बरसातों में नंदनकानन की ओर... भाग ~१०
(हरिद्वार वापसी और नीलकंठ यात्रा) 27-28/08/2018
अगली सुबह मैं गलती से जल्दी ही उठ गया था, जिसका खामियाजा ये रहा की ज्योति जी ने अपने साथ ध्यान योग करने का फरमान सुना दिया वो भी नीचे अलकनंदा के तट पर सुबह-2 ठंड में..
अभी हमारे पास दो काम थे नदी तट पर ध्यान करना दुसरा भेल बनाने के लिए टमाटर के टुकड़े करना मुझे दुसरा काम ज्यादा मुफिद लगा था जब तक वो ध्यान योग करें उसके पहले मैंने टमाटर के टुकड़े किए वो नौ दो ग्यारह हो गया वो सीधा कंबल में आकर रूका.. इन दिनों हमें भेल खाने का नशा हो गया था, वक्त बेवक्त खाने के लिए भेल मजेदार थी। खैर सुबह देर तक कंबल में दुबकने के बाद मुझे तैयार होना ही पड़ा, पानी यहाँ भी करंट वाला ही था तो हमेशा की तरह परफ्यूम जिंदाबाद.. ज्योति जी ने इसके लिए हजारों लानते दी थी मुझे, साथ में कोई औरत हो तो मर्दों की जिंदगी सचमुच ही हराम हो जाती है।
तैयार होकर हम नीचे सड़क पर आए यहाँ ऋषिकेश हरिद्वार के लिए कई बसें जोशीमठ से आती रहती है। एक बस में हम भी चढ़े, बस में भीड़ भाड थी और हमें पीछे ही जगह मिल पाई.. अब मुझे इस बस के लिए अफसोस होने लगा था पर कर्णप्रयाग में बस रूकते ही पुरी बस खाली हो गई और बस वाले हमें दूसरी बस पर बैठा दिया.. हमारी बस कर्णप्रयाग संगम पर बने पुल पर खड़ी थी, नीचे अलकनंदा और पिंडर नदियों का जोरदार संगम था। आखिरकार बस चली और रूद्रप्रयाग होते हुए श्रीनगर रूकी..यहाँ मैंने भागकर बालमिठाई और सिंगौडी खरीद ली। अब मौसम साफ हो चुका था, कितने दिनों बाद चटख धूप दिख रही थी आसमान नीला.. ये देखकर मुझे बस मौसम वाले देवता पर गुस्सा आ रहा था। दोपहर ढलते हम देवप्रयाग में थे फिर तीनधारा में परांठे खाने के बाद सीधा ऋषिकेश पहुँच गये।
यहाँ पहुँच कर पता चला की दोनों मित्र मृगांक और संतोष ऋषिकेश में घुम कर बोर हो चुके थे इसलिए हरिद्वार चले गये है और उन्होंने आज हमारे लिए भी कमरों की बुकिंग कर ली है। दुबारा बस पकड़ हरिद्वार पहुँचे, हरिद्वार में कदम रखते ही बारिश ने स्वागत कर रही सही कसर भी पूरी कर दी। हरिद्वार स्टेशन के पास ही बढ़िया oyo room थे शानदार और बढ़िया जोकी हमें कूपन के कारण बिल्कुल मुफ्त मिले थे। अब दल दुबारा एकसाथ हो गया था मिलना और हालचाल के बाद यात्रा के किस्सो कहानियों के बीच मुझ पर रात के डिनर का अर्थदंड लगाया गया। आज दिनभर बसों की उठापटक के बाद हिम्मत नहीं थी बाहर जाने की तो खाना कमरे में ही मंगा लिए गये। यहाँ oyo rooms की सर्विस वाकई जबरदस्त थी, रात में तय हुआ की सुबह सभी नीलकंठ महादेव ऋषिकेश चलेंगे।
फिर बिस्तर पर गिरे तो सुबह से तब तक नींद नहीं खुली, जब तक होटल वाले ब्रैकफास्ट लेकर दरवाजे नहीं खटखटाए.. ब्रैकफास्ट भी जोरदार था इनका आलू के परांठें, सैंडविच और मस्त गर्मागर्म चाय.. झटपट तैयार होकर हम सभी ऋषिकेश वाली बस में पहुँच गये, बस अड्डे से निकल कर हम लक्ष्मण झुला पुल पर पहुँचे। पटना बाबू और अनिल बाबू ने बताया था की लक्ष्मण झुला पुल पार करने के बाद बाँए हाथ की तरफ शेयर्ड टैक्सी नीलकंठ महादेव तक जाती है। एक 14km का पैदल रास्ता रामझूला के पास से भी जाता है पर आखिर पैदल चलना की हिम्मत थी किसके पास वह तब जब गाड़ी जा रही हो.. शेयर्ड टैक्सी में लद हम नीलकंठ महादेव के लिए रवाना हुए, गंगा के दाहिने किनारे की ओर खूबसूरत पहाड़ी रास्ता था। जगह-2 बारिश से भूस्खलन भी हो रहे थे, हम तीन जगहों पर फंसे थे फिर जैसे तैसे ही निकल पाए थे। बारिश फिर आ धमकी थी, ड्राइवर ने तुरंत दर्शन कर वापस जाने की बात कहीं..
