Friday, February 1, 2019

एक बदनाम विरासत

एक बदनाम विरासत - भारत की..

भारत एक ऐसा देश है, जहाँ हजारों प्रकार के खाना-पीना लोगों के आम जन जीवन से जुड़े है। इस जुड़ाव की गहरी जड़े जुड़ी ही रहन सहन, प्राकृतिक परिवेश और मानव इतिहास से भी..
इसी श्रृखंला की एक कड़ी है विभिन्न प्रकार के पेय। गर्मियों में राहत देने वाले, सर्दियों में गर्माहट देने वाले और  दिन भर खेतों में काम से हुए थकान को दूर करने तथा पर्व-उत्सवों में आनंद के लिए पिए जाने वाले विभिन्न प्रकार के फर्मेंटेड पेय पदार्थ।

इतिहास के शुरूआती दिनों से ही इस प्रकार के पेय हर जगह और हर सभ्यता में प्रचलित है, शायद इनका आविष्कार भी चाय या काॅफी की तरह अचानक ही या गलती से ही हुआ होगा। हाँलाकि ये ड्रिंक्स मानवों के साथ शुरू से अब तक है, चाहे वो आर्यो के साथ आए सोम हो या अमेरिका की moonshine.

चलिए आइए बात करते है, भारत के इन्ही कुछ प्रसिद्ध fermented drinks की तथा इनकी छुपी दुनिया के बारे में..

सोम :- विश्व का सबसे प्रथम लिखित विवरण इसी पेय का मिलता है, यूँ तो इसे किसी लता से निकला बताया जाता है जो गंधमादन पर्वत की उपत्यका में मिलती थी, पर सभी इसी निष्कर्ष पर पहुँचे की यह cannabis या भांग ही थी, जिसे पीसकर शहद और दुध के साथ आर्य, मध्य एशिया और दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में पिया जाता था। आजकल भी विश्व के सबसे पुराने बसे शहर बनारस में इसका भरपुर प्रचलन है।

छांग :- यह एक हिमालयन ड्रिंक है, जिसे ज्वार और याक आदी के दूध से, mgolian cumis की तरह बनाया जाता है। घरों में बनी यह बियर पुरे हिमालयन रीजन में मिलती है, लेह से सिक्किम तक। जहाँ लेह में इसमें बाजरे-ज्वार का प्रयोग मिलता है वहीं इसे सिक्किम में चावल से बनाया जाता है। पर्व उत्सवों में यह बहुतायत से इस्तेमाल होती है।

महुआ अर्क :- यह प्राचीन मध्य भारत में बनने वाली एक ड्रिंक है, जिसका प्रचलन महाराष्ट्र से लेकर मध्यप्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक है। इसको महुआ पेड़ के फूलों को फर्मेंट करने से बनाया जाता है। मध्य भारत के आदिवासियों में इसका खूब चलन है और आसानी से हर जगह मिलती है, उनकी कोई पुजा त्योहार इसके बिना पुरे नहीं होते है।

सल्फी :- ताड़ कुल का एक वृक्ष जो छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और उड़िसा के जंगलों में बहुत संख्या में मिलता है जिसे caryota urens कहा जाता है, से ताड़ी की तरह का ज्यूस है जिसे फर्मेंट करने पर सल्फी रस बनता है। इसे 'बस्तर बीयर' के नाम से भी जाना जाता है। इसका यहाँ की अर्थव्यवस्था में बहुत योगदान रहता है। बस्तर के तकरीबन हर आदीवासी के घर इसका पेड़ होता ही है। वह इसका प्रयोग बिमारियों में दवाई की तरह भी करते है।

खार :- यह अनोखी ड्रिंक असोम और आसपास के क्षेत्रों में मिलती है, इसे खाना खाने के बाद या खाने में बतौर औषधि पिया जाता है। इसे कले के तने और पत्तो को सुखा कर फिर जलाकर उसके राख को पानी से छानकर और फर्मेंट कर बनाया जाता है। कहीं-2 पपीते का भी प्रयोग देखने को मिलता है।

हंडिया :- मिट्टी की हांडी में बनने से इसको नाम मिला है, यह एक बहुत प्राचीन पेय है जो बिहार, झारखंड, उड़िसा और पश्चिम बंगाल में प्रसिद्ध है। इसे उबले चावल, 20-21 मसालों की टिकिया 'रानू टेबलेट' के साथ फर्मेंट और distille करने पर बनाया जाता है। इसे गरीब मजदूरों की शराब भी कहा जाता है। इसका भी खूब प्रचलन है।

