Sunday, December 2, 2018

अलकापुरी यात्रा फूलों की घाटी भाग ~ ९

बरसातों में नंदनकानन की ओर... भाग ~ ९

घांघरिया से वापसी)  26/08/2018
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आज सुबह बड़ी उदास थी, आज हमें यहाँ से वापस जाना था। सुबह-2 अपना रैकसेक पैक करने के बाद तैयार हुआ, ज्योति जी भी तैयार होकर नीचा पहुँच चुके थे। हमने गुरूद्वारे में मत्था टेका, हल्का नास्ता और चाय के बाद हमने गुरूद्वारे के लिए अपने श्रद्धा अनुसार योगदान दिया। बदले में हमें कूपन मिला जिसे गोविंदघाट गुरूद्वारा के कांउटर पर जमा करने पर शायद कुछ प्रसाद जैसा कुछ उपहार मिलना था।
भारी मन से गुरूद्वारे से बाहर आए और घांघरिया की संकरी गलियाँ पार करने लगे। अभी यहाँ सन्नाटा ही था, हमारे साथ में  आज एक मित्र भी वापस जाने वाले थे पर उनका कहीं अता पता ना था तो आगे चल पड़े शायद रास्ते में कहीं मिल ही जाए। घांघरिया पार करने के बाद हम दुबारा लीद के कीचड़ वले स्टेशन पर आ गये, जैसे ही जंगल शुरू हुए हल्की बारिश भी विदाई देने आ गई। रेनकोट- पोंचू - बैगकवर वाली जंग फिर से शुरू हो गई। आज हमारे सामने भ्यूंडार तक तो उतराई ही उतराई थी। ज्योती जी उतराई में एकदम धीमे चल रही थी पर मैं तो तेज ही चलने वाला था, पर उन्होंने साथ ही चलनेकी गुजारिश की। उनके पैरों की हालत का ध्यान रखते हुए हम धीमे-2 ही उतरने लगे।

 अभी उपर जाने वाले इक्का दुक्का लोग ही मिले जो घोड़ो पर जा रहे थे। बहुत से घोड़े मकान बनाने का सामान लेकर काफिला की तरह जा रहे थे, गर्डर टीन-टप्पर और ना जाने क्या क्या.. रूकते रूकाते और फोटोग्राफी करते हम जल्दी ही भ्यूंडार पहुँच गये। यहाँ हमें मित्र बने youtuber भाई मिल गये, उसका बैगकवर हमें फूलों की घाटी में गिरा मिला जो अभी तक हमारे पास ही था। वो हमने उसे वापस किया फिर कुछ देर गप्पेबाजी के बाद लक्ष्मणगंगा और उपर हाथी पर्वत के ग्लेशियरों से आती कर्णकुन नदी के जोरदार संगम के ठीक सामने हमने ढाबे पर अड्डा जमाया, मैग्गी-काॅफी-परांठो का दौर चला था।

 अभी तक हम लक्ष्मणगंगा के साथ-साथ ही उतरते आए थे, इस नदी को लक्ष्मणगंगा क्यों कहते है इसबात पर हमारा विवाद चल रहा था, जबकि बड़ी धारा तो टिपरा ग्लेशियर से आती पुष्पावती नदी की ही है जिसमें झरने के रूप में हेमकुंड झील से निकलती लक्ष्मणगंगा घांघरिया में संगम करती है। पर शायद तीर्थ से आने और लक्ष्मण जी के नाम के वजह से पुष्पावती के बजाए लक्ष्मणगंगा ही प्रचलन में है, मुझे तो पुष्पावती ही पसंद है। यहाँ से उतराई थोड़ी कम हो गई और चढ़ाई-उतराई वालें रास्ते आ गये। गाते गुनगुनाते हम आगे पीछे चले जा रहे थे, सीढ़ीयों वाले रास्ते पर ज्योति जी को सहारे से उतरना पड़ रहा था। आज दिन थोड़ा सा खुला सा था आसमान में बादल तो थे पर अभी बारिश से छुट्टी थी। हैलीकाप्टर सेवा अभी तक शुरू नहीं हुई थी। शायद मौसम खराब था या हैलीकाप्टर.. अब उपर जाने वालें लोग मिलने लगे थे। लगभग सभी हैरान परेशान थे सभी के चेहरों पर 12 बजे थे। सभी के सवाल बस दूरी और चढ़ाई के ही बारे में होते, हिम्मत देते, नमस्कार करते, नारा लगाते, मुस्काते धीमे धीमे चलते हुए हम पुलना से पहले वाले घोड़ो के अस्तबल वाले इलाके में आ गये, करीब हम 11बजे पुलना पहुँच गये।