थोड़ी दूर पैदल चल कर नीलकंठ महादेव का मुख्य मंदिर था। यहाँ सावन में बहुत भीड़ रहती है, आसपास और दूर दराज के लोग भी तब कांवड यात्रा कर यहाँ जलाभिषेक करते है। हमारे दिल्ली निवासी नितिन और अनिल भाई जी तो गंगोत्री से पैदल जल लेने जाने जाते है। लोगों की यहाँ बहुत श्रद्धा है, इस मंदिर के पीछे कहानी है की जब देव और दानवों ने समुद्र मंथन किया था तो 14 रत्न निकले उनमें पहला ही हलाहल विष था, जिससे सृष्टि को खतरा उत्पन्न हो गया तब आदीदेव महादेव ने इसी स्थान पर उस हलाहल विष को अपने कंठ में धारण कर नीलकंठ कहलाए तभी से यह तीर्थ अस्तित्व में आया। मेरे ख्याल से चुँकि पुराणों की कहानियाँ प्रतिकात्मक होती है तो यह हलाहल विष शायद आजकल व्याप्त प्रदुषण को ही निरूपित करता है। नीलकंठ महादेव का मंदिर एक मध्यम आकार का पर सुंदर मुर्तियों से सुसज्जित है। हम जब पहुँचे तब ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी और हल्की बारिश हो रही थी आराम से दर्शन हुए फिर हम बारिश में भूस्खलन से बचने के लिए उल्टे पांव लौट आए।
सभी को जल्दी आने को कहा गया था पर दो लोग अभी भी गुम थे तो सबको उनका इंतजार करना पड़ रहा था। तब तक हमने आप पास चहलकदमी की और कुछ पेटपुजा भी। कुछ फूलों की तस्वीरें ली दूर घाटी के पार पहाड़ पर हरे भरे तभी वो दोनों बेवकूफ आदमी गलत गाड़ी मे बैठकर हमारा इंतजार कर रहे थे। खैर मिल गये तो सबने उन्हे जमकर कोसा फिर हम वापस ऋषिकेश की ओर चल पड़े, रास्ते में फिर से भूस्खलन मिले थे कुछ देर सबेर हम ऋषिकेश पहुँच गये। ऋषिकेश पहुँचने से पहले ही जोरदार बारिश आ गई और हम बारिश से बचने के लिए गाड़ी से कुदकर उतरने के बाद दौड़ कर एक मंदिर में घुस गये थे। क्रमशः
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इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘
(हरिद्वार वापसी और नीलकंठ यात्रा) 27-28/08/2018
अगली सुबह मैं गलती से जल्दी ही उठ गया था, जिसका खामियाजा ये रहा की ज्योति जी ने अपने साथ ध्यान योग करने का फरमान सुना दिया वो भी नीचे अलकनंदा के तट पर सुबह-2 ठंड में..