काजू फेनी :- यह भारत की सबसे ज्यादा प्रसिद्ध ड्रिंक है, जिसकी ख्याति विदेशों तक है। इसे cashew apple के ज्यूस को फर्मेंट करने तथा distille करने से बनाया जाता है। कुछ हिस्सों में coconut feni भी बहुत प्रचलन में है। यह पश्चिमी घाट के इलाकों में मिलती है।

लुगदी :- यह चावल और बाजरा का गाढ़ा घोल होता है, जिसे फर्मेंट करने पर बनाया जाता है, यह मुख्यतः मनाली और धर्मशाला आदी हिमाचल की जगहों पर खूब मिलती है। इसका प्रयोग फिल्म 'ये जवानी है दिवानी' फिल्म में भी दिखाया गया है।

कच्ची/किन्नौरी घंटी/ 100 बट्टा 100  :- इसे जौ और अंगूर को फर्मेंट करने तथा उसमें गुड़ मिलाकर दुबारा फर्मेंट कर फिर भपका नाम के एक पतीले जैसे चीज से distille करने पर बनाया जाता है। कहीं-2 इनमें नाशपाती और हरे सेब भी डाले जाते है। यह वोदका की तरह की ड्रिंक है जो आपके दिमाग की घंटियाँ बजा देने के लिए काफी है। इसे किन्नौर की स्थानीय ड्रिंक माना जाता है पर उत्तराखंड में इसका व्यापक प्रचार प्रसार है। और शाम ढलते ही पहाड़ो पर इसको प्रयोग बहुतायत में दिखता है।

केसर कस्तुरी :- राजस्थान की राजपुती आन-बान-शान की यह राजसी ड्रिंक है। इस लोकल वाइन में 21 प्रकार के मंहगे मसाले, केसर, सूखे मेवे, केवड़ा जल और कुछ aphrodisiac herb मिलाये जाते है। मुख्यतः यह जाड़े के दिनों की ड्रिंक है पर गर्मियों में इसे सौंफ और ठंडक देने वाले मसालों के साथ बनाया जाता है। इसे अतिथि को सर्व करना सम्मान करना माना जाता है।

 ठर्रा या देशी :- गंगा-यमुना के तराई मैदानों की यह ड्रिंक बनाई जाती है, गन्ने के रस से निकाले गये राब को फर्मेंट और distilled करने पर। इसमें तैयार गुड़ भी मिलाया जाता है। यह पुरे उत्तर प्रदेश और आस पास के क्षेत्रों में प्रसिद्ध है और इसे गैरकानूनी रूप से भी बनाया जाता है।

तोडी/ताड़ी :- पुरे भारत भर में समान रूप से प्रचलित यह ड्रिंक ताड़ के पेड़ से रात भर टपके रस को इक्कठा करने और फर्मेंट करने से बनता है। इससे सिरका भी बनाया जाता है। ताजा ताड़ का रस औषधीय गुण रखता है, फर्मेंट करने पर यह नशे के तौर पर प्रयोग होता है।

ये तो बस कुछ ही प्रसिद्ध नामों की ही चर्चा है, ऐसे अनगिनत तरह की ड्रिंक, भारत के हर क्षेत्र में समाज के गहरे में जडें जमाए हुए है और हमारी एक अलग ही तरह की विरासत है। जिसे सभी उपेक्षा और हेय दृष्टि से ही देखते है। घुम्मकड़ो को लाजिमी है इन वह इन स्थानीय धरोहरों का स्वाद लेता चलें जब वह वहाँ जाए।

वैधानिक चेतावनी : इन ड्रिंक्स के अति सेवन से सेहत को नुकसान हो सकता है, कृपया अपने विवेक का इस्तेमाल करें और मुझसे भी पूछ लें एक बार को.. 😆

इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी 😎
भपका यंत्र 

महुआ अर्क

सल्फी

लुग्दी

छांग

काजूफेनी

हंडिया

राइस बीयर 

100/100

आदीवासी डिस्टीलेशन प्लांट देशी ठर्रा

Sunday, December 2, 2018

अलकापुरी यात्रा, फूलों की घाटी अंतिम भाग

बरसातों में नंदनकानन की ओर... अंतिम भाग

(ऋषिकेश-हरिद्वार भ्रमण और घर वापसी) 29/08/2018

पिछले भाग में आपने देखा की जब हम नीलकंठ महादेव से वापस ऋषिकेश पहुँचे तो भयंकर बारिश से सामना हुआ था और हम सिर छुपाने के लिए ऋषिकेश के सबसे ऑइकानिक बिल्डिंग में घुस गये थे। जी हाँ, सभी के आकर्षण की केंद्र और ऋषिकेश की पहचान बन चुकी...