 यहाँ अपने बैग पटक कर कुछ देर पत्थरों पर लेट कर कमर सीधा करने लगे अभी कोई गाड़ी नीचे नहीं जा रही थी और हम कम से कम घंटा भर इंतजार ही करते रह गये। 8 सवारी पुरी होने पर ही गाड़ीयाँ चलती थी खैर कुछ लोग आ गये और हमारी मैक्स गाड़ी नीचे गोविंदघाट के लिए लुढ़कने लगी थी। 20 मिनट बाद हम गुरूद्वारे के सामने खड़े थे, यहाँ सभी लोग वापस आने वाले ही थे। हमने हाथ मुँह धोकर माथा टेका और लंगर में खाना खाया, मैं तो लंगर के चटाई पर ही सो गया। कांउटर पर घांघरिया से मिला कूपन देने पर एक पैकेट मिला जिसमें एक कड़ा, एक निशान साहिब, एक पगड़ी का कपड़ा और कुछ सुखे मेवे थे। यहाँ हल्की धूप में अलकनंदा को धुँआधार बहना देखना कुछ सूकून के पल थे पर जब बादल नीचे को झुकने लगे तो जल्द से जल्द आगे बढ़ना ही था।

 गुरूद्वारे से निकल जब सड़क पर आए तो यहाँ एक घोड़ा हमें देखकर ऐसा खुश हुआ की बीच सड़क पर लोटने लगा, धूल और अफरा तफरी मच गई थी। हमारा इरादा था की आज बद्रीनाथ मंदिर का दर्शन कर ले, सड़क पर आने पर पता चला की पाडुकेश्वर से आगे लामबगड़ में पुरा रास्ता ही लैंस्लाइड की भेंट चढ़ चुका है और तीन चार दिनों से कोई गाड़ी नही जा सकी है। हमने अपने दोनों मित्र मृगांक और संतोष के बारे में पुछा तो पता चला की वो भी तीन दिनों तक रास्ता खुलने का इंतजार करने के बाद वापस ऋषिकेश चले गये है। हमने भी बद्रीनाथ पहुँचने की बहुत जुगत लगाने के बाद कुछ दूर पैदल चलने के बावजूद घूम फिर कर गोविंदघाट वापस आ गये। जोशीमठ से आने वाला रास्ता भी बंद था और बद्रीनाथ जाने वाला भी ना घर के रहा ना घाट के..

 अब बस इंतजार ही कर सकते थे। काफी देर बाद जोशीमठ वाले रास्ते से पत्थर हटाए गये तब एक मैक्स टैक्सी वाला जोशीमठ जाता मिल गया। हमने पांडूकेश्वर पुलिस चौकी पर पुछताछ की थी तो पता चला था की अभी दो तीन रास्ता खुलने की कोई उम्मीद नहीं है। अब मन मारकर  वापसी की राह पकड़नी ही पड़ी। वसुधारा ट्रैक आखिरकार छूट ही गया। चलो कभी ओर सही.. क्या पता तब सतोपंथ ही जाने का मौका मिल जाए, हरि ईच्छा बलियसी.. एक मैक्स में दबे कुचले सभी लोग भरे गये और गाड़ी गिरते हुए पत्थरों के बीच घुमावदार और टूटेफूटे रास्ते पर उझलते कूदते जोशीमठ की चढ़ाई करने लगी। विष्णु प्रयाग का हाइड्रो प्रोजेक्ट आते-2 जोरदार बारिश ने धर दबोचा, गाड़ी को चढ़ाई पर बारिश में चलाते हुए दिक्कत हो रही थी धीरे-2 जोशीमठ पहुँच गये। बारिश में भीगते-भागते टैक्सी स्टैंड की ओर भागे और पहुँचते-2 तरबतर हो गये। खैर यहाँ से एक गाड़ी तुरंत ही पीपलकोटी के लिए मिल गई तो उसमें जगह ले ली पर जगह पीछे वाली सीट पर ही मिल पाई।

जोशीमठ से पीपलकोटी बस ढ़लानों वाला ही रास्ता था, आगे कुछ दूर आगे चलने पर ही टैक्सी लहरा कर रूक गई टैक्सी का टायर पंचर हो गया था, शायद कोई नुकिला पत्थर जो कहीं उपर से टूट कर गिरा था। यहाँ सड़क पर पंच बद्री में से एक भविष्य बद्री जाने का रास्ता था। 4km की कठिन चढ़ाई थी तो बस नीचे से ही प्रणाम कर लिया बद्रीविशाल को.. नीचे घाटी में तपोवन बिजली संयंत्र दिखाई दे रहा था। टायर बदल दिया गया और हम पीपलकोटी पहुँच गए। पीपलकोटी में हरिद्वार-ऋषिकेश से आज बसें आ रही थी, सुबह से बस चल ही रहे थे। पीपलकोटी में कुछ दूर सड़को पर चहलकदमी की हर नई बस के आने के बाद नये लोग आते ही रहते है। हर समय नई महफिलें लगती है बस कुछ देर के लिए चाय पकौडियों के बहाने लोग अपनी कमर सीधी करते है और फिर अपनी गाड़ीयों में सवार हो जाते है। जोशीमठ की तरह ही पीपलकोटी भी एक झुलता सा शहर है। शायद यहाँ रूकना और चाय पकौड़ीयाँ खाना परंपरा बन गया है।

