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पुराने ईंट के खंडहरो, टूटी फूटी दीवारों और एक आम इंसान के लिए उल -जलूल चीजें दिखाने के लिए भरी बरसात में लंबी बाइक यात्रा करवाने और तमाम सारी जहालतो के बाद मैं अपने दोनों साथियों से ढेरों उलाहनो, तानो और कुछ एक विशेषणो से सम्मानित होने के बावजूद मजे ले रहा था। फिर जैसे तैसे मन मार कर उत्खनन साइट से बाहर आए, तो ठीक सामने सड़क उसपार नालंदा संग्रहालय की ईमारत है। तो मुँह उठाए नाक की सीध में चलते चले गये, टिकट तो पहले से ही ले रखा था। एक लंबे रास्ते के बाद एक साधारण सी ईमारत के पास आ खड़े हुए इसके भीतर ही खुदाई से निकली चीजें सुरक्षित रखी हुई है।
नालंदा विश्वविद्यालय ध्वंसाशेष उत्खनन संग्रहालय :-
यहाँ प्रवेश के साथ ही जो चीज सबसे पहले दिखाई देती है, वह है- एक बड़ा सा ड्रम जैसा अनाज रखने का पक्की मिट्टी का मर्तबान जिसे देखकर समझ नहीं आता की इसे कितने बड़े चाक पर रखकर कैसे बनाया होगा?
खैर संग्रहालय अंदर से व्यवस्थित और सुदंर है। जहाँ सैकडो गुप्त और पालवंश कालीन बौद्धसत्व और हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियाॅ है, कुछ मुर्तियाँ तो निहायत ही विवादास्पद है जिनसे उस काल में बौद्ध और वैष्णव मतो के बीच एक दूसरे को नीचा दिखाने की रस्साकस्सी का पता आराम से चल जाता है। गुप्तकालीन मूर्तियाँ इतनी कलात्मक और खूबसूरत है की जैसे अभी बोल उठेंगी।
इसके अलावा महाविहार और विश्वविद्यालय में रोजाना की जीवन शैली की कितनी ही चीजें रखी हुई है जैसे मनके, मालाएँ, बर्तन आदी। कितने ही ताम्रपत्र और शिलालेख है, कुछ दानपत्र भी है। कुछ आकर्षण की चीजों में केवल नालंदा विश्वविद्यालय के विद्यार्थी और भिक्षुओं के लिए विहार परिसर भर में ही चलने वाली मिट्टी के सिक्के देखने को मिलते है जिनको दिखाकर विहार के अधिकारियों से नये वस्त्र और खाने-पीने की चीजें मिल जाया करती थी। एक जगह नालंदा ध्वंस के समय के कुछ जले हुए चावल के नमूने रखे है।
सभी चीजों को देखकर और साथियों के कूढ़ने के मध्येनजर यहाँ से बाहर आए तभी बरखारानी भी आ गई.. आज हमने पुरे रास्ते बारिश में ही बाइक चलाई थी, हमने अपने रेनकोट दुबारा पहन लिए। अब हमें 24वें जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी जी की जन्मभूमि कुण्डलपुर देखने जाना था जो नजदीक ही 2 km दूर है। कुण्डलपुर के रास्ते में ह्वेनसांग स्मृति भवन और एक प्राचीन छोटा सा सूर्य मंदिर भी है जिनको वापसी में देखा जाएगा।
महावीर जन्मस्थान कुण्डलपुर :-
कुण्डलपुर में दिगम्बर और श्वेतांबर दोनों मतो के अलग अलग मंदिर परिसर है, और दोनों ही नंद्यावर्त महल के नाम से जाने जाते है। दिगम्बर संप्रदाय का मंदिर परिसर छोटि किंतु बहुत कलात्मक है; यह एक सफेद संगमरमर से बना सुंदर मंदिर है। नजदीक ही श्वेतांबर संप्रदाय का कुछ सादा परंतु विशाल मंदिर परिसर है। यहाँ मुख्य मंदिर तीन भागों में विभाजित है, मध्य में महावीर स्वामी की विशाल दिगम्बर मुद्रा में मुर्ति बांये आदीनाथ या ऋषभदेव और दांये नवग्रह तीर्थंकर रूप में विराजमान है। परिसर में बांये हाथ की और नंद्यावर्त महल और दांये ओर त्रिकाल चौबिसी और जैन धर्मशाला है।यहाँ से निकल वापस नालंदा की चले और ह्वेनसांग स्मृतिभवन देखने गये। यह सड़क से कुछ अलग एकांत और सुरम्य जगह पर है।
आचार्य ह्वेनसांग स्मृति भवन :-