अलकापुरी यात्रा, फूलों की घाटी भाग ~ १०

बरसातों में  नंदनकानन की ओर... भाग ~१०

(हरिद्वार वापसी और नीलकंठ यात्रा) 27-28/08/2018

अगली सुबह मैं गलती से जल्दी ही उठ गया था, जिसका खामियाजा ये रहा की ज्योति जी ने अपने साथ ध्यान योग करने का फरमान सुना दिया वो भी नीचे अलकनंदा के तट पर सुबह-2 ठंड में..

अलकापुरी यात्रा फूलों की घाटी भाग ~ ९

बरसातों में नंदनकानन की ओर... भाग ~ ९

घांघरिया से वापसी)  26/08/2018
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आज सुबह बड़ी उदास थी, आज हमें यहाँ से वापस जाना था। सुबह-2 अपना रैकसेक पैक करने के बाद तैयार हुआ, ज्योति जी भी तैयार होकर नीचा पहुँच चुके थे। हमने गुरूद्वारे में मत्था टेका, हल्का नास्ता और चाय के बाद हमने गुरूद्वारे के लिए अपने श्रद्धा अनुसार योगदान दिया। बदले में हमें कूपन मिला जिसे गोविंदघाट गुरूद्वारा के कांउटर पर जमा करने पर शायद कुछ प्रसाद जैसा कुछ उपहार मिलना था।

अलकापुरी यात्रा फूलों की घाटी भाग ~ ८

बरसातों में नंदनकानन की ओर... भाग ~ ८

(हेमकुंड साहिब दर्शन) -2  25/08/2018

हेमकुंड साहिब का संबंध आखिरी सिख गुरू गोविन्द सिंह जी के पुर्वजन्म से है, उनकी लिखी एक किताब दशम् ग्रंथ के एक अध्याय 'बिचित्र नाटक' में ज्रिक आता है की पुर्वजन्म में जब गुरू गोविन्द सिंह एक सात पहाड़ो से घिरे हेमकुंड पर्वत के नीचे स्थित एक सरोवर के पास तपस्या करते हुए जब ब्रह्मलीन हो गये थे तब ईश्वरीय शक्ति ने उन्हे वापस दुनिया में जाकर लोगों को सही राह दिखाने का आदेश दिया था।

Saturday, December 1, 2018

अलकापुरी यात्रा फूलों की घाटी भाग ~ ७

नंदनकानन की ओर... भाग ~ ७

(हेमकुंड साहिब दर्शन ) -1  25/08/2018

सुबह कुछ खास अच्छी नहीं दिख रही थी, हल्की बारिश लगातार हो रही थी। रात भर तो जोरदार बौछार पड़ी थी, कल हेमकुंड साहिब जाने वाले जत्थे भी नहीं आए थे, बस गिनती का लोग ही कल गुरूद्वारे में भी थे। शाम को गुरूद्वारे की चहल पहल भी कुछ कम ही थी। तीन दिनों की लगातार बारिश और उत्तराखंड सरकार द्वारा जारी रेड एलर्ट का भी कुछ असर था शायद। तीन दिनों से हैली सेवा भी बंद ही रही थी।

Tuesday, November 27, 2018

अलकापुरी यात्रा, फूलों की घाटी भाग ~ ६

बरसातों में नंदनकानन की ओर... भाग ~ ६

फूलों की घाटी ) -2
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पिछले भाग में आपने वैली ऑफ फ्लावर का आँखो देखा यात्रा वर्णन पढ़ा अब फूलों की घाटी से जुड़ी कुछ जानकारियों पर प्रकाश डाला जाए। उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय परिक्षेत्र के चमोली जिले में स्थित है दुर्लभ फूलों की एक अद्भुत दुनिया...

