Tuesday, November 27, 2018

अलकापुरी यात्रा, फूलों की घाटी भाग ~ ४

बरसातों में नंदनकानन की ओर...भाग ~४ 

 23/08/2018

जंगलचट्टी में भ्यूडार होने के भ्रम के बाद अब हम रास्तों के किनारे लगे बोर्ड ध्यान से पढ़ने लगे थे। रास्ता हल्की चढ़ाई  और दाहिने हाथ की ओर घाटी में हाहाकार करती लक्ष्मणगंगा के साथ-2 चलता है। पुरी घाटी नदी की आवाज से थर्रा रहा है, कभी-2 बीच में गोंविदघाट से घांघरिया तक चलने वाली हैली सेवा भी शोरगुल को बढ़ा देती है।
हैलीकाप्टर रास्तों के बिल्कुल बराबर से घाटी से होकर आते-जाते है। हम थोड़े खुले जगह पर रूककर फोटो लेने के लिए हैलीकाप्टर का इंतज़ार करते है। पर तीन या चार चक्करों के बाद हैलीकाप्टर फिर नहीं आया.. बादल भी घिरने लगे थे शायद नीचे मौसम खराब हो गया होगा इसके बाद हमने पुरे चार दिनों तक हैलीकाप्टर की कोई आवाज नहीं सुनी थी।

 जंगलचट्टी से 3km चलने के बाद एक इकलौती सी दुकान के बाहर कुछ लोग तसल्ली से पत्थरों पर पसरे हुए थे। अचानक मुझे एक जाना पहचाना चेहरा दिखा, अरे ये तो अपने प्रतीक भाई है.. मैंने चहक कर कहा। मेरी टोपी के कारण वो कुछ घुरने और फिर मेरी आवाज सुनकर वो भी चहक उठे थे। मुबंईकर प्रतीक गांधी भाई से मेरा परिचय फेसबूक ग्रुप "घुम्मकडी दिल से" के कारण था। हमने साथ में ग्रुप की वार्षिक मिलन यात्रा में सनियारा बुग्याल और चोपता-तुंगनाथ की यात्रा की थी। थोड़ी देर में ज्योति जी भी आ पहुँच गई, फिर एक बार हाल चाल का दौर चला.. प्रतीक भाई हमसे तीन दिन पहले फूलों की घाटी और हेमकुंड ट्रैक कंम्पलीट कर वापस लौट रहे थे। उनके साथ कुछ बंगाली सहयात्री भी थे। कुछ हालचाल, किस्से सुझाव और थोड़ा आराम कर और पानी पीकर हमने प्रतीक भाई से विदाई ली। अब हम खुशी से आगे की ओर जोश से कदम बढाए ही थे की कुछ दूर पर बारिश ने हमें फिर दबोच लिया। हल्की बारिश में धीरे-2 चलते हुए हम अब भ्यूंडार पहुँच गये थे।

 भ्यूंडार गांव इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, गाँव की शुरूआत पहाड़ की ढलान पर बसे घरों से हुई कुछ दूर आगे अनेक खाने-पीने की दुकानें थी। सबसे आखिरी दुकान पर हमने चाय का आर्डर दिया और ज्योति जी द्वारा संभाल कर लाए गये मेवों से भरें गोंद के बड़े से लड्डू खाए गये। जब चाय आयी तो उसे हमने साथ लाए गुजराती नमकीन के साथ खाया, रास्ते भर हम कुछ ना कुछ खाते चबाते ही आ रहे थे तो कुछ विशेष भूख भी नहीं थी। आगे बढ़ने पर रास्ता लक्ष्मणगंगा नदी के प्रलयलीला से बने बोल्डरो के मैदान तक उतर रहा था। यहाँ से घाटी दो भागों में बंट जाती है। वस्तुतः भ्यूंडार गांव एक तिराहे पर बसा हुआ है जहाँ एक रास्ता पुलना से आता है दूसरा घांघरिया की ओर जाता है और तीसरा रास्ता एक नदी के सहारे बनी घाटी से होकर कुनलुन ग्लेशियर से होकर काकभसूंडी झील तक जाता है।

