा तेज बहता पानी था की कोई गलियों मे राफ्टिंग भी कर सकता था। बारिश के कारण हम फंसे हुए थे और ऐसा लग रहा था जैसे हमारी ट्रैन ही ना छूट जाए। ऐसा मेरे साथ चौथी बार हो रहा था जब मैं हरिद्वार से ट्रैन पकड़ने वाला हूँ और ऐन वक्त पर बारिश खलनायक बन जाए , हर बार मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ.. समझ के बाहर है जिसे तैसे हमने एक टपरी से ही ऑनलाइन कैब बुक कर अफने पास मंगवाई और होटल पहुँच पाए थे। फिर होटल से सामान लेकर और ज्योति जी से भावभीनी विदाई लेकर जब उनकी आँखें कुछ सजल थी, अब हम उस धुआँधार चलती बारिश में ही स्टेशन आए। ऐसी खतरनाक बारिश शायद ही मैंने कभी देखी हो जैसे आसमान ही फट पड़ा हो। यह पुरी यात्रा ही बारिश से लड़ते झगडते बीती थी, लगभग हर समय हम बारिशों में भीगते ही रहे थे। जब हम हरिद्वार से चले थे तब भी बारिश हो रही थी और आज जब वापस जा रहे थे तब भी बारिश लगातार चालू ही रही। यह एक मजेदार बरसाती घुम्मकडी की याद बन गई।
कितने ही स्थानीय लोगों ने भी हमसे पुछा था की आप इन बरसातों में परेशान होने क्यों आ जाते है, और हम हर बार मुस्करा कर रह जाते। कैसे बताते की अभी बरसातों में जब प्रकृति पहाड़ो पर हरियाली की धानी चुनर ओढ़ लेती है वहीं तो कुछ पागल टाइप के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन जाती है। वो तो बार-2 आते ही रहेंगे उन्हे सुविधाओं की फ्रिक कहाँ है उन्हे तो बस अपनी आँखो को प्राकृतिक सुषमा से भर तृप्त कर लेना है वो लोग तो हर कठिनाइयों में भी आते ही रहेंगे। वो घुम्मकड़ लोग तो बस तभी आएँगे जब पहाड़ हरियाली लपेट लेंगे या तब जब वो बर्फ की सफेद कंबल में दुबके ठिठुर रहे होंगे, कुछ पागल लोग तभी आएँगे.. इस देवभूमि पर.. वह कोई आम सुविधा भोगी पर्यटक नहीं है।
उन्हे बस पहाड़ ही बुलाते है, हमें भी ऐसा ही कुछ समझ लिजिए। हम भी उन पागल लोगों की ही जमात से है।
नियत समय पर ट्रैन आ पहुँची पुरा शहर धुँआधार जल से पवित्र हो रह था जो शहर सबको पवित्र करने की गारंटी लेता है आज खुद उसी चक्कर में फंसा दिख रहा है, और हमने देवभूमि से विदाई ले अपने नीड़ की यात्रा में खो गये रेलवे के उनी कंटीले कंबलो में दुबके हुए से फिर लौट आने के वादे के साथ...
आप सभी पाठकगण का हार्दिक आभार धन्यवाद.. मिलेंगे फिर किसी नई यात्रा वर्णन के साथ.. 🙏
इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘
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लक्ष्मण झुला त्रयंम्बकेश्वर मंदिर का विहंगम दृश्य |
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लक्ष्मण मंदिर |
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ऋषिकेश में भी बादल पीछा करते आ गये। |
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एक मजेदार मार्ग सूचक |
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लक्ष्मण झुला ऋषिकेश का आइकन |
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गंगा नदी का विशाल प्रवाह |
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यदा-कदा यादगार |
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एक बेहतरीन मुजश्समा |
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चोटी वाला भोजनालय |
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राम-झूला |
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मित्र संतोष और मृगांक |
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त्रिदेव फोटो |
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हरिद्वार बैराज दूर मनसा देवी |
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पुरी टीम |
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हरिद्वार गंगा आरती का पावन दृश्य |
एक सच्चे घुमक्कड़ की यहीं निशानी होती है कि वो कमियों को भी ताकत के रूप में परिवर्तित कर देता है।
ReplyDeleteसाधु.. बहुत आभार चंद्रेश भईया 🙏🙏😍
Deleteधार्मिक शॉपिंग मॉल यह नया शब्द मिला भाई....गलियों में राफ्टिंग का मजा आ जायेगा...सच कहा बारिश में पागल लोग ही देवभूमि जाते है....हेमकुंड vally ऑफ flower बारिश में जाने पे लोग डराते है और वाकई एक बार भी risky नही लगा...बहुत तेज बारिश और आगे 5 कदम न दिखे ऐसे हेमकुंड किया मेने भी और बारिश आपको भी हर जगह मिली लेकिन मजा भरपूर था....बारिश के fog में उत्तराखंड वेस्टर्न घाट घूमने की बात ही अलग है....शायद यह पागल ही है जो ऐसे घूमते है आप हम जैसे....
ReplyDeleteआपसे रास्ते में मिल हार्दिक खुशी थी प्रतीक भाई.. अनजान लोगों की भीड़ में एक जाना पहचाना चेहरा खुशी देता ही है। हरिद्वार की बारिश से मेरा शायद कुछ पुराना हिसाब है हर बार पांव पकडती है। हेमकुंड तो अब हर साल जाने का मन करता है।😍 वेस्टर्न घाट बस ट्रैन से देखा है कभी बाइक से उन भीगी भीगी सड़कों पर उड़ने का मन है।
Deleteक्या कहूँ वह मंदिर ऐसा ही था.. शायद शब्द गलत चुन लिए.. धार्मिक के बजाए "हिंदूत्व का शाॅपिग माॅल" ठीक शब्द होगा।
बहुत़ ही शानदार लेखन प्रस्तुति। सही में आनंदमयी के यात्रा रहीं आपकी। जय़ देवभूमि। जय़ महादेव
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार धन्यवाद आपका 🙏🙏😊
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