अलकापुरी यात्रा, फूलों की घाटी भाग ~ ५

बरसातों में नंदनकानन की ओर... भाग ~ ५

फूलों की घाटी )-1 24/08/2018
रात भर बारिश की तड़तड़ चलती रही थी, थकान के मारे नींद सीधे सुबह ही खुली आज हमको फूलों की घाटी जाना था, और बाहर बारिश भी चलती रही। आज कोई जल्दी नहीं थी क्योंकि फूलों की घाटी एक राष्ट्रीय उद्यान है, वहाँ जाने के लिए परमिट बनता है और परमिट ऑफिस लगभग 7 बजे ही खुलता है।

अलकापुरी यात्रा, फूलों की घाटी भाग ~ ४

बरसातों में नंदनकानन की ओर...भाग ~४ 

 23/08/2018

जंगलचट्टी में भ्यूडार होने के भ्रम के बाद अब हम रास्तों के किनारे लगे बोर्ड ध्यान से पढ़ने लगे थे। रास्ता हल्की चढ़ाई  और दाहिने हाथ की ओर घाटी में हाहाकार करती लक्ष्मणगंगा के साथ-2 चलता है। पुरी घाटी नदी की आवाज से थर्रा रहा है, कभी-2 बीच में गोंविदघाट से घांघरिया तक चलने वाली हैली सेवा भी शोरगुल को बढ़ा देती है।

Monday, November 26, 2018

अलकापुरी यात्रा, फूलों की घाटी भाग ~३

बरसातों में नंदनकानन की ओर... भाग ~ ३

23/08/2018
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आज की सुबह भी भूचालों वाली थी, कल देर रात तक झमाझम बारिश में आपाधापी करना और फिर 100/100 के हाथों अपने सारे घोड़े आधे दामों पर ही नीलाम कर बेसुध से सोये थे। ज्योति जी का अपना बैग सजाते हुए कह रही थी धुप निकल आई है और किन आलसियों से राब्ता पड़ा है। हमें बस उनके योगा क्लास से राहत थी, तो सब फटाफट उठ बैठे.. मृगांक टाॅयलेट गया और थोड़ी देर में लगभग टप्पे खाता हुआ बाहर आया था- पानी में करंट है.. पानी में करंट है..

अलकापुरी यात्रा, फूलों की घाटी भाग ~२


बरसातों में नंदनकानन की ओर... भाग ~ २


 22/08/2018
अगली सुबह खतरनाक थी, मैं एक सफेद पानी वाले झरने के नीचे था, तभी अचानक भूकंप सा आया था। हड़बडा कर उठा तो पाया की मैं सपना देख रहा था और ज्योती जी मेरे पैर को जोर से हिला कर जगाने की नाकाम कोशिश कर रही थी। वक्त था सुबह के 3:45 am और हमारी बस से दो बार फोन भी आ चुका था। जो ठीक 4:00 am पर हरिद्वार रोड़वेज के सामने से चलने वाली थी। अब तो सभी की नींद उड़ चुकी थी और जैसे-तैसे फ्रेशअप कर हम अपने बैग को लगभग घसीटते हुए नीचे सड़क तक आ गये थे।

Sunday, November 25, 2018

अलकापुरी यात्रा, फूलों की घाटी भाग ~१


बरसातों में नंदनकानन की ओर... भाग ~ १




 20-21/08/2018
चटख हरियाली के कंबल ओढ़े कंपकंपाते से पहाड़, गरजती नदियाँ, अविरल धुआँधार झरने, धान के लहलहाते सीढ़ीदार खेतों में धानी चुनर लहराती प्रकृति, आसमान में घुमड़ते आवारा बादल और धरती को तृप्त करती बेपरवाह रिमझिम करती बारिश ये सभी संयोग जब इक्कठा हो जाए तो किसी यायावर मन को स्थिर नहीं रखा जा सकता है।