अभी हमारे पास दो काम थे नदी तट पर ध्यान करना दुसरा भेल बनाने के लिए टमाटर के टुकड़े करना मुझे दुसरा काम ज्यादा मुफिद लगा था जब तक वो ध्यान योग करें उसके पहले मैंने टमाटर के टुकड़े किए वो नौ दो ग्यारह हो गया वो सीधा कंबल में आकर रूका.. इन दिनों हमें भेल खाने का नशा हो गया था, वक्त बेवक्त खाने के लिए भेल मजेदार थी। खैर सुबह देर तक कंबल में दुबकने के बाद मुझे तैयार होना ही पड़ा, पानी यहाँ भी करंट वाला ही था तो हमेशा की तरह परफ्यूम जिंदाबाद.. ज्योति जी ने इसके लिए हजारों लानते दी थी मुझे, साथ में कोई औरत हो तो मर्दों की जिंदगी सचमुच ही हराम हो जाती है।
तैयार होकर हम नीचे सड़क पर आए यहाँ ऋषिकेश हरिद्वार के लिए कई बसें जोशीमठ से आती रहती है। एक बस में हम भी चढ़े, बस में भीड़ भाड थी और हमें पीछे ही जगह मिल पाई.. अब मुझे इस बस के लिए अफसोस होने लगा था पर कर्णप्रयाग में बस रूकते ही पुरी बस खाली हो गई और बस वाले हमें दूसरी बस पर बैठा दिया.. हमारी बस कर्णप्रयाग संगम पर बने पुल पर खड़ी थी, नीचे अलकनंदा और पिंडर नदियों का जोरदार संगम था। आखिरकार बस चली और रूद्रप्रयाग होते हुए श्रीनगर रूकी..यहाँ मैंने भागकर बालमिठाई और सिंगौडी खरीद ली। अब मौसम साफ हो चुका था, कितने दिनों बाद चटख धूप दिख रही थी आसमान नीला.. ये देखकर मुझे बस मौसम वाले देवता पर गुस्सा आ रहा था। दोपहर ढलते हम देवप्रयाग में थे फिर तीनधारा में परांठे खाने के बाद सीधा ऋषिकेश पहुँच गये।
यहाँ पहुँच कर पता चला की दोनों मित्र मृगांक और संतोष ऋषिकेश में घुम कर बोर हो चुके थे इसलिए हरिद्वार चले गये है और उन्होंने आज हमारे लिए भी कमरों की बुकिंग कर ली है। दुबारा बस पकड़ हरिद्वार पहुँचे, हरिद्वार में कदम रखते ही बारिश ने स्वागत कर रही सही कसर भी पूरी कर दी। हरिद्वार स्टेशन के पास ही बढ़िया oyo room थे शानदार और बढ़िया जोकी हमें कूपन के कारण बिल्कुल मुफ्त मिले थे। अब दल दुबारा एकसाथ हो गया था मिलना और हालचाल के बाद यात्रा के किस्सो कहानियों के बीच मुझ पर रात के डिनर का अर्थदंड लगाया गया। आज दिनभर बसों की उठापटक के बाद हिम्मत नहीं थी बाहर जाने की तो खाना कमरे में ही मंगा लिए गये। यहाँ oyo rooms की सर्विस वाकई जबरदस्त थी, रात में तय हुआ की सुबह सभी नीलकंठ महादेव ऋषिकेश चलेंगे।
फिर बिस्तर पर गिरे तो सुबह से तब तक नींद नहीं खुली, जब तक होटल वाले ब्रैकफास्ट लेकर दरवाजे नहीं खटखटाए.. ब्रैकफास्ट भी जोरदार था इनका आलू के परांठें, सैंडविच और मस्त गर्मागर्म चाय.. झटपट तैयार होकर हम सभी ऋषिकेश वाली बस में पहुँच गये, बस अड्डे से निकल कर हम लक्ष्मण झुला पुल पर पहुँचे। पटना बाबू और अनिल बाबू ने बताया था की लक्ष्मण झुला पुल पार करने के बाद बाँए हाथ की तरफ शेयर्ड टैक्सी नीलकंठ महादेव तक जाती है। एक 14km का पैदल रास्ता रामझूला के पास से भी जाता है पर आखिर पैदल चलना की हिम्मत थी किसके पास वह तब जब गाड़ी जा रही हो.. शेयर्ड टैक्सी में लद हम नीलकंठ महादेव के लिए रवाना हुए, गंगा के दाहिने किनारे की ओर खूबसूरत पहाड़ी रास्ता था। जगह-2 बारिश से भूस्खलन भी हो रहे थे, हम तीन जगहों पर फंसे थे फिर जैसे तैसे ही निकल पाए थे। बारिश फिर आ धमकी थी, ड्राइवर ने तुरंत दर्शन कर वापस जाने की बात कहीं..
थोड़ी दूर पैदल चल कर नीलकंठ महादेव का मुख्य मंदिर था। यहाँ सावन में बहुत भीड़ रहती है, आसपास और दूर दराज के लोग भी तब कांवड यात्रा कर यहाँ जलाभिषेक करते है। हमारे दिल्ली निवासी नितिन और अनिल भाई जी तो गंगोत्री से पैदल जल लेने जाने जाते है। लोगों की यहाँ बहुत श्रद्धा है, इस मंदिर के पीछे कहानी है की जब देव और दानवों ने समुद्र मंथन किया था तो 14 रत्न निकले उनमें पहला ही हलाहल विष था, जिससे सृष्टि को खतरा उत्पन्न हो गया तब आदीदेव महादेव ने इसी स्थान पर उस हलाहल विष को अपने कंठ में धारण कर नीलकंठ कहलाए तभी से यह तीर्थ अस्तित्व में आया। मेरे ख्याल से चुँकि पुराणों की कहानियाँ प्रतिकात्मक होती है तो यह हलाहल विष शायद आजकल व्याप्त प्रदुषण को ही निरूपित करता है। नीलकंठ महादेव का मंदिर एक मध्यम आकार का पर सुंदर मुर्तियों से सुसज्जित है। हम जब पहुँचे तब ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी और हल्की बारिश हो रही थी आराम से दर्शन हुए फिर हम बारिश में भूस्खलन से बचने के लिए उल्टे पांव लौट आए।
सभी को जल्दी आने को कहा गया था पर दो लोग अभी भी गुम थे तो सबको उनका इंतजार करना पड़ रहा था। तब तक हमने आप पास चहलकदमी की और कुछ पेटपुजा भी। कुछ फूलों की तस्वीरें ली दूर घाटी के पार पहाड़ पर हरे भरे तभी वो दोनों बेवकूफ आदमी गलत गाड़ी मे बैठकर हमारा इंतजार कर रहे थे। खैर मिल गये तो सबने उन्हे जमकर कोसा फिर हम वापस ऋषिकेश की ओर चल पड़े, रास्ते में फिर से भूस्खलन मिले थे कुछ देर सबेर हम ऋषिकेश पहुँच गये। ऋषिकेश पहुँचने से पहले ही जोरदार बारिश आ गई और हम बारिश से बचने के लिए गाड़ी से कुदकर उतरने के बाद दौड़ कर एक मंदिर में घुस गये थे। क्रमशः
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इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘
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पिछले हफ्ते से लगातार भीगते जब नीले आसमान में धूप खिली तो बस गुस्सा ही आया। |
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चमोली से निकलते ही.. |
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बढ़िया सस्पेंशन ब्रिज |
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दो ब्रिज बाँए केबल स्टेयड़ दाँए सिंगल स्पेन स्स्पेंशन ब्रिज |
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अलकनंदा की मनोरम घाटी |
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दिल खोल कर पसरी हरियाली |
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धान के खेतों में बिखरी खुबसुरती |
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लो आ पहुँचे कर्णप्रयाग |
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अलकनंदा की गर्जना करती धार |
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कर्णप्रयाग में आखिर थोड़ी धूप मिल ही गई |
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रूद्रप्रयाग का नजारा |
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जगह कुंड जहाँ केदारनाथ के लिए रास्ता है। |
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परफेक्ट यू-टर्न |
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नदी का घुमाव |
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लबालब नदी |
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गर्मियों में यहाँ बढ़िया बीच का मजा होता है। |
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नदी के साथ साथ |
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दूर तक नजारा ब्यासी में आलू के परांठो के साथ |
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आखिरकार हरिद्वार का मजा |
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नीलकंठ की ओर |
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लेंटाना की झाड़ी |
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नीलकंठ महादेव का प्रवेश द्वार |
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प्रसादो वाली सजावटी थालियाँ |
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रंगीनियत |
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लेंटाना कहीं के चलो आखिरकार हो तो फूल ही। |
यात्रा पूरी होने की खुशी झलक रही है
ReplyDeleteबिल्कुल.. तर-बतर यात्रा का आनंद भी समाप्त हो रहा था, इसका आंतरिक दुःख भी था बहुत 😊😍
Deleteबारिश में घर से बाहर निकलना मुझे बिल्कुल पसंद नही। बारिश के बाद ही घूमने में मजा है ।खेर, पसन्द अपनी अपनी ☺ यात्रा समाप्ति पर खुशी और रंज दोनो होते हैं।
Deleteबिल्कुल ठीक कहा बुआ जी.. खुशी और गम दोनों हुए
Deleteमुबंईकर को बारिश से दिक्कत ये कुछ अनोखी बात है।
शुक्रिया बुआ जी 🙏😎
मस्त मजेदार यात्रा रही आपकी,,,,,,ओर सही कहा भेल का मजा आप कभी भी ओर कही भी,सबसे आसान और सुंदर तरीका
ReplyDeleteशुक्रिया दीदी..😊🙏🙏
Deleteभेल एक राह चलती खोज बन गई थी। 😍