भारत की मोनालिसा - दीदारगंज यक्षिणी
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यक्षी विग्रह |
पाषाण शिल्प के प्रारंभ और विकास दोनों में हम बिहार के अवदान को रेखांकित कर सकते हैं। बिहार में इस शिल्प के ऐतिहासिक प्रमाण ईशा पूर्व तीसरी शताब्दी से मिलते हैं। वस्तुतः यह जंगली सभ्यता से नागरिक सभ्यता में रूपांतरण का काल था जब मनुष्य जंगल या अरण्य सभ्यता से अलग ही हुआ था।
पहले बिहार में सारण और चिराद मैं इस बदलाव के प्रमाण मिलते हैं, पत्थर का कटोरा, दरवाजा, स्तंभ आदि उपयोगितावाद के स्वरूप है। जिससे पत्थर में उत्कीर्णता का सिलसिला चला फिर पत्थर से देवी देवताओं की मूर्तियां बनी, मूल में मूर्तिकला का शिल्पात्मक विकास भी पाषाण शिल्प का विकास प्रस्थान और इतिहास है। यह इतिहास बिहार में शुरू होता है, मौर्य काल से कुषाण, शुंग, पाल काल से होता आज भी इसकी धारा बिहार में प्रतिस्थापित है।