कागभसूंडी झील में पानी कामभसूंडी खरक से आता है। उत्तराखंड में ग्लेशियर को खरक या बामक भी कहते है। भ्यूंडार से यह झील 25km के चढ़ाई वाले ट्रैक के बाद आती है जहाँ एक नदी निकल कर भ्यूंडार गांव के पास लक्ष्मण गंगा से मिलती है। भ्यूंडार गांव पहले नदी के किनारे पर ही बसा था पर 2013 में आयी विनाशकारी बाढ़ ने इस गांव को उजाड़ दिया था, तब नया गांव रास्ते के बाँये तरह पहाड़ की ढलान पर ऊँचाई पर बसाया गया है। विष्णुप्रयाग में दिखती j.p. hydro project भी पहले इसी घाटी में प्रस्तावित था, जिसका व्यापक स्तर पर विरोध और उससे फूलों की घाटी पर खतरे को देखते हुए स्थानांतरित कर दिया गया था। यहाँ लक्ष्मणगंगा पर टीन के पत्तरो से बना कामचलाऊ पुल बना है पुराना पुल शायद बाढ़ में नष्ट हो गया था उसके अवशेष पड़े हुए थे। एक नया केबल सस्पेंसन ब्रिज भी बनाया जा रहा है पर दूसरे किनारे साइट पर पेड़ गिरने से काफी टूट-फूट हो गई है जिससे काम रूक सा गया है।

 खैर नदी पार कर और बोल्डर वाले मैदान के बाद अब हम नदी की दाहिनी तरफ आ गये है। अब यहाँ से घांघरिया तक हमें दाहिनी ओर के पहाड़ पर ही चलना था। भ्यूंडार के बाद अचानक दमतोड़ चढ़ाई शुरू हो जाती है जो 4km दूर घांघरिया तक चलने वाली है। दोपहर हो रही थी पर पुरा रास्ता घने जंगलों से होकर गुजरता था तो धूप बिल्कुल भी नहीं थी अब हम लक्ष्मणगंगा नदी के साथ-2  ऊँचाई पर चढ़ते जा रहे थे। 3km की हालत खराब करने वाली चढ़ाई के बाद रास्ते की आखिरी दुकान आती है यह एक छोटी सी झोपड़ी भर ही है जो शायद रोज खुलती भी नहीं है। यहाँ हमने मैग्गी खाई और चाय पीकर थोड़ी हिम्मत इक्कठा की, हमारे साथ ही चल रहे कोई youtuber भी है जो अपने चैनल के लिए पुरे रास्ते विडियोग्राफी करते आ रहे थे। माहिर घुम्मकड़ जान पड़ते है और साजो समान से लैस, इनका और हमारा साथ भी पुरी यात्रा में रहने वाला था। तकरीबन हर मोड़ पर ये हमें मिले थे और भी कितने ही लोग थे जो एक दुसरे के साथ चलते-2 परिचित से हो गये थे। सभी जब मिलते तो मुस्काते और hifi करते, एक दुसरे की हिम्मत बढ़ाते और जानकारियाँ देते। इस यात्रा पर आप ढेरों मित्र बना सकते है। हमारे एक मित्र उड़िसा के बने तो दुसरे कर्नाटक के.. youtuber जो शायद दिल्ली के रहने वाले थे जिनका नाम शायद कोई चौधरी था जो याद नहीं रहा।

मैग्गी और चाय प्वांइट के बाद अब घांघरिया बस 1km दूर था और झमाझम बारिश शुरू हो गई, रास्तें झरने में बदल गये थे पर अब मन में जोश आ गया था की बस इतना सा ओर...थोड़ी दूर चलने के बाद ही हमें घांघरिया की टेंट सिटी नजर आने लगी थी, यहाँ रास्ता एक दम सपाट हो गया था और हम एक छोटे-मोटे बुग्याल में थे। घोड़े और भैंसे चर रही थी, जोरदार हरियाली बिखरी हुई थी। हम एक टीन शेड में धड़ाम हो गये यहाँ अनेक और लोग भी धड़ाम हुए पड़े हुए थे। जगह ही ऐसी थी कोई उल्लू का पठ्ठा ही होगा जो धड़ाम होना नहीं चाहेंगा। सामने हरे भरे ऊँचे ऊँचे पहाड़, एक दिलकश सा झरना, एक हराभरा  मैदान, हैलीपेड़ और टेंट सिटी नजारा लाजवाब था। कुछ देर आराम और फोटोग्राफी के बाद हम बारिश के रूकपे का इंतजार करने लगे जो रूकनी नहीं थी तो हमने चलना शुरू कर दिया, यहाँ एक बोर्ड बताता है की घांघरिया अभी 500मीटर दूर है।