शायद किसी घुम्मकड़ यात्री को समर्पित इकलौता मंदिर या स्मृति भवन है। यह पुरे नालंदा परिक्षेत्र का सबसे सुदंर जगह है, यहाँ की इमारत चीनी वास्तकला का अनुपम उदाहरण है। 1960 में पंचशील समझौते के तहत चीन ने ह्वेनसांग का अस्थिकलश, कुछ प्राचीन बौद्ध ग्रंथ, भगवान बुद्ध के चरणचिह्न की छाप और स्मृति भवन बनाने के लिए रकम की भेंट दी थी। परंतु 1962 के चीन-भारत युद्ध के बाद यह भवन अर्धनिर्मित और उपेक्षित खड़ा था, जिसका जिर्णोद्धार नव नालंदा महाविहार के तत्वाधान में 2004 में संपन्न हुआ। यहाँ चीन और जापान आदी से बहुत से पर्यटक आते है परंतु भारतीयों की संख्या नगण्य ही है। इस परिसर में एक बहुत बड़ा कांसे का घंटा लगा हुआ है और सबसे खास बात ये की उसे बजाने की अनुमति भी है, हमने तो बहुत देर उसे बजा कर आनंद लिया। ह्वेन सांग स्मृति भवन में उनके पुरे जीवनकाल को चित्रों के माध्यम से दिखाया गया है जिससे नजरें हटती ही नहीं है। सारी अंदरूनी दीवारें बौद्ध भिक्षुओं और ह्वेन सांग के भारत में बिताए वर्षों के चित्रों से भरी हुई है। जिनमें तात्कालिन नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति और ह्वने सांग के गुरू आचार्य शीलभद्र का पोर्टेट दर्शनीय है। ह्वेन सांग कुछ एक मेरे प्रेरक लोगों में शुमार है, उन्हे यात्रियों का राजकुमार भी कहा जाता है। ह्वेन सांग का जन्म मध्य चीन में हुआ था, उनके बचपन का नाम वेन छई था। 21 वर्ष की अवस्था में वह बुद्ध की सही शिक्षाओं को खोजने के लिए सातवीं सदी में भारत आए जब यहाँ पुष्यभूति वंश के राजा हर्षवर्धन का राज था, उन्होंने उनका बहुत आदर सत्कार किया और राजगुरू का पद भी दिया। ह्वेन सांग छः वर्ष नालंदा में रहे जहाँ प्रथम पांच वर्ष उन्होंने अध्ययन के लिए विद्यार्थी रूप में और एक वर्ष शिक्षक के रूप में बिताया। बाद के काल में भारतभ्रमण करते रहे और अपने साथ 657 बौद्ध ग्रंथों की प्रतिलिपि और बहुत सी बौद्ध प्रतिमाएँ चीन लेकर गये और बुद्ध के ज्ञान के आलोक से संपुर्ण विश्व को प्रकाशित करने का कार्य किया, उन्होने अपना यात्रा का वर्णन सी-यू-की नामक एक किताब में किया, जिसका चीन और भारत के इतिहास लेखन में एक अहम स्थान है। ऐसे महान घुम्मकड़ आचार्य के श्री चरणों में नमन कर बहुत प्रसन्नता हो रही थी। अब आचार्य ह्वेन सांग से विदा लेने थी।
राजगृह की ओर :-
अब शाम भी घिर आई थी और अभी हमें 15km और चलकर राजगृह(राजा का घर) या राजगीर तक पहुँचना था और अपने निढाल भारी भरकम शरीरों को आराम पहुँचाने का इंतजाम भी खोजना था। थोड़ी ही देर में हम राजगीर पहुँच गये। दोनों मित्रों ने होटल खोजने की जिम्मेदारी ली और मैं थोडी दूर स्थित एक जैन नौलखा मंदिर देखने चल दिया, वैसे मुख्य उदेश्य यह था की जैन धर्मशालाओं में रूकने और खाने पीने का बढ़िया इंतजाम हो जाता है। जिसका मैंने कई जगहों पर बहुत लुत्फ उठाया है। जैन मंदिर पहुँच कर मैं इस कदर जैन रंग ढंग में आ गया कि बिना id card देखे यह बताना मुश्किल होता की मैं कोई जैन तो कतई नहीं हूँ। फिर जब मैंने अपने दोस्तों को यह खुशखबरी देने के लिए फोन किया तो उन्होंने जो खुशखबर मुझे दी उससे ऐसा झटका लगा की मेरे सारे तोते उड़ गये। मैं वापस भागा... उनके बताए जगह पर पहुँचने पर मैं राजगीर-नालंदा रोड़ पर ही एक सितारों वाले आलीशान होटल 'NALANDA REGENCY' के सामने खड़ा था। मैंने उन नामुरादो को फोन किया तो उन्होंने कहा चुपचाप अंदर आ जा.. खैर मैंने अपनी बाइक पार्किंग में लगा कर भीगे पैरों से शीशे से चमकते फर्श पर पांवो के निशान बनाता रिशेप्सन पर गया.. और वहाँ खड़ी दो निहायत खूबसूरत चाइनीज लड़कीयों ने जब मदद के लिए पुछा, तो मेरे मुँह से अचानक WHY NOT निकल पड़ा और हम तीनों ही झेंप गये।
खैर जब मैंने अपने दोस्तों के बाबत पुछताछ की तो पता चला इन दोनों महानुभावो ने 4500 रू प्रति दिन के हिसाब से दो दिनों के लिए डिलक्स रूम की बुकिंग की है। कमरे में जाकर जैसे ही मैं कुछ बोलने के लिए मुँह खोला हमारे मित्र मृगांक बाबू ने मेरे मुँह पर हाथ रखकर सामने खिड़की खोल दी, बाहर दुधिया रोशनी में एक बड़ा सा स्विमिंग पुल था जिसमें थोक मात्रा में अंतर्राष्ट्रीय सौंदर्य तैर रहा था। उसका हाथ अभी भी मेरे मुँह पर था और मेरी आँखे गोल हो गई थी। फिर उसने बताया की यहाँ बार भी है, जबकि उस वक्त पुरे राज्य में शराबबंदी की जा चुकी थी। तर्क अकाट्य थे और मुझे उनकी प्रशंसा करनी पड़ी और मुझे उन्हे उल-जलूल वाहियात जगहों पर भटकाने के लिए माफी भी मांगनी थी। उनके हिसाब से वह स्वर्ग में थे, और स्वर्ग के कुछ झींटो का