Wednesday, November 21, 2018

मिनी खजुराहो शहडोल यात्रा भाग ~ २


एक छुपे मोती का अचानक दर्शन  विराट मंदिर शहडोल भाग - 2 

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शिल्प चर्चा और घर वापसी- 

नवललनाओं पर बंकिम दृष्टि डाल और उन प्रेम कपोतो को पार कर मैं अपने बड़े से थैले के साथ जिसमें नाना प्रकार की खाद्य सामग्री मैंने भर रखी थी, मंदिर के ठीक सामने बने बेंच पर अपना आसन लगा लिया। दर्शन के लिए जब गर्भ गृह की ओर गया तो घुप्प अंधेरे एक बार कंपित कर दिया, फिर फ्लैश की रोशनी से हालात का जायजा लिया तब तक आँखे अभ्यस्त हो चुकी थी। दर्शनोपरांत जब मैंने हरएक प्रतिमा को ध्यान से देखने, विचार करने, और चित्रित करने में व्यस्त हुआ तो, विचित्र रूप से अनाशक्त भाव रखने वाले उपस्थित जनसमुदाय का आकर्षण का केंद्र बन गया। कुछ प्राचीन सोडषीयाँ अपने प्रेमभक्तो को लेकर मुझ तक आ पहुँची और मैं बेगार का गाइड बन गया। उनसे जान छुड़ाकर में वापस अपने काम पर लग गया। हर मूर्ति जैसे बोलने को आतुर थी और मेरे कर्णपट उस मधुर संगीत के आंकाक्षी। थोड़े समय के बाद मैं एक भीड़ का नेतृत्व कर रहा था, जो मुझसे सवाल पर सवाल किए जा रही थी। ये क्या है? क्यों है? और मैं मूढमति खुद को विशेषज्ञ मान कुछ भी उलूल जूलूल बताए जा रहा था। खैर.. मुद्दे पर आते है।

यह मंदिर कलचुरि शासकों द्वारा बनवाए गये उत्कृष्ट स्मारकों में से एक है। स्थापत्य और कला शैली के आधार पर यह लगभग 11वीं शती ई. के समय का प्रतीत होता है।

पूर्वाभिमुख व अत्यधिक अलंकृत यह मंदिर एक चबुतरे(जगती) पर स्थित है। जिसका अधिष्ठान काल के क्षरण से कमजोर हो गया जिससे इसका विमान एक ओर झुकाव लेते हुए है। इस मंदिर के भू-विन्यास में अर्ध्दमण्डप, महामण्डप, अंतराल एंव वर्गाकार गर्भगृह है। लगभग 10फीट वर्गाकार गर्भगृह में एक सहस्त्र वर्ष प्राचीन एक बिलांग ऊँचा शिवलिंग और जलधारी, एक डमरूयुक्त त्रिशुल और ताम्र शेष विग्रह भी समर्पित है। लिंग पुजित है और स्थानीय आस्था का केंद्र भी यहाँ एक पुजारी और दो कर्मचारी भी नियुक्त है।

 गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर भी कलात्मक मूर्तियाँ शोभायमान है, जिनमें मध्य में कमलापति, बांये वाग्यदेवी और दाहिने ओर लंबोदर विराजमान है। चौखटो को मकरवाहिनी- कच्छपवाहिनी आदी देवियाँ सुशोभित कर रही है।
 मंदिर के उर्द्धविन्यास को पाँच भागों में बाँटा जा सकता है। यथा-पीठ, वेदिबंध, जंघा, वरण्डिका और शिखर। इसके शिखर का स्थापत्य सप्तरथ शैली का है और विमान उपर उठते हुए कैलाश शिखर को प्रतिरूपित करता है। जिसके चारों कोनों पर 21 भूमि आमलक है। शिखर के उपर आमलक, चन्द्रिका, अमलसारिका एवं कलश आवेष्ठित है। शुकनासिका के मध्य में ताण्डव शिव की प्रतिमा है। साक्ष्यरूप अवशेषों के आधार पर प्रतीत होता है कि मण्डप के उपर पिरामिड के आकार की सुंदर छत रही होगी, जो कलान्तर में ध्वस्त हो गयी जिसके स्थान पर स्थानीय प्रशासको द्वारा कलाविहीन सपाट अग्रमण्डप का निर्माण करवाया गया है।

मंदिर के प्रमुख आकर्षण में बहुभुजायुक्त नृत्यरत शिव की प्रतिमा विशेष है। यहाँ की बहुत सी मिथुन मूर्तियाँ व अन्य अनेक प्रतिमाएँ खजुराहो की मूर्तियों के बहुत समान है। इस मंदिर पर समकालीन चंदेल एवं परमार कला का प्रभाव स्पष्टतयः दृष्टिगोचर होता है। शैव और वैष्णव संप्रदाय का बहुत ही सुंदर तारतम्य मूर्तिमान हो रहा था। परंतु कामकला  की सभी मुर्तियों में लंबी दाढ़ी धारण किए कापालिक को देख सहज ही शैव प्रभाव का अनुमान लगाया जा सकता है। सभी मैथुन कलाकृतियों को उभार कर नही अपितु गहवर में अन्य से तनिक ओट लेती हुई प्रदर्शित किया गया है। जो ध्यान देने पर ही दृष्टिगत होती है, इसे मध्यप्रदेश में स्थित एक छोटा खजुराहो की संज्ञा भी देती है। मण्डम और अन्यत्र कई भग्न बौद्ध और जैन मूर्तियाँ की दिख जाती है, तो कुछ खाली जलधारी और अनेक खंडित देव प्रतिमाएँ भी है। प्रांगण के निकट एक सरोवर है , जिसके किनारों पर कुछ मृतक स्मृति छतरियाँ भी बनी है।

पुरे दिन के बाद मंदिर से वापस आ स्थानीय खानपान का आनंद लेना चाहता था। सुदूर मैकाल पहाड़ियों वाले शहर में शाम ढले मस्त आवारागर्द हाथी सा टहल रहा था,ठेठ जनजातिय क्षेत्र में 6 फीट का गोरा मोटा लड़का कौतुहल बना हुआ था। पता नहीं क्यों सभी ऐसे देख रहे थे जैसे मैं कोई चिड़ियाघर से भागा हुआ दरियाई घोड़ा हूँ। तभी म प्र सरकार के अभिनव प्रयास पर नजर पड़ गयी, हुआ कुछ यूँ था की शहर भर के ठेले खोमचे वालों को इक्कठा कर एक स्ट्रीट फूड सुपर मार्केट बना दिया गया था। फिर तो ऐसा खुश हुआ की जैसे पहली बरसात में मेंढक और कछुए, जैसे किसी छुट्टा सांड को लहलहाती फसल दिख गयी हो।

तो पहले पावभाजी आयी, फिर दाबेली, फिर 20 गोलगप्पे, फिर पापड़ी चाट आयी, फिर डोसे मंगाये गये, फिर फालूदा- सोफ्टी के बाद जलजीरा वाला सोड़ा चढाया गया, तब तक गरम उतरती जलेबी पर नजर फिसलती चली गयी।
लब्बोलुआब ये रहा कि रिक्शे पर लद कर होटल लाए है शरीर को.. और होटल के नर्म बिस्तर खुछ को बहुत मुश्किल से बिछा कर और कंबल के एक कोने से थोडा मुँह बाहर निकाल कर गर्मागर्म जलेबी खाते हुए भारत-दक्षिणअफ्रीका के बीच पहला T20 मैच देख रहा हूँ। मतलब इतना सुख देखर कर एक बारगी अमरावती के इंद्र भी ईष्या के मारे जलभून जाए।अब मध्यरात्रि को मेरी ट्रेन मुझे लेने आने वाली थी, मेरा टिकट अब तक प्रतीक्षा सुची में था। खैर जैसे-तैसे टी•टी•ई साहब की आधी सीट पर किसी तरह टिक गया, फिर वो अपने राउंड पर चले गये और मैंने उनके सीट पर पुरा परस गया.. फिर क्या..
फिर.. खट-खुट करती.. हट-हुट करती.. गाड़ी अपनी जाए.. फर फर भागे सबसे आगे कोई पकड़ ना पाए..
धन्यवाद 
इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘
ओपन आर्ट गैलरी विशुद्ध खुबसुरती

प्रेम के आदी बिंदु उमा-महेश्वर

आंतरिक दृश्य खंडित मूर्तियाँ और जलहरी

विहंगम कैलाश विमान

प्रस्तर ललनाएँ

झाँकी

गांडीवयुक्त धनंजय

गिरधर मुरलीधर कहो, कछू दुःख मानत नाही

कपालिक देव और शार्दुल

गहवर में मैथुनरत प्रस्तर काव्य

विभिन्न मुद्राएँ 

अनिंध्य

ललित कला 1

ललित कला 2

हस्ताक्षर मुद्रा

ललित कला 3

ललित कला 4

लावण्यमयी

गणाधिपति

सरस्वती
गुहयात गुहयम्

ललित कला 5

चकित जड़रूप

प्रफुल्लित मन

प्रस्तर काव्य के आरोह अवरोह

हिमाद्री तुंग श्रृंग सा..
प्रेम मनुहार

एकात्म क्षण 

मिनी खजुराहो शहडोल यात्रा भाग ~१

                               
एक छुपे मोती का अचानक  दर्शन  - विराट मंदिर शहडोल भाग-1 


नमस्कार 🙏



आजतक मैं यह निर्धारित नहीं कर पाया की मैं भारतीय रेलवे की निंदा करूँ की प्रशंसा। कभी तो ऐसी झुझंलाती है की 33कोटी के देवता से लेकर नेता तक 33 कोटी के आर्शीवचन खा जाते है मेरे हाथों। पर कभी-2 प्रियतमा की तरह रूठती-मनाती धक्के पर चलती रेलगाड़ी काफी कुछ जाने अनजाने दिखा सीखा जाती है।

तो हुआ युँ की हालिया अमरकंटक से वापसी में ट्रेन के आरक्षण का ठेका मैंने एक परम मित्र के पक्ष में जारी किया और उन्होंने आशातीत स्तर पर कार्य करते हुए टिकट प्रेंड्रारोड़ के बजाए शहडोल से आरक्षित किया वो भी प्रतीक्षारत, जिसके लिए उन्हे तदनुपरांत यथोचित पारितोषिक से भूषित करना पड़ा।

खैर इतने हंगामे की बीच मुझे एक अधिक दिन जो मिल गये थे घुम्मकणी के लिए, अब बसों की रेलमपेल को झेल मैं मध्यप्रदेश के जनजातियबहुल सुनसान विरान जिला मुख्यालय शहडोल में रात्रि के 1:55am पर एक जैन मंदिर के सामने खड़ा था किंकर्तव्यविमूढ़। सहसा कुछ हलचल प्रतीत हुई और मेरा हाथ मेरे घुम्मकण मित्र स्विस नाइफ पर कस गया। नजर दौडाई तो सामने एक जैन होटल का बोर्ड चमक रहा था, सीढ़ियाँ चढ़ देखा तो एक सज्जन कांउटर पर उँघ रहे थे। मैंने उनके चिर आनंद में व्यवधान डाल पुछा कोई रूकने का ठिकाना मिलेगा ?? प्रतिउत्तर निहायत ही हैरान करने वाला था महानुभाव ने बिना नजर उठाए पुछा था क्यों..??

मैंने झल्लाते हुए कहा - 'क्योंकि मुझे नींद आ रही है। अब देव चैतन्य हो उपर से नीचे तक निरीक्षण के बाद घड़ी देखी और विस्मय से आंखे गोल करते हुए देखने लगे। मैंने पुछा था कोई रूम मिलेगा मुझे कल ठीक इतने वक्त ही रात को निकलना है।" अप्रत्याशित उत्तर मिला हाँ 300 रू लगेंगे 200 सिक्योरिटी भी। मैं चहक उठा जैसे पहली बरसात में मेंढक और कछुएँ। कागजी कार्रवाई कर मैं चुपचाप अपने मनोभावो को ठिकाने लगा महोदय का अनुगामी हुआ, होटल बस दो मंजिलो तक ही था, उपर एक बड़ा खुला प्रागंण और किनारे-2 कमरे उनमें से एक कमरा मुझे मिला, बढिया सफेद चमकती चादर बिछा डबल रूम ने पहले मुझे कोफ्त पहुँचाई पर अभी नींद हावी थी तो अपना दंड कमंडल फेंक सीधा बिस्तर पर छंलाग लगाई पर नींद कोसो दूर मोबाइल पर कुछ गुगलियाया तो हजार वर्ष पुराना विराट मंदिर नजदीक ही सोहागपुर में स्थित है ऐसा पता चला तो कल पुरा दिन बेमतलब आवारागर्दी वहीं के हिस्से लगा, tv ऑन कर देखते-2 विभावरी की गोद में सर रख ना मालूम किस लोक के विचरण को निकल पड़े..उषागमन तक के लिए विदा

उषा को आए पुरे चार घंटे बीत गये, पर विभावरी से जी नहीं भरा था। न्यूज पेपर के लालच में आखिरकार कुर्बानी देनी पड़ी, होटल वाले को चाय को बोल नीचे सड़क तक पहुँच गया।
एक मजमा खड़ा था गर्दन को लंबाई दी तो मालूम हुआ ताड का रस है, अनजान जगह है तर्जुबा लेने के लिए माहौल उत्तम। उस मटके वाले से बाबत पुछा तो वो तुरंत सुश्रुत बन बैठा "भईया जी ताजो है, अभही उतारे ला रहे अमरीत है अमरीत पेट के लिए तो", तुरंत जनसमर्थन भी मिल गया। स्वाद तो अजीब सा था एक बड़ा गिलास पी गया शायद उसने कोई गोलियाँ भी मिलाई थी, सर भन्ना गया। वापस आकर चाय पी और ठंडे पानी से नहाने पर हालत ठीक हो गई और फिर निकल पड़े विराट नगर की ओर..

आसपास पुछताछ करने पर पुष्टि हुई फिर एक ऑटो वाले ने 100 रू में घुमाने का ऑफर दिया, गुगल महाराज से जाँच की तो 3.6 km, फिर शेयर्ड ऑटो को चुना और हाइवे तक छोड़ने के ऐवज में  ऑटो को 20रू दे रूखसती दी और पैदल चल पड़े बमुश्किल 200m बाद ही मंदिर प्रांगण नजर आने लगा। मेरे हाथ में एक बड़ा सा थैला था जिसमें ढेर सारे फास्टफूड़ कहे जाने वाले खाने के नमूने थे, कुछ चिप्स के पैकेट, एक मारी मन पसंद आलू की नमकीन, कुछ कुकीज, कुछ केक बिस्कुट, एक-दो फ्रुटी, एक तुफानी ठंडा, एक चाॅकलेट बार और कुछ खट्टी मीठी गोलियाँ जो आज भर के लिए पर्याप्त थे।
परिसर में प्रेमी युगलो का कोलाहल था, सभी विशिष्ट-2 आसनो में विराजमान थे। काली gds कैप लगाए में तारों में चंद्रमा सा विभुषित हो रहा था, सभी खाने की चीजों को एक बड़े प्लास्टिक बैग में डालकर अपने कंधे पर लटका कर चलता हुआ कोई काबुलीवाला या स्नैक्स बेचने वाला दिखाई दे रहा था। अब मैं उपस्थिति भीड़ के आर्कषण का क्रेंद बन गया था।
कोई यकीन नहीं कर रहा था की इतना सामान में यहाँ बैठकर खाने वाला हूँ। सभी जीवित नव ललनाएँ मुझ कार्टुन करैक्टर को देखकर अपने प्रियतम के कंधो पर मुँह छिपाए हँस रही।थी, पर मैं तो अपने ही आनंद में मग्न था। आखिरकार यहाँ अनिंघ सुदंर प्रस्तर ललनाएँ भी तो थी, जिनके बारे में आगे बताऊँगा।
शहडोल परिक्षेत्र बाॅक्साइट और सुहागपुर कोयला क्षेत्र b v  से सड़कों की स्थिति दयनीय है परंतु निर्माण कार्य भी सतत है। महाजनपद काल का प्रसिद्ध विराट नगर यहीं स्थित था, और महाभारत में पांडवो के अज्ञातवास की अवधि के लिए भी प्रसिद्ध। उस काल की गवाही देता कलचुरीकाल निर्मित विराटेश्वर मंदिर...
इस क्षेत्र का इतिहास प्राचीनता लिए हुए है और तत्कालीन सभी राजवंशो ने यहाँ राज किया है। गुप्तो से शुरू हुई मंदिर बनाने की कला ने आज कलचुरियों का मान गर्व से ऊँचा किए खड़ा है। एक विशाल हरे भरे प्रांगण में एक पुर्वाभिमुख आदीयोगी का मंदिर जो आधार से पुर्व की ओर कुछ पीसा की मीनार की तरह झुका जा रहा है। दूर से साधारण सा दिखता मंदिर जिसका अग्रमंडप धवस्त होकर पुनःनिर्मित है, पास जाने पर असंख्य शिल्प रचनाओं से भरा पड़ा था। मैं आँखे गोल किए जितना आशक्त हुआ जा रहा था, उपस्थित प्रेमालिप्त जन उतने ही अनाशक्त...बुद्ध ठीक कहते है सत्य के हजारों रूप है। मंदिर शिल्प पर चर्चा शेष रही..

इति शुभम्
अनुराग चतुर्वेदी⚘
यात्रा आरंभ

रात के ढाई बजे

सुबह होटल के आंगन में 

आखिरकार पहुँच गये खोजते खोजते

छोटा पर मामूली बिल्कुल नहीं 

पहली झलक

अपनी भी झलक

अलंकृत विमान

थोड़ी नजदीक से जान पहचान

पुर्ननिर्मित नंदीमडंप

अति प्राचीन शिवलिंग अपने भव्य रूप में 

विहंगम मुर्तिकला का उदाहरण 

सुसज्जित प्रवेशद्वार

अंदरूनी झलक