आगे चलने पर अचानक फिर से चढ़ाई शुरू हो गई और हम जंगल में पहुँच गये। अब मुझे शक होने लगा की कहीं हम घांघरिया से आगे तो नहीं आ गये या घांघरिया कही टेंट सिटी के पीछे तो नहीं था जिसे हम पीछे छोड़ आए थे। आस पास था भी कोई नहीं जिससे पुछते आखिर घांघरिया के बजाए हम जंगलों में कैसे पहुँच गये। फिर आखिर एक मोड़ पार करने पर हम घोड़े की लीद की कीचड़ में आ गये थे और कितने ही घोड़े थे जैसे यहाँ कोई अस्तबल बसा हो..। फिर हमारे सामाने अचानक ही घांघरिया की सकरी सी गली थी, घांघरिया एक बहुत अनोखी जगह है जो आपको एकदम से चौंका देती है। जंगलों के बीच अचानक से एक गांव उभर आता है जबकि आखिर तक इसका कोई अनुमान तक नहीं होता। अभी शाम के 4 बजे थे, तकरीबन हमें 6घंटे लगे थे रूकते रूकाते घांघरिया पहुँचने में। संकरी गलियों वाले गलियों में हम अब तसल्ली से घूम रहे थे, और मैं मोमोज और सुप की दुकानों को नजरों से मार्क कर रहा था। एक पुलिस चौकी भी थी जिसके पास ही यूथ हाॅस्टल का लाॅज था। हमने कमरे लिए पुछा तो उन्होंने हमें कमरे दिखाए यूथ हाॅस्टल की सुविधा हर जगह काबिले तारीफ रहती है। जब पेंमेट करने लगे तो उन्होंने हमारे id no. पुछे हमने अपने पुरे बैग की तलाशी ले डाली पर id नहीं मिली शायद गोविंदघाट गुरूद्वारे पर हड़बड़ी में  बैग अरेंज करते हुए  दुसरे बैग में रह गई। बिना id रूम मिलने से रहे तो निराश सोचा चलिए पहले गुरूद्वारा को ही खोजते है, क्योंकि एक तो वहाँ 1500 लोगों के हमेशा रूकने की व्यवस्था रहती है दुसरे हम थोड़े रास्ते भी देख सकते है। क्या पता कोई बढ़िया होटल ही मिल जाए।

 गुरूद्वारा गली की आखिर की ओर है, हल्की बारिश चल रही थी और अंधेरा भी होने वाला था। गुरूद्वारे में भी अफरा तफरी थी हेमकुंड से यात्री वापस आ रहे थे और घांघरिया से भी.. गुरू गद्दी के दर्शन और एक गिलास चाय के बाद मैंने यूँ ही कांउटर पर रूकने के विषय में पूछने गया तो उन्होंने सीधे कोई id मांग ली। id देते ही उन्होंने हमारा नाम पता लिखा और सीधे एक चाबी पकड़ा दी। मैंने चार्ज पुछा तो उन्होंने बताया की कोई चार्ज नहीं है जी सेवा है। अब हम खुश थे, मुँह मांगी मुराद जो मिल गई थी गुरूद्वारे में..  बड़े-2 कितने ही हाॅल थे जिनमें सैकड़ों 3 tier बिस्तर लगे हुए थे। हजारों कंबल रखे हुए थे, जो चाहिए ले लिजिए। एल्युमिनियम की चादरों से कमरे भी बनाए गये थे, जिसमें गद्दे और भरपुर कंबल रखे हुए थे। हमारे पड़ोस के कमरे में एक विदेशी दल भी रूका हुआ था। बढ़िया व्यवस्था देखकर हमने तय किया की अगले तीन दिन यहीं रहना है। घांघरिया(गोविंदधाम) गुरूद्वारे में सभी यात्रियों के लिए रहने, खाने, दवा, लाॅकर और भी अनेक सुविधाएँ निःशुल्क उपलब्ध है। बाद में आप अपनी श्रद्धा अनुसार कुछ भी भेंट कर सकते है।

दिन भर की ट्रैकिंग के बाद गर्म पानी से हाथ-पैर धुलने से काफी राहत मिली.. थकान के मारे खाने की बिल्कुल भी इच्छा नहीं हो रही थी अरदास के बाद एक गिलास चाय और पी और चार पांच कंबलों के ढेर में खुद को लपेट लिया। शाम होते ही ठंड जोरदार ढंग से बढ़ गई थी उपर से अब बारिश भी झमाझम हो रही थी, हमने यह तय किया की कल सुबह पहले थोड़े आसान ट्रैक फूलों की घाटी की सैर की जाएगी। फिर अगले दिन हेमकुंड.. भीगे कपड़े बाहर सुखने के लिए डाल दिए। बाहर इतनी जोरदार बारिश हो रही थी, की कपड़े सुखेंगे कैसे पता नहीं.. अब बारी थी कंबल में दुबक कर सुबह का इंतज़ार करने की.. चलो परियों के देश में..