मजा मैं भी ले रहा था। हमारे स्वागत के लिए काले अंगूरों की स्मूदी आई वेलकम ड्रिंक के लिए। और फिर फ्रेश होकर हम नीचे रेस्ट्रां में डिनर करने के बाद मैंने अभयानंद सिन्हा जी को राजगीर के दर्शनीय स्थानों के बारे में और प्लानिंग के लिए फोन किया तो उन्होंने बताया की राजगीर की सभी जगहें एक सड़क जो गया तक जाती है पर ही स्थित है। उनसे बाकी सभी चीजों की जानकारी ले ली। फिर उन्होंने होटल के बारे में पूछा तो मैंने उन्हे सारा वाक्या बताया तो उन्होंने भी अपना माथा ठोक लिया - पर्यटक कहीं के... वैसे राजगीर में हर तरह के रूकने के साधन मौजूद है। न्यूनतम 140 से 10000 के सुइट तक.. और यहाँ एक बड़ी संख्या विदेशी सैलानीयों की भी आती है। अभ्यानंद जी से बात कर और सारा कार्यक्रम को सीरीज में लगा कर अब आराम से अकड़ चुकी कमर को सीधा करने की बारी थी। कल सुबह राजगीर के दर्शनीय स्थलों की सैर पर जो निकलना था।
इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी ⚘
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नालंदा म्यूजियम का प्रवेश द्वार |
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एक सुंदर अर्थों वाला शिलापट्ट |
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शेव्ताम्बर महावीर जन्मस्थान मंदिर कुण्डलपुर |
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दिगम्बर महावीर जन्मस्थान मंदिर कुण्डलपुर |
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महावीर स्वामी की दिव्य प्रतिमा |
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आदीनाथ ऋषभदेव जी |
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त्रिकाल चौबिसी भवन |
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तीन मुख्य मंदिर दिगम्बर परिसर |
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मुख्य प्रवेश द्वार |
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आचार्य ह्वेनशांग स्मृति भवन प्रवेश द्वार |
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यात्रियों का राजकुमार |
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चीनी शैली में बना भव्य स्मृति भवन |
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सुंदर अनुराग |
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अंदर लगे चित्रपट्ट पर ह्वेन शांग का जीवन वृत |
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नालंदा के कुलपति आचार्य शीलभद्र |
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प्रार्थना करते कुछ चीनी पर्यटक |
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भव्य सुंदर छत पर की गई कलाकृतियाँ |
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ताँबे का विशाल घंटा |
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राजगीर के तारांकित होटल के रिसेप्शन पर.. |
मुझे चक्कर आ रहा है भाई साहब, आंखें गोल गोल घूम रही है। 4500 रुपए का कमरा, पहले तो मुझे लगा कि 450 लिखा है पर कई बार आंखे बड़ी करके देखने पर समझा कि ये 4500 है। 4500 में तो हम दस दिन का टूर कर लेंगे और आपने 4500 रुपया केवल सोने के लिए खर्च कर दिया। कभी मुझे भी अपने साथ ऐसी ही घुमक्कड़ी करवा दीजिए।
ReplyDeleteअगले भाग में राजगीर के दर्शनीय स्थानों की सैर की प्रतीक्षा रहेगी।
हाहाहा... इन विशुद्ध पर्यटक मित्रों के साथ बहुत बार अपना दिवाला पिट चुका है। पता नहीं क्यों इन्हे छांट-बिन कर वहीं चीजें दिखती है जो वहाँ सबसे महंगी होती है। जहाँ सत्तु भी ना मिले वहाँ इन्हे बिरयानी चाहिए होता है। ये सारी प्लानिंग मुझसे करवाते है फिर वहाँ पहुँच कर नेता हो जाते है, पर साथ हर जगह जाएँगे भले गाली दे।
Deleteजभी भी आप आएँगे तो साथ चलेंगे कहीं को..
जरूर.. बस कोशिश ही करेंगे, राजगीर पर आपका ब्लाॅग बिल्कुल फिट है, मेरी कोशिश बस कुछ इधर उधर करने की ही रहेगी। आपका हार्दिक आभार 😊🙏🙏