हमारा इरादा आज पीपलकोटी में ही रूकने का था, पर तभी एक टैक्सी वाले ने चमोली की हाँक लगाई और हम लपक कर उसकी बैठ गये। बहुत सी सवारियाँ थी और हम चमोली की ओर चल रहे थे। रास्ता उतरता ही जा रहा था जगह जगह बारिश से भारी भूस्खलन हो रखे था, लोक निर्माण विभाग जैसे तैसे बस सड़कों को चालू रख पा रहा था बाकी सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है। चमोली से कुछ पहले क्षेत्रपाल नाम की जगह पर भारी मलबा आ गया था, अब शाम भी होने लगी थी। अब बस  अपने पैंट मोड़ कर जुते हाथ में लेकर नंगे पैर कीचड़ और मलबे का इलाका पार कर करीब 1km दूर चमोली बाजार तक पैदल ही जाना चारा था गाड़ियों के जाने लायक रास्ता था ही नहीं डरते-2 भूस्खलन का इलाका पार किया और हाॅफते हुए चमोली बाजार तक का सफर पुरा किया।

 यहाँ से आगे कर्णप्रयाग तक के लिए गाड़ियाँ मिल रही थी पर हमारे अंदर अब और सफर करने की कोई इच्छा नहीं बची थी बची खुची हिम्मत कीचड़ मलबें में फ्लैग मार्च करने से खत्म हो गई थी। तभी मेरी नजर श्री बद्रीनाथ केदारनाथ सेवा समिति के यात्री विश्राम स्थल के बड़े से बोर्ड पर गई और हमें आज की मंजिल मिल गई अब हम कहीं नहीं जा रहे थे। 300 रू में ही हमें यहाँ कमरे मिल गये थे पुरा यात्री निवास खाली पड़ा हुआ था। यात्री निवास के पीछे एक बाजार वाली सड़क और फिर उसके नीचे गर्जना करती अलकनंदा की धारा..

थोड़ी देर आराम करने के बाद खाने के तलाश में बाहर निकले ज्योति जी को फलाहार करना था पर इससे मेरा कुछ ना होने वाला था। तो मैंने एक तिब्बती दुकान खोज डाली.. दो तीन फूल प्लेट बड़े-2 मोमोज और 3-4 बाउल सूप के बाद अब मैं बिल्कुल फिट था। कुछ फलों पर भी हाथ साफ करने के बाद अब बस दिन भर के थकान के कारण बस बिस्तर ही याद आ रहा था। अब बस.. यात्रा चालू आहे।

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इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘
गुरूगद्दी गोविंदधाम गुरूद्वारा घांघरिया

एक सुंदर झरना 

एक पहाड़ी झरना और घाटी में गस्त लगाते बादल

भ्यूंडार में मैग्गी लंच विद ज्योति जी और यूट्युबर मित्र 

काकभसूंडी ट्रैक के रास्ते के पास

पहाड़ी साथी

सुंदर नजारा 

वापसी में उदास बोझिल और सर झुकाए गोविंदघाट गुरूद्वारे के पास

बटोही चलता चल.. बेरोक बेखौफ

हमें देख इन्हे खुशी के दौरे पड़े

और भाई ने जबरदस्त नागिन डांस किया

जाते जाते

गोविंदघाट से जोशीमठ की इकलौती टैक्सी 

दिन भर की भागदौड़ के बाद का ठिकाना

एक उनींदे शहर की शाम

भाई साहब.. कोई जोड़ ही नहीं इनका

खुशियों की सुनामी

4 comments:

  1. इस यात्रा के सभी फ़ोटो शानदार हैं। मोमो और सूप देखके मुंह में पानी आ गया।

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    1. शुक्रिया..चंद्रेश भईया अपन बस देखो और बटन दबा दो भर जितने फोटो खिंचेता है ज्यादा झंझट पालना पसंद नहीं। जब मनपसंद मिला तो पेट भरने की जगह मन भरने तक खाया.. स्वर्गीय आनंद आ गया।

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  2. ये धंधरिया से गोविंद धाम तक कब से टैक्सी चलने लगी मेरे टाईम तो सिर्फ गोविंद घाट (धाम) तक ही बस थी खेर, सफर बहुत तकलीफ भरा था अगली बार सेप्टेंबर में जाना और इन नजरो को अलग ही अंदाज में देखना☺

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    1. बुआ जी आजकल पुलना तक गाड़ी जाती है। जरूर एक बार सितम्बर में भी जाएँगे। शुक्रिया बुआ जी 😊🙏🙏

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