अगले भाग के लिए क्लिक करें।

इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘
अचानक दिखे प्रतीक भाई

सभी एक साथ आ जावो! 

हाय.. अभी तो कितना चलना है।

भ्यूंडार पहुँचने की खुशी

लक्ष्मणगंगा और कर्णकुन का संगम भ्यूंडार 

फूलों की घाटी से आती पुष्पावती या लक्ष्मणगंगा

कागभुसंडी ट्रैक और कर्णकुन नदी

टुटा फुटा नया बनता सस्पेंसन ब्रिज


भ्यूडार घाटी का दिलकश नजारा और पुष्पावती नदी

भ्यूंडार में घोड़ो का स्टेशन

अब बस 1km और.. 

कदमों तले खूबसूरती, पैर भी संभाल कर रखिए

दूर लटके सेहत के खजाने शुद्ध हिमालयन फूलों का शहद 

आखिरकार घांघरिया पहुँच ही गये बारिश और हैलीपैड 

सेल्फी विद कुतुबमीनार पीछे घांघरिया को जाता समतल रास्ता

एक खूबसूरत झरना टेंटसिटी के पास

घांघरिया टेंट सिटी

कुछ नहीं, बोर्ड ही काफी है।

स्कीईंग करता हुआ, पीछे घांघरिया व्यू प्वांइट जहाँ धड़ाम हो गये थे।

अचानक जब घांघरिया पहुँच गये

ड्रोन व्यू 

20 comments:

  1. प्रतीक भाई से मिलना शानदार रहा।

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  2. चाय के दुकान पर एक जाना पहचाना चेहरा दिखा तो मन प्रसन्न हो उठा था, उन्होंने थोड़ा अचकचा कर देखा पर टोपी से बिल्कुल ठीक पहचान गये। हमने सोचा था की पता नहीं मिलेंगे की नहीं पर मिल ही गये।

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  3. वाह, प्रतीक गांधी जी से मुलाकात..... मतलब वो बातों का दौर, जो कभी भी खत्म नही हो सकता। बेहद खूबसूरत व्यक्तित्व के स्वामी है प्रतीक जी, मैने तब जाना जब ये मुझे मेरे मुम्बई भ्रमण पर खुद आ मिले थे।

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    1. प्रतीक भाई हमसे पहले ट्रैक पुरा कर आए थे वो वापस आ रहे थे और हम जा रहे थे। मुझे लगा शायद ही मिले पर जब मिले को हार्दिक आनंद आ गया.. बहुत से सलाह मशवरे जल्दी-2 हुए फिर हम तुरंत ही अलग-2 दिशा में चल पड़े यादों को समेटे हुए.. प्रतीक भाई घुम्मकडी दुनिया के एक नगीने है। 😊🙏

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  4. वाह, प्रतीक गांधी जी से मुलाकात..... मतलब वो बातों का दौर, जो कभी भी खत्म नही हो सकता। बेहद खूबसूरत व्यक्तित्व के स्वामी है प्रतीक जी, मैने तब जाना जब ये मुझे मेरे मुम्बई भ्रमण पर खुद आ मिले थे।

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  5. वाह, प्रतीक गांधी जी से मुलाकात..... मतलब वो बातों का दौर, जो कभी भी खत्म नही हो सकता। बेहद खूबसूरत व्यक्तित्व के स्वामी है प्रतीक जी, मैने तब जाना जब ये मुझे मेरे मुम्बई भ्रमण पर खुद आ मिले थे।

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  6. बहुत़ ही शानदार वर्णन और साथ ही भाईं जी प्रतीक गांधी से मिलने का सुअवसर। अद्भुत सौंदर्य

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    1. बहुत शुक्रिया.. बरसातों में तो पहाड़ नई दुल्हन से श्रृंगार करते है जी 😊🙏

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  7. मैं जब गई थी तब ये टेंट नगरी नही थी मुझे लगा ये आपदा के बाद बनी होगी।लेकिन फूलों की घाटी तो गोबिंद घाट से ही अलग रास्ते पर निकल जाती हैं फिर तुम लोगो को धंधरिया में कैसे मिलेगी

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    1. बुआ फूलों की घाटी का रास्ता आजकल घांघरिया से ही जाता है। बहुत पहले कभी हनुमानचट्टी से रास्ता था। मुझे नहीं पता आप इतने पहले गये थे। 😂😂😂

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  8. सॉरी बहुत ही कन्फ्यूजन हैं गोविंद धाम ओर घाट में😂😂😂

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  9. जिस दिन में फसा था लैंडस्लाइड में उस दिन ज्योति जी और तुम्हारी यात्रा की याद आयी थी...ज्योति से तो जब में मसूरी था तब बात की थी फिर उस दिन नंदप्रयाग से तुमसे बात की थी...चिंता तो थी ही लेकिन विश्वास भी था कि तुम आओगे और कार ही लोगे सब मैनेज बारिश और landslide.... बहुत डराया सबने लेकिन मुझे इस बहुत तेज बारिश में यह सब घूमने में और मजा आया और आखरी दिन मुझे लगा था कि तुम या ज्योति नही मिले और फोन नेटवर्क था नही ...फिर भी एक आस थी कि मिलेंगे जरूर... और जब में पार्था दादा से बात करते हुए निचे आ रहा था अचानक तुम दिखे मुझे संमझा ही नही की क्या रियेक्ट करू क्योकि अचानक कोई घटना होती तो समझ नही पाता हूं लेकिन फिर अचानक सेन्स आ गए और जो गले मिल कर आनंद आया चने चाय पानी और वो कुछ लम्हे और कुछ बाते....रांसी trip के बाद हरिद्वार स्टेशन के बाद सीधे अचानक जंगलचट्टी में मिलना हमेशा याद रहेगा...💐 में भी गुरुद्वारा ही रुका था 3 दिन...बहुत मजा आया ऊन सब जगहों को घूमने का

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    1. आपसे बात कर और मिल कर जो हिम्मत मिली की हमने सारे ट्रैक सफलता से निपटा डाले.. आपकी सलाहों ने बहुत साथ दिया..
      मिलेंगे फिर कभी किसी रास्तों पर.. बहुत शुक्रिया प्रतीक भाई..😎😍🙏🙏

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  10. गुरुद्वारा में जो सुविधाएं मिलती हैं और सबसे बड़ी बात कि जिस तरह से मिलती हैं उसका कोई जबाब या जोड़ नही है। निहायत सेवा भाव का शानदार तरीका और यह अपनापन हर जगह संभव नहीं होता है। पटना साहिब के गुरुद्वारा साहिब मे हमने काफी नजदीक से महसूस किया और जब से थोड़ा बाहर घुमना शुरू किया तो वहाँ के गुरुद्वारा साहिब का अनुभव भी अविस्मरणीय रहा। अपनी 2017 की चारधाम यात्रा के दौरान जब हमारी मंडली बदरीनाथ धाम जा रहे थे और भूस्खलन के कारण जोशीमठ के पास हाथी पर्वत के कुछ अंश गिरने से रास्ता बंद हो गया था और 24 घंटे के बाद खुला था। तब हमारी करीब 100 लोगों की मंडली जोशीमठ गुरुद्वारा में ही रुके थे जबकि जोशीमठ मे समुचित तरीके से मदद ना मिल पाई थी। वैसे उत्तराखंड में स्वागत दिल से लोग करते हैं और आपकी यात्रा भी मानसून मे पूरी उफान पर है। बटोही चलता जा..

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    1. जी भईया मानसूनी बारिश ने एक पल भी नहीं छोड़ा था.. पर खुबसुरती भी चार गुना हो गई थी। पत्ता पत्ता धुला धुलाया.. उत्तराखंड जाकर तो मैं कतई पहाड़ी ही बन जाता हूँ, बहुत सरल लोग है।
      गुरू के लंगरो की तो बात ही निराली है पुरे तीन दिन हमारा ठिकाना वहीं रहा.. कभी कोई परेशानी नहीं हुई..

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  11. बेहद खूबसूरत नजारे हैं,और रोचक यात्रा वृत